दुगर्म बीहड़ों के बीच कलकल करती चंबल नदी के जल की निर्मलता वैसे भी पर्यावरणविदों को खूब आकर्षित करती है लेकिन लाकडाउन के कारण इंसानी दखल नहीं होने से यमुना नदी भी बदहाली के आलम से निकल कर अपनी सूरत और सीरत को बदलने को बेकरार है।
नदी के बदलते स्वरूप से प्रफुल्लित पर्यावरणविदों ने उम्मीद जतायी है कि यदि लाकडाउन की अवधि कुछ और बढ़ जाये तो पतित पावनी यमुना भी चंबल की तरह स्वच्छ और निर्मल दिखायी देने लगेगी।
देश के नामचीन पर्यावरणविद और भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून में संरक्षण अधिकारी डा.राजीव चौहान ने रविवार को यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि लाॅक डाउन के बाद यमुना नदी की बदहाली जिस तरह से दूर हुई, उसे देख कर यही कहा जा सकता है अगर यह लाॅक डाउन आगे आने वाले वक्त मे और अधिक समय तक जारी रहा तो यमुना नदी अपने पुरातन स्वरूप को पा सकने में सफल होगी और चंबल नदी की तरह ही इसका जल शीशे की तरह साफ दिखायी लगने लगेगा।
उन्होने कहा कि चंबल नदी प्रदूषण से पूरी तरह से मुक्त है, तभी तो वहां घडियाल,डाल्फिन और मगरमच्छ के अलावा अन्य जलचरो का प्रजनन होता रहता है। इसके साथ ही जहाॅ जहाॅ पर यमुना नदी का पानी चंबल की तरह है वहाॅ वहाॅ पर घडियाल का प्रजनन हो चुका है।
इसके कई उदाहरण भी सामने आये हुए है। लाॅक डाउन के कारण कल-कारखानो का पानी यमुना नदी मे नही आ रहा है, इसी कारण यमुना नदी का पानी साफ हो रहा है। डेढ़ महीना पहले तक यमुना के किनारे इस कदर गंदे थे कि वहां फैली दुर्गंध से कुछ दूर रूकना भी दुश्कर हो जाता था।
डा.राजीव का मानना है कि लाॅकडाउन ने यमुना नदी की के पानी आज बिल्कुल स्वच्छ कर दिया है। कई जगह नदी के जल में मगरमच्छ, घडियाल ओर डाल्फिनों को भी साफ देखा जा रहा है। इटावा में यमुना नदी मे ब्लेक नेक्ड स्टार्क, वूली नेक्ड स्टार्क, पेंटिंड स्टार्क, स्कवेजर वल्चर, डारटर कारमोरेंट, लिटिल रिंग प्लोवर आदि पक्षी कलरव करते दिख रहे हैं। कुछ वक्त पहले जिस यमुना नदी के जल में हाथ धोने से भी परहेज किया जा रहा था, आज उसका पानी पीने योग्य बताया जा रहा है। लाकडाउन के कारण ऐसा संभव हो सका है।
पर्यावरणविद ने कहा कि यमुना कितनी स्वच्छ हुई, इसकी वास्तविक स्थिति तो शोध के बाद ही पता चल सकेगी लेकिन देखने में नदी की निर्मलता 1990 से पहले जैसी दिखती है।
उन्होने कहा कि यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलने वाली यमुना देश के सात हिस्सों से गुजरती हुई इलाहाबाद में गंगा के साथ मिलकर संगम में विलीन हो जाती है। इस दौरान यमुना लगभग 1400 किलोमीटर की यात्रा करती है। अपनी इस यात्रा में लाखों लोगों को उनकी जरूरत के लिए पानी देती है। देश की राजधानी दिल्ली के अतिरिक्त कई बड़े शहरों का अपशिष्ट, औद्योगिक प्रतिष्ठानों तथा खेती से निकलने वाले प्रदूषक इस नदी में डाले जाते रहे हैं, जिससे नदी में प्रदूषण की मात्रा काफी बढ़ती गई।
पर्यावरण विशेषज्ञ ने कहा कि यमुना को दुनिया की प्रदूषित नदियों में से एक माना जाता है। औद्योगिक कचरे के कारण यमुना नदी नहीं, बल्कि नाले के रूप में दिखती थी। यमुना एक्शन प्लान के नाम पर करोड़ों रुपये नदी को साफ करने के लिए खर्च भी किये गये, लेकिन इस बार लाॅकडाउन ने यमुना को साफ कर दिया। इसकी वजह लाॅकडाउन के चलते कल-कारखानों का बंद होना है। जिसके चलते उनका कचरा नदियों में नहीं जा रहा है, केवल शहरों में प्रयोग करने वाला पानी ही नदी में गिर रहा है।
गौरतलब है कि चंबल नदी देश की ऐसी नदी मानी जाती है कि जिसके पानी की मिसाल ना केवल दी जाती है बल्कि इसके आसपास बसे गांव वालो की जिंदगी भी इसी पर आश्रित है । चंबल के साफ पानी की वजह से केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी घोषित कर दुलर्भ प्रजाति के मगर,घडियाल,डाल्फिन,कछुओ के अलावा सैकडौ की तादात मे पक्षियो का संरक्षण भी कर रखा है ।