भारतीय नौ सेना की घातक क्षमता पर देश को है गर्व
भारतीय महाद्वीप तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है और इस कारण अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा करने के लिए एक मजबूत नौसेना भारत की अनिवार्य आवश्यकता है। भारतीय नौसेना वर्तमान में दुनिया की 10 सबसे शक्तिशाली नौसेनाओं में से एक है। भारतीय नौसेना अपने एयरक्राफ्ट करियर, पनडुब्बियों के मजबूत बेड़े के साथ देश की समुद्री सीमाओं पर चौकस निगाह रखे हुए है। फिरंगी शासन से आजाद होने के बाद भारतीय नौसेना के बेड़े में 32 नौ-परिवहन पोत और लगभग 11,000 अधिकारी और नौसैनिक थे। 15 अगस्त 1947 में भारत को जब देश आजाद हुआ था, तब भारत के नौसैनिक बेड़े में पुराने युद्धपोत थे। 4 दिसंबर, 1971 को भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान की आर्थिक रीढ़ कहे जाने वाले कराची पोर्ट को तबाह कर दिया था, जिसके बाद से भारतीय नौसेना के पराक्रम के प्रतीक इस दिन को नौसेना दिवस मनाया जाता है। वर्तमान में विमानवाहक आईएनएस विक्रमादित्य समेत करीब तीन सौ से अधिक पोत, परमाणु पनडुब्बियां आदि भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हैं। इनमें 14 फ्रिगेट्स, 11 विनाशक पोत, 22 कॉर्वेट्स, 16 पनडुब्बियां, 139 गश्ती पोत और चार बारूदी सुरंगों का पता लगाने और उनको तबाह करने वाले पोत हैं। भारतीय नेवी के पास अत्याधुनिक तकनीक से लैस जहाजों, सबमरीन, एयरक्राफ्ट आदि की बड़ी फ्लीट है। इसके साथ ही नए सौदों और करार के जरिए भी भारतीय नौसेना दिन-ब-दिन अपनी ताकत में इजाफा कर रही है।
भारत के सबसे खतरनाक कमांडोज 'मार्कोस'
'मार्कोस' यानी मरीन कमांडोज जिनका कोडनेम है मगरमच्छ। 'मार्कोस' असल में भारतीय नौसेना के बेहद भरोसेमंद और सबसे खतरनाक कमांडो हैं, जिन्हें सबसे चुनौतीपूर्ण मिशन पर भेजा जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो 'मार्कोस' भारत के अमेरिकन 'नेवी सील्स' हैं। 'मार्कोस' कमांडो से आतंकी भी घबराते हैं, इन्हें दाढ़ी वाली फौज का नाम दिया गया है। क्योंकि ये अक्सर भेस बदल कर सिविलियन के बीच घुस जाते हैं। मुंबई आतंकी हमले के समय भी इन कमांडोज ने लोगों को बचाने में अहम भूमिका निभाई थी। 'मार्कोस' कमांडो को बेहद कठिन ट्रेनिंग दी जाती है। ढाई से तीन साल की ट्रेनिंग के लिए 20 साल तक की आयु वाले नौसैनिकों को चुना जाता है। इस ट्रेनिंग में 25 किग्रा वजन के साथ दलदली क्षेत्र में दौड़ सत्र पूरा करना पड़ता है, जिसे 'डैथ क्रोल' कहा जाता है। 'मार्कोस' कमांडो बनने के इच्छुक नौसैनिकों में से 90 प्रतिशत का तो चयान ही नहीं हो पाता और वे ट्रॉयल में ही बाहर हो जाते हैं। 'मार्कोस' कमांडोज ने दुनियाभर की विभिन्न स्पेशल फोर्सेज के साथ कई संयुक्त अभ्यास किए हैं। कुल मिलाकर 'मार्कोस' कमांडो दुश्मन के लिए काल का दूसरा नाम हैं।
अरिहंत क्लास पनडुब्बी
भारत की अरिहंत क्लास पनडुब्बी न्यूक्लियर पॉवर मिसाइल पनडुब्बी है, जिसका मतलब यह हुआ कि यह पनडुब्बी परमाणु से अपनी पॉवर जेनेरेट करती है। यह पनडुब्बी पानी के नीचे बहुत लम्बे समय तक रह सकती है। यह परमाणु पनडुब्बी सागरिका के-15 और के -4 एसएलबीएम मिसाइल से लैस है।
आईएनएस चक्र
भारत की आईएनएस चक्र, न्युक्लियर पॉवर अटैक पनडुब्बी है। देश की सुरक्षा के मद्देनजर भारत सरकार ने यह पनडुब्बी रूस से 10 साल के लिए लीज पर ले रखी है। यह पनडुब्बी अपनी तमाम खासियतों के कारण भारतीय नौसेना को खासी मजबूती दे रही है। भारत इस श्रेणी की पनुब्बी खुद विकसित करने में जुटा है।
कल्वेरी पनडुब्बी
कल्वेरी स्कॉर्पियन क्लास पनडुब्बी, यह डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी है। इस पनडुब्बी में 'वरुनास्त्र' तारपीडो और एंटी शिप मिसाइल लगी हुई है। यह लेजर गाइडेड तकनीक के बूते दुश्मन पर सटीक वार कर सकती है। इस पनडुब्बी का स्टील्थ फीचर इसे और घातक बनाता है। यह एक बार में 12 हजार किमी का सफर तय कर सकती है।
आईएनएस विक्रमादित्य एयरक्राफ्ट करियर
आईएनएस विक्रमादित्य एयरक्राफ्ट करियर, यह रूस से खरीदा गया है। 44 हजार टन वजनी एयरक्राफ्ट करियर पर 34 जहाज और 6 कमोव हेलिकॉप्टर भी एक साथ तैनात हो सकते हैं। भारत ने इसे 2004 में खरीद लिया था, इस पर बराक-8 मिसाइल भी तैनात हैं। एयर सर्विलांस राडार सिस्टम से लैस यह एयरक्राफ्ट करियर 500 किमी रेडियस की निगरानी करने में सक्षम है।
आईएनएस कोलकाता, आईएनएस कोच्ची, आईएनएस चेन्नई
किसी भी नौसेना में डिस्ट्रॉयर का काम दुश्मन की नौसेना को नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह समुद्र क्षेत्र में नौसेना की प्रमुख फ्लीट को सुरक्षा देने का काम करते हैं। इन डिस्ट्रॉयर पर आधुनिक किस्म की मिसाइल लगाकर यह बहुत ही खतरनाक हो जाते हैं।
भारतीय नौसेना के बेड़े में आईएनएस कोलकाता, आईएनएस कोच्ची, आईएनएस चेन्नई अािद डिस्ट्रॉयर हैं। यह तीनों एक ही क्लास के डिस्ट्रॉयर हैं, जिन्हें भारत ने अपनी सुरक्षा जरूरतों के मुताबिक खुद तैयार किया है। इनकी स्पेसिफिकेशन बिलकुल एक जैसी ही है। यह सभी स्टील्थ गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर हैं, जिसके कारण इन्हें रडार, सोनार और किसी भी तरह की टेक्नोलॉजी से खोज पाना मुश्किल होता है। यह डिस्ट्रॉयर लेजर गाइडेड मिसाइल लांच कर सकते हैं। इन सभी डिस्ट्रॉयर पर बराक 8 और ब्रह्मोस जैसी अत्याधुनिक मिसाइलें तैनात की जाती हैं। इसके ही साथ यह शिप अपने साथ एक या दो हेलिकॉप्टर भी ले जाने में भी सक्षम है। इन डिस्ट्रॉयर में मारीच एडवांस तारपीडो डिफेन्स सिस्टम है। यह सभी डिस्ट्रॉयर अपनी जरूरत और विकास क्रम के हिसाब से अलग समय पर भारतीय नौसेना में शामिल हुए।
आईएनएस कोहासा से हिन्द महासागर में बढ़ा दबदबा
भारतीय नौसेना ने हिन्द महासागर में दबदबा बढ़ाने के लिए सामरिक रूप से महत्वपूर्ण अंडमान निकोबार कमान के तहत इस साल जनवरी महीने में अपना नया एयर बेस आईएनएस कोहासा खोल दिया। दरअसल नौसेना के शिवपुर हवाई अड्डे का विस्तार कर उसे आईएनएस कोहासा नाम दिया गया। इसका नामकरण अंडमान में पाये जाने वाले सफेद समुद्री बाज के नाम पर किया गया। नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने बीते साल की शुरूआत में 24 जनवरी को आईएनएस कोहासा को नौसेना में शामिल किया था। जिसके बाद अंडमान में नौसेना के तीन एयर बेस हो गए, जिनके जरिए समूचे हिन्द महासागर पर नजर रखी जा सकती है।
अंडमान में नौसेना के दो अन्य एयर बेस पोर्ट ब्लेयर में आईएनएस उत्कर्ष और कैम्पबेल बे में आईएनएस बाज पहले से ही संचालित थे, आईएनएस कोहासा के शुरू होने के बाद यह विमानों का स्थायी बेस बन गया है। इससे नौसेना न केवल अंडमान निकोबार कमान द्वीप के सभी क्षेत्रों से अभियानों को अंजाम देने में सक्षम हो चुकी है, बल्कि संसाधन बढ़ने के साथ ही उसकी संचालन ताकत भी बढ़ गई है।
गौरतलब है कि उत्तरी अंडमान क्षेत्र की निगरानी के लिए नौसेना ने 2001 में शिवपुर हवाई अड्डे की स्थापना की गई थी, उसे विस्तार देते हुए नया नाम दिया गया आईएनएस कोहासा। अंडमान निकोबार द्वीप के एकदम उत्तरी छोर पर स्थित होने के कारण यह एयरबेस सामरिक रूप से तो महत्वपूर्ण है ही इससे क्षेत्र के विकास में भी मददगार साबित हो रहा है। मलक्का जलडमरूमध्य के निकट होने के कारण यह सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां से हर साल लगभग 70000 समुद्री जहाजों का आवागमन होता है। आईएनएस कोहासा का इस्तेमाल सैन्य विमानों के साथ-साथ उड़ान योजना के तहत नागरिक विमानों द्वारा भी किया जा सकता है। विस्तार योजना के तहत इसकी हवाई पट्टी की लंबाई 3000 मीटर तक बढ़ाए जाने से यहां बड़े सैन्य और नागरिक विमान दोनों उतर सकते हैं।