अभी तक हम सिर्फ यही जानते थे कि सांस लेने से या छींकने से ही कोरोना वायरस एक शरीर से दूसरे शरीर तक फैलता है, लेकिन ताजा अध्यन की माने तो यह महामारी हवा के माध्यम से भी फैल सकती है। यानी अब आपको जिंदगी जीने के लिए जरूरी सांस भी संभलकर लेनी होगी, क्योंकि आपकी एक लापरवाही आपको कोरोना वायरस का शिकार बना सकती है। संक्रमण के फैलने के पीछे अब वैज्ञानिकों ने एक और वजह भी ढूंढ़ ली है। अमेरिका में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (एनएएस) के प्रमुख हार्वे फाइनबर्ग ने 1 अप्रैल को वाइट हाउस ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी पॉलिसी के प्रमुख केल्विन ड्रोगेमीयर को पत्र लिखकर इसके बारे में आगाह किया है। ये तो सभी को पता है कि मानव के बाल की तुलना में 900 गुने छोटे इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति जब खांसता या छींकता है तो उसके मुंह या नाक से गिरी बूंदे आसपास खड़े व्यक्ति को भी संक्रमित कर देती है। ठोस सतह पर 9 दिन से ज्यादा जीवित रहने के अलावा ये वायरस गुरुत्वाकर्षण की वजह से ये 1 या 2 मीटर तक के वातावरण में भी जीवित रहते हैं, जिससे हमारी सुरक्षा अधिक कठिन हो जाती है।
कोरोना वायरस की हवा में
मौजूदगी
(WHO) विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि सार्स-कोविड-2
वायरस जो लोगों में कोविड-19 बीमारी की वजह बनता है, मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति के नाक और मुँह से निकली सूक्ष्म बूंदों के
माध्यम से फैलता है. लेकिन क्लीनिकल इंफ़ेक्शियस डिज़ीज़ जर्नल में सोमवार को
प्रकाशित हुए एक खुले ख़त में, 32 देशों के 239 वैज्ञानिकों ने इस बात के प्रमाण दिए हैं कि ये फ़्लोटिंग वायरस है जो
हवा में ठहर सकता है और सांस लेने पर लोगों को संक्रमित कर सकता है. विश्व
स्वास्थ्य संगठन को लिखे इस खुले खत में वैज्ञानिकों ने गुज़ारिश की है कि
अंतरराष्ट्रीय संस्था को कोरोना वायरस के इस पहलू पर दोबारा विचार करना चाहिए और
नए दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रवक्ता तारिक
जसारेविक ने अब कहा है कि ‘संस्था इस लेख से अवगत है और अपने
तकनीकी विशेषज्ञों के साथ इसकी सामग्री की समीक्षा कर रही है.’ यह अभी स्पष्ट नहीं है कि कोरोना वायरस हवा में कैसे फैलता है. लेकिन अगर
ऐसा हुआ तो विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वायरस से बचाव के अब तक जो सुझाव दिये गए
हैं, उनमें बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है. विश्व
स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लोगों में कम से कम 3.3 फुट की दूरी होने से कोरोना वायरस संक्रमण की रोकथाम संभव है.
वर्तमान निर्देश क्या है?
नई
रिसर्च से मास्क पहनने के निर्देशों और सलाह में बदलाव आ सकता है। फिलहाल WHO उन्हीं लोगों को मास्क पहनने
की सलाह देता है, जिन्हें या तो संक्रमण की आशंका हो या वो
संक्रमित लोगों की देखभाल कर रहे हों। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक फिलहाल WHO
उन्हीं लोगों को मास्क पहनने की सलाह देता है जिन्हें या तो संक्रमण
की आशंका हो या वो संक्रमित लोगों की देखभाल कर रहे हों। विश्व स्वास्थ्य संगठन इस
बात पर भी जोर देता है कि मास्क पहनने का फायदा तभी होगा जब इन्हें थोड़े समय में
बदला जाए, ठीक से डिस्पोज किया जाए और बार-बार हाथ धोया जाए।
ये सलाह उन साक्ष्यों पर आधारित है, जिनमें पाया गया है कि
कोरोना वायरस नाक और मुंह के जरिए बाहर आने वाली बूंदों के जरिए फैलता है। जो देश
विश्व स्वास्थ्य संगठन के इस सुझाव को गंभीरता से लागू करने का प्रयास कर रहे थे,
उन्हें भी अपने दिशा-निर्देशों में तब्दीली करनी पड़ सकती है.
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन फ़िलहाल अपनी पुरानी समझ को ही पुख्ता और सही मान
रहा है. अमरीका की मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के डॉक्टर माइकल ओस्टरहोम ने विश्व
स्वास्थ्य संगठन से कहा है कि ‘WHO मौजूद डेटा को भी नहीं
मान रहा है जो इस बात का संकेत देता है कि कोरोना संक्रमण हवा में फैलता है.’
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर बाबेक जावेद जो संक्रामक
बीमारियों के विशेषज्ञ हैं, उनका कहना है, “हवा में वायरस का फैलना काफ़ी संभव है, लेकिन जाँच
इस बात की होनी चाहिए कि हवा में यह वायरस कितनी देर तक रह सकता है. इससे संबंधित
सबूतों का अभी अभाव है.” अगर ये वायरस लंबे समय तक हवा में
ठहर सकता है तो इसका मतलब ये होता है कि संक्रमित व्यक्ति किसी स्थान को छोड़ भी
दे तो भी ये वायरस वहाँ हवा में मौजूद रह सकता है. यानी हेल्थवर्करों और मरीज़ों
की सेवा में लगे लोगों को और अधिक सावधान रहने की ज़रूरत होगी. हार्वर्ड स्कूल ऑफ़
पब्लिक हेल्थ के डॉक्टर विलियम हेंज मानते हैं कि इसकी गंभीर पड़ताल होना ज़रूरी
है. वे कहते हैं, “अगर हवा के माध्यम से संक्रमण होने की
संभावना न्यूनतम है, तब भी इस बात को लोगों की जानकारी में
ना लाना, या इसे ना मानने से कोई फ़ायदा नहीं है.”
क्या कहता है नया शोध?
जापान
के राष्ट्रीय प्रसारण संगठन 'NHK'
ने भी एक वीडियो के माध्यम से समझाया है कि कैसे कोरोना वायरस अब 'माइक्रो-ड्रॉपलेट' संक्रमण का रूप ले चुका है।
वीडियो में, जैसे ही एक इंसान छींकता है, तो बूंदें हवा में कई सारी सूक्ष्म बूंदें छोड़ती हैं, जो एक दूसरे इंसान को संक्रमित करने के लिए काफी देर तक हवा में रहती हैं।
कैंब्रिज में एमआईटी के शोधकर्ताओं ने ये देखने के लिए एक हाई स्पीड कैमरा और अन्य
सेंसर इस्तेमाल किया कि असल में किसी के खांसने या छींकने के बाद क्या होता है,
इसमें उन्होंने पाया कि सांस लेने से गैस का एक धुआं पैदा होता है
जिसकी गति बहुत तेज होती है, इस गैस में कुछ अलग-अलग आकार की
बूंदें भी होती हैं। इनमें जो सबसे छोटी बूंदें होती हैं वो न सिर्फ सबसे ज्यादा
दूर तक जाने की क्षमता रखती हैं बल्कि हवा में भी संक्रमण का खतरा बनाए रखती है।
कोरोना वायरस के फैलने के संबंध में किया
गया नया शोध क्या कहता है? इस नए शोध ने सबके होश उड़ा दिए हैं। यह शोध अमेरिका के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय ने किया
है और इस अध्ययन के बाद के नतीजे काफी चौंकाने वाले हैं। कोरोना वायरस के फैलने के
संबंध में किए गए एक नए शोध ने सबके होश
उड़ा दिए हैं इस शोध के नतीजों से पता
चलता है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकना वाकई कितना कठिन काम है। अमेरिका की
नेब्रास्का यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन वाकई काफी चौकाने वाला है।
डेली मेल में इस बाबत छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बात की पुष्टि हुई है कि
कोरोना संक्रमित व्यक्ति के किसी एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाने के बाद भी
हवा में वायरस की मौजूदगी संभव है। इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि मरीज के
जाने के कई घंटे बाद भी कमरे की हवा में काफी मात्रा में वायरस हो सकता है और
दूसरे लोग इसके शिकार हो सकते हैं।
कमरों के नमूने से परिणाम
इस
अध्ययन को करने के लिए शोधकर्ताओं ने कोरोना से संक्रमित 11 मरीजों के कमरों को सैंपल के
तौर पर लिया था। शोधकर्ताओं ने इन कमरों की हवा का गहराई से अध्ययन किया। शोधकर्ता
इस नतीजे पर पहुंचे कि इन कमरों के भीतर और बाहर की हवा में कोरोना वायरस की
मौजूदगी है। नेब्रास्का यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की टीम के अगुवा जेम्स लॉलर का
कहना है कि हमें इस बाबत पहले ही संदेह था और अध्ययन से जो नतीजे निकलते हैं वह
हमारे संदेह की पुष्टि करने वाले हैं।
धारणा अलग थी
इस
वायरस के फैलने के बाद से ही यह कहा जा रहा है कि यह वायरस हवा के जरिए नहीं
फैलता। कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने के दौरान निकले
ड्रॉपलेट्स से यह फैल सकता है। लेकिन अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में किया गया
शोध इसके बिल्कुल विपरीत है। इस शोध में बताया गया है कि कोरोना वायरस हवा में भी
हो सकता है। इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि जिस स्थान पर कोरोना से संक्रमित
व्यक्ति रहा हो वहां उसके जाने के बाद भी हवा में कोरोना के वायरस मौजूद हो सकते
हैं जो दूसरों को आसानी से संक्रमित कर सकते हैं।
वायरस का संक्रमण इस तरह भी हो सकता है
कोरोना
वायरस के संक्रमण के बारे में पहले भी अध्ययन किए जा चुके हैं। कुछ और स्टडीज में
भी यह बात सामने आई थी कि इस वायरस का संक्रमण सिर्फ मरीजों के जरिए ही नहीं होता
बल्कि यह वायरस कई जगहों की सतह पर भी मौजूद हो सकता है। कुछ और विशेषज्ञों की राय
है कि कोरोना का वायरस मेटल या प्लास्टिक के सतह पर दो से तीन दिनों तक रह सकता
है। ऐसे में इन तत्वों को छूने वाले लोगों पर इस वायरस के संक्रमण का खतरा निश्चित
तौर पर होता है।
उपचार
करने वालों को सतर्क रहना चाहिए
रिपोर्ट
के मुताबिक शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि अस्पताल के जिस वार्ड में कोरोना
संक्रमित मरीज रह रहा हो उसके आसपास या कॉरिडोर आदि की हवा में भी इस वायरस की
मौजूदगी हो सकती है। इस स्टडी में कोरोना से संक्रमित मरीजों का इलाज कर रहे लोगों
को काफी सतर्कता बरतने की हिदायत दी गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना से
संक्रमिक मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को वायरस के
संक्रमण से बचाने के लिए हमेशा प्रोटेक्टिव सूट, मास्क, दस्ताने आदि का सहारा
जरूर लेना चाहिए। ऐसा न करने पर वे भी इस वायरस के संक्रमण का शिकार हो सकते हैं।
नकारात्मक वायु प्रवाह होना चाहिए
लॉलर
का यह भी कहना है कि कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के कमरे में नेगेटिव एयर
फ्लो होना बहुत जरूरी है। उनका यह भी कहना है कि भले ही ज्यादा मरीजों की मौजूदगी
हो, लेकिन इसका पालन
जरूर किया जाना चाहिए। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि चिकित्सा विशेषज्ञ अभी तक
ऐसा कोई आंकड़ा नहीं दे पाए हैं जिससे यह पता चल सके कि कितने मरीज हवा, ड्रॉपलेट्स या फिर संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के कारण इस वायरस
का शिकार हुए।
स्वास्थ्य कर्मियों के पास पीपीई होना चाहिए
दुनिया
भर के तमाम देशों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि कोरोना से संक्रमित मरीजों का इलाज कर
रहे डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मी पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) की कमी
का सामना कर रहे हैं। इस तरह के भी तमाम मामले सामने आए हैं जिनमें कोरोना से
संक्रमित मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टर भी कोरोना वायरस का शिकार हो गए। इस
स्टडी के नतीजों से समझा जा सकता है कि कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करने वालों
के लिए पीपीई कितना जरूरी है। अमेरिकी विश्वविद्यालय के इस अध्ययन से वाकई कोरोना
मरीजों के इलाज में बड़ा फायदा मिल सकता है। दुनिया भर के चिकित्सा विशेषज्ञों की
तमाम कोशिशों के बावजूद इस वायरस के संक्रमण को रोकने में अभी तक कामयाबी नहीं मिल
सकी है।इस अध्ययन से इस बात का भी पता चलता है कि संक्रमित व्यक्ति से किसी दूसरे
व्यक्ति की दूरी ही काफी नहीं है बल्कि सतर्कता के लिए और कदम भी उठाए जाने जरूरी
हैं।