चुनाव की घोषणा के बाद ऐसा क्या हो गया कि स्वामी प्रसाद मौर्य का बीजेपी से मोह भंग हो गया

12-01-2022 16:02:41
By : Ravinder Kumar

चुनाव की घोषणा के बाद ऐसा क्या हो गया कि स्वामी प्रसाद मौर्य का बीजेपी से मोह भंग हो गया

 

मैं बोलता हूँ तो इल्ज़ाम है बग़ावत का
मैं चुप रहूँ तो बड़ी बेबसी सी होती है

 

बशीर बद्र का स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी को दिये इस्तीफे पर फिट बैठती दिखती हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने इस्तीफे में लिखा है कि वो बीजेपी में अपनी बात नहीं रख पा रहे थे। लेकिन क्या वाकई ये वजह थी या वजह कोई और है।

 

चुनावी बिगुल बजने के साथ उत्तर प्रदेश में सात चरणों में चुनाव होने की घोषणा हो गयी जिसके बाद टिकट बंटवारे को लेकर भी सूबे के मुखिया और बीजेपी आलाकमान के बीच बातचीत का सिलसिला बढ़ा। प्राप्त सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक स्वामी प्रसाद मौर्य को लंबे समय से अपने बेटे के लिए बीजेपी से टिकट मांग रहे थे लेकिन पार्टी में उनके बेटे को लेकर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई।  

 

मिली जानकारी के मुताबिक स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी में इसबार और ज्यादा बड़े कद की मांग भी कर रहे थे जो जिसपर भी पार्टी ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी और क्योंकि स्वामी प्रसाद मौर्य अवसरवाद की राजनीति भी करते हैं ऐसे में माना ये भी जा रहा है कि मौजूदा समय में उन्हें लगता है कि प्रदेश में समाजवादी पार्टी मजबूत पार्टी के तौर पर उभर रही है, और चूंकि बीजेपी को समाजवादी पार्टी से ही टक्कर मिल रही है ऐसे में अगर समाजवादी पार्टी  सत्ता में वापसी करती है तो स्वामी प्रसाद मौर्य को फिर से सत्ता में अच्छा पद मिल सकता है। 




एक तरफ पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा हुई। दूसरी ओर बीजेपी से स्वामी प्रसाद मौर्य का बीजेपी से मोह भंग हो गया। उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी से जाते जाते ये भी तोहमत लगा दी कि पार्टी में वो घुटन महसूस कर रहे थे।

 

स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के कई मायने निकाले जा रहे हैं

राजनीति के जानकारों का कहना है कि स्वामी प्रसाद मौर्य एक मंजे हुए नेता हैं। वो राजनीति की नब्ज को पहचानते हैं। वो जानते हैं कि मौजूदा समय में बीजेपी उत्तर प्रदेश में कमजोर हुई है। जिसका फायदा उन्हें इस रूप में भी मिल सकता है कि वो बीजेपी पर ये तोहमत मढ़ दें कि बीजेपी ऊंची जातियों की पार्टी है। वहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य इस्तीफ़े की आड़ में सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ उस अभियान को बल दे सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में 'ऊंची जातियों' की सरकार है। इस तरह से स्वामी प्रसाद मौर्य एक तरफ जहां अपने इस्तीफे को जस्टिफाई करेंगे वहीं दूसरी और ओबीसी वोट बैंक को रिझाने की भी कोशिश करेंगे।

 

बीजेपी से ओबीसी नेता नाराज़?



स्वामी प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद बीजेपी की बैठक भी हुई जिसमें बीजेपी संगठन के महासचिव सुनील बंसल, उत्तर प्रदेश में बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, सह-प्रभारी अनुराग ठाकुर और राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष भी मौजूद थे। इसके अलावा पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा और उत्तर प्रदेश के प्रभारी राधामोहन सिंह को भी शामिल होना था, लेकिन कोविड से संक्रमित होने के कारण नहीं आ सके।

मिली जानकारी के मुताबिक, पार्टी के नेताओं का कहना है कि यूपी में बीजेपी को अपने चुनावी अभियान पर फिर से सोचना होगा क्योंकि मौर्य के जाने से पिछड़ी जातियों में एक अहम संदेश गया है। अभी तक उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी और योगी आदित्यनाथ बीजेपी के चुनावी अभियान के चेहरे रहे हैं।

 

बीजेपी में यह चिंता भी बढ़ी है कि मौर्य के कारण समाजवादी पार्टी को बढ़त मिल सकती है। समाजवादी पार्टी अपने विश्वसनीय वोट बैंक यादव-मुस्लिम को विस्तार देना चाहती है। अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी के साथ ग़ैर-यादव ओबीसी को भी जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश में ग़ैर-यादव ओबीसी मतदाता एक अनुमान के मुताबिक़ 35 फ़ीसदी से भी ज़्यादा हैं।

 

स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा से बीजेपी में आए अब साइकिल पर सवार हो गए

चुनाव से पहले बीजेपी छोड़ने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य सबसे हाई-प्रोफ़ाइल नेता हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य 2016 में बहुजन समाज पार्टी से बीजेपी में आए थे। बहुजन समाज पार्टी में तब उनकी हैसियत मायावती के बाद नंबर दो की थी।

जानकारी के मुताबिक, बीजेपी के नेताओं ने मौर्य के पार्टी छोड़ने को बहुत महत्व नहीं देते हुए कहा कि वो लंबे समय से मौक़ापरस्त रहे हैं। बीजेपी नेताओं ने बताया कि वो अपने बेटे उत्कृष्ट के लिए टिकट की मांग कर रहे थे जिसे पार्टी ने मानने से इनकार कर दिया था और वो इसी वजह से नाराज़ थे।

 

स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य बदायूं लोकसभा सीट से बीजेपी की सांसद हैं और उन्होंने जातीय जनगणना की मांग का संसद में समर्थन किया था। संघमित्रा का यह रुख़ पार्टी के आधिकारिक रुख़ से बिल्कुल अलग था।

 

बीजेपी के एक सीनियर नेता का ये भी कहना है कि, ''स्वामी प्रसाद मौर्य का पार्टी छोड़ना हैरान करने वाला नहीं है। यह संभावित था। एक दिन की सनसनी के बाद इसका कोई मतलब नहीं रहेगा।'' लेकिन उत्तर प्रदेश में बीजेपी नेताओं, जिनमें एक विधायक भी शामिल हैं, उनका कहना है कि मौर्य के पार्टी छोड़ने से योगी सरकार को लेकर वह धारणा मज़बूत होगी कि यह सरकार ऊंची जातियों की है और पिछड़ी जातियों का हक़ नहीं दे रही है।

 

योगी सरकार के मंत्री मौर्य ने दिया इस्तीफ़ा, अखिलेश ने कहा -सपा में स्वागत

अब स्वामी प्रसाद मौर्य ने साइकिल यानी सपा का दामन थाम लिया है। सपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य का स्वागत किया है। यहां यह बात भी समझनी आवश्यक है कि बीजेपी को केंद्र में पूर्ण बहुमत से लाने में ओबीसी वोटों की अहम भूमिका रही है।

 

ओबीसी वोट बैंक का महत्व

इससे पहले महाराष्ट्र में 2020 में एक और हाई प्रोफ़ाइल नेता एकनाथ खड़से ने बीजेपी छोड़ दी थी। हालांकि पिछले साल जुलाई में मोदी सरकार ने कैबिनेट में जब फेरबदल किया था तो 27 ओबीसी मंत्रियों को शामिल कर संदेश देने की कोशिश की थी।

 

अब सबकी नज़रें केशव प्रसाद मौर्य पर हैं। केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश में बीजेपी के वरिष्ठ ओबीसी नेता हैं और 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उन्हें उप-मुख्यमंत्री का पद दिया गया था जबकि उनकी अध्यक्षता में ही पार्टी ने चुनाव में जीत हासिल की थी।

 

बाद में केशव प्रसाद मौर्य की तरफ़ से ऐसी कई आवाज़ें आईं जिनसे उनके असंतोष का संकेत मिला। इस बार बीजेपी फिर से सत्ता में आती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा पर केशव प्रसाद मौर्य खुलकर योगी का नाम नहीं लेते हैं जबकि पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह स्पष्ट कर चुके हैं कि योगी ही चेहरा हैं।

 

वहीं, स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने पर पार्टी की ओर से आधिकारिक तौर पर ख़ामोशी रही, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य ने सार्वजनिक रूप से ट्वीट कर अपील की और कहा, ''आदरणीय स्वामी प्रसाद मौर्य जी ने किन कारणों से इस्तीफ़ा दिया है, मैं नहीं जानता हूँ. उनसे अपील है कि बैठकर बात करें, जल्दबाज़ी में लिए हुए फ़ैसले अक्सर ग़लत साबित होते हैं।''

 

मौर्य बनाम मौर्य

हालांकि बीजेपी में दोनों मौर्यों के बीच सब कुछ मधुर नहीं था। स्वामी प्रसाद मौर्य को पता था कि बीजेपी में केशव प्रसाद मौर्य के रहते बीएसपी में जो उनकी हैसियत थी वो कभी नहीं मिलेगी। मिली जानकारी के मुताबिक पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, ''बीजेपी में वो शीर्ष के ओबीसी नेता नहीं बन सकते थे लेकिन समाजवादी पार्टी में ग़ैर-यादव ओबीसी नेता बन सकते हैं।''

 

बीजेपी के एक सीनियर नेता ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (सोनेलाल) फ़ायदे के लिए दबाव बना सकती है। अपना दल भी ग़ैर-यादव ओबीसी में अपने समर्थन का दावा करता है।

 

मौर्य के इस्तीफे के बाद क्या बीजेपी में अब दो फाड़ की स्थिति है

बीजेपी के एक सांसद ने कहा कि स्वामी प्रसाद मौर्य के जाने से ओबीसी में ग़लत संदेश तो गया ही साथ ही योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली पर भी प्रश्न चिह्न खड़ा होता है।

 

उन्होंने कहा, ''कुछ लोग उन्हें अन्य कारणों से ध्रुवीकरण करने वाला नेता बताते हैं लेकिन बीजेपी के भीतर भी वो ध्रुवीकृत करने वाला चेहरा हैं। उत्तर प्रदेश में बीजेपी 'योगी के साथ और योगी के ख़िलाफ़' दो खेमों में बंट गई है। पहला खेमा चाहता है कि बीजेपी योगी की छवि से सत्ता में लौटेगी और दूसरे खेमे को लगता है कि योगी के नेतृत्व में बीजेपी के भीतर उनका कोई भविष्य नहीं है.''

 

समाजवादी पार्टी ने बहराइच की विधायक माधुरी वर्मा को पार्टी में शामिल कर ग़ैर-यादव ओबीसी वोट को अपने पाले में लाने की कोशिश पहले ही शुरू कर दी थी। इसके अलावा बीजेपी से राकेश राठौर, पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक शिव कुमार सिंह पटेल, कांग्रेस नेता कृष्णा पटेल के अलावा बीएसपी से निष्कासित राम अचल राजभर और लालजी वर्मा को अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी में शामिल कर चुके हैं।

 

स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा क्या बोलीं?

स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी छोड़ने पर उनकी बेटी और बदायूं से बीजेपी की लोकसभा सांसद संघमित्रा ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। संघमित्रा ने कहा है कि वो भाजपा की सांसद हैं और भाजपा में ही रहेंगी। उन्होंने कहा कि बीजेपी संगठन के निर्देश पर काम करती रहेंगी।

 

पिता के समाजवादी पार्टी में जाने से संघमित्रा को लेकर भी अटकलें थीं। बदायूं के बीजेपी ज़िला अध्यक्ष राजीव कुमार गुप्ता ने कहा कि संघमित्रा मौर्य क्षेत्र में पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व दमदारी से करती रहेंगी।

 

समाजवादी पार्टी सत्ता में करेगी वापसी या फिर बनेगी किंग मेकर

अब समाजवादी पार्टी दावा कर रही है कि वो उत्तर प्रदेश में पूरे दमखम के साथ सत्ता में वापसी करने जा रही है। अखिलेश यादव ने पिछले दिनों की गयी अपनी कई रैलियों में ये ऐलान कर दिया है कि बाबा यानी योगी आदित्यनाथ अपना विस्तर बांध लें क्योंकि अब समय आ गया है कि वो वापस अपने मठ यानी गोरखपुर लौट जाए। अखिलेश के इस दावे में कितना दम है यह तो 10 मार्च को चुनावी नतीजे आने के बाद ही तय होगा लेकिन इस बीच खबर ये भी है कि समाजवादी पार्टी इसबार पूरे ताकत के साथ चुनावी मैदान में है। समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव करो या मरो की स्थिति में भी है। क्योंकि एक तरफ जहां समाजवादी पार्टी के समक्ष केवल बीजेपी है वहीं, अंदर खाने खबर ये भी है कि बसपा ने चुपचाप इसबार उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बायपास लगभग दे दिया है।

देखना दिलचस्प होगा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का ऊंट किस करवट बैठता है।

 

 

BOX ITEM

समाजवादी पार्टी में सीटों का बंटवारा

समाजवादी पार्टी और आरएलडी के बीच सीटों का बंटवारा हो गया है। सीटों को लेकर अखिलेश यादव के प्रतिनिधि और जयंत चौधरी के बीच लंबी बातचीत हुई। इस दौरान फोन से अखिलेश भी जुड़े। आखिर में यह बात भी निकलकर सामने आई है कि समाजवादी पार्टी के छह लोग आरएलडी के चुनाव चिह्न पर लड़ेंगे। इससे पहले राष्ट्रीय लोक दल (RLD) प्रमुख जयंत चौधरी ने कहा था कि अगले 2-3 दिन में उम्मीदवारों की पहली लिस्ट आ जाएगी। समाजवादी के साथ सभी सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ेंगे।

 

जयंत चौधरी के सामने ये है बड़ी चुनौती

बता दें कि पिछले साल चौधरी अजीत सिंह के निधन के बाद जयंत चौधरी के सामने अपनी पार्टी के खोते जनाधार को बचाने की चुनौती है। किसान आंदोलन ने जयंत को वो मौका भी दिया। जंयत पिछले एक साल से जिस तरह आंदोलनकारियों के साथ खड़े रहे उससे भी इन्हें खूब सहानुभूति मिली। अब जयंत को लगता है कि पश्चिमी यूपी में जाट-सिख और मुस्लिमों की लामबंदी के बदौलत आरएलडी फिर से अपनी खोई ताकत जुटा चुकी है और इसलिए जयंत अब इसका भरपूर फायदा उठाना चाहते हैं।

 

अगर बात करें गठबंधन की तो आरएलडी 2002 के चुनाव में BJP के साथ गठजोड़ कर चुनावी मैदान उतरी। इस दौरान आरएलडी को 14 सीटों पर जीत मिली जबकि दो प्रतिशत वोट हासिल हुए। साल 2007 में आरएलडी अकेले चुनावी मैदान में उतरी। इस चुनाव में आरएलडी ने 10 सीटों पर जीत हासिल की जबकि वोट प्रतिशत दो से बढ़कर चार पर पहुंच गया। 2012 के चुनाव में आरएलडी कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरी। इस दौरान उसे नौ सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि वोट दो प्रतिशत मिले। वहीं एक बार फिर साल 2017 में आरएलडी ने अकेले चुनाव लड़ा जिसमें 1 सीट पर जीत हासिल की जबकि दो प्रतिशत वोट मिले।  

 

दूसरी तरफ़ बीजेपी ओबीसी को अपने साथ लामबंद करने की कोशिश कर रही है

दिल्ली में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर बैठक की। इस बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और गृह मंत्री अमित शाह के साथ पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता मौजूद थे। लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफ़ा बैठक में सारी योजनाओं पर भारी पड़ गया। अटकलें हैं कि बीजेपी के कई और विधायक पार्टी छोड़ सकते हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा है कि 15 से ज़्यादा विधायक बीजेपी छोड़ेंगे।

 

 

 

 


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