कॉरपोरेट जगत में सामाजिक दायित्व की शुरूआत
कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) शब्द आज से करीब साठ-इकसठ साल पहले 1960 के दशक के अंत में और 1970 के दशक की शुरुआत में कई बहुराष्ट्रीय निगमों के हितधारकों के गठन के बाद सामान्य उपयोग में आया था। रणनीतिक प्रबंधन (स्ट्रेटेजिक मैनेजमेंट) के जानकार आर.एडवर्ड फ्रीमैन ने वर्ष 1984 में अपनी एक किताब में कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी यानी सीएसआर का वर्णन स्पष्ट रूप से किया, जिसमें कहा गया कि कंपनियों को स्वेच्छा से आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय दायित्वों का निर्वहन करते हुए व्यापार करना चाहिए। फ्रीमैन ने यह भी स्पष्ट किया कि कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी (सीएसआर) ऐसी व्यवसाय प्रथाओं को संदर्भित करती है जिसमें समाज को लाभ पहुंचाने वाली पहल शामिल है।
भारत में पुरातन काल से है कारोबार संग सामाजिक दायित्व निर्वहन की परम्परा
यदि हम यह कहें कि सीएसआर की अवधारणा भारतीय समाज की पुरातन-सनातन वैदिक सांस्कृतिक मूल्यों में निहित सामाजिक दायित्व निर्वहन परम्परा का ही एक विकसित रूप मात्र है तो कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी। जी हां, भारत के संदर्भ में सीएसआर यानी सामाजिक दायित्व की अवधारणा की यदि बात करें तो हमारे यहां पुरातन काल से ही कारोबार संग सामाजिक दायित्वों के निर्वहन की परम्परा रही है। एक मायने में यह परम्परा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग रही है, हमारे ऐतिहासिक और धार्मिक ग्रन्थ इसके साक्षी हैं।
मौर्यकालीन इतिहास में भी सीएसआर संबंधी अवधारणा की झलक स्पष्ट दिखती है। प्रख्यात भारतीय अर्थशास्त्री-दर्शनशास्त्री कौटिल्य ने अपने व्याख्यानों में व्यापार करते समय नैतिक प्रथाओं और सिद्धांतों के पालन पर बल दिया है। भारतीय शास्त्रों में भी यह वर्णन है कि समाज में अपने व्यापारिक कौशल और उद्यम से लाभ अर्जित करने वाला वर्ग अपनी कमाई को वंचित वर्ग के साथ, साझा करता था। वंचित वर्ग और पशु-पक्षियों के प्रति व्यवसायियों और सक्षम नागरिकों में सामाजिक दायित्व की अवधारणा को जागृत व सशक्त करने में भारतीय समाज की मान्यताओं के साथ ही धर्म ने भी एक प्रमुख भूमिका निभाने का कार्य किया है। यही कारण है कि सीएसआर कानून की अनिवार्यता को स्वीकार करना भारत के लिए बहुत मुश्किल नहीं था।
सीएसआर को अनिवार्य करने वाला दुनिया का पहला देश है भारत
भारत ऐसा पहला देश है जहां में कॉरपोरेट सेक्टर के लिए सीएसआर को अनिवार्य न केवल किया गया है, बल्कि इसके लिए बाकायदा एक कानून भी लागू किया गया है। भारत में सीएसआर का कानून 1 अप्रैल 2014 से पूरी तरह से लागू है। यह कानून भारत में कार्य करने वाली सभी देशी-विदेशी कंपनियों पर लागू होता है। सीएसआर को कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत वर्णित प्रावधानों के माध्यम से अनिवार्य कर दिया गया है। इस कानून के अनुसार सालाना 500 करोड़ रुपए की नेटवर्थ या 1000 करोड़ रुपए वार्षिक आया वाली कंपनी जिसका वार्षिक लाभ 5 करोड़ या अधिक हो तो उसे सामाजिक उत्थान के लिए सीएसआर मद में खर्च करना अनिवार्य है। सीएसआर की यह राशि तीन वर्ष के लाभ के औसत लाभ का कम से कम दो प्रतिशत होनी ही चाहिए।
भारत में सीएसआर की प्रक्रिया और मानक
भारत में लागू कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी कानून के तहत इसके दायरे में आने वाली कंपनियों के लिए सीएसआर की प्रक्रिया और मानक तय हैं। कंपनियों को उक्त नीति-नियमों का पालन करते हुए ही अपने सीएसआर संबंधी कार्यों का संचालन-निष्पादन करना होता है। नियमानुसार हर कंपनी में सीएसआर समिति होती है। इस समिति और कंपनी के बोर्ड में यह तय किया जाता है कि कंपनी को कौन-सी गतिविधियां, कब और कहां संचालित करनी हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से तय गतिविधि ही सीएसआर के दायरे में शामिल की जाती हैं। सीएसआर समिति को इसी नीति का पालन करना होता है। नए नियम में सीएसआर समिति के गठन और सीएसआर नीतियों की निगरानी, बोर्ड के निदेशकों की भूमिका आदि को भी परिभाषित कर दिया गया है।