यह साल का दूसरा चंद्रग्रहण होगा. चंद्रग्रहण 5 जून की रात को 11 बजकर 16 मिनट से शुरू हो जाएगा. फिर 6 जून की रात को 2 बजकर 32 मिनट तक रहेगा. यह चंद्रग्रहण यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के ज्यादातर हिस्सों में दिखाई देगा.
चंद्रग्रहण के दौरान कई कार्य वर्जित होते हैं. इन कार्यों को करने में इसलिए मनाही होती है, क्योंकि इससे हमारे जीवन में दुष्प्रभाव पड़ते हैं. चंद्रग्रहण के दौरान बहुत से कार्य वर्जित रहते हैं, जैसे चंद्रग्रहण काल के समय भोजन करना वर्जित होता है, ग्रहण के दिन फल, फूल, लकड़ी पत्ते आदि तोड़ने को मना किया जाता है, इसके अलावा गर्भवती महिलाओं को चंद्र ग्रहण के समय विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसी महिलाओं को चंद्र ग्रहण नहीं देखना चाहिए. चंद्र ग्रहण देखने से शिशु पर दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं. गर्भवती महिलाओं को ग्रहण के समय कैंची, चाकू आदि से कोई वस्तु नहीं काटनी चाहिए. वस्त्र आदि की सिलाई भी नहीं करनी चाहिए. इसके अलावा ग्रहण काल में भोजन करना, जल पीना, केश बनाना, सोना, मंजन करना, वस्त्र नीचोड़ना, ताला खोलना आदि वर्जित होता है.
चंद्रग्रहण से जुड़ी कई मान्यताएं भी हैं. दुनिया भर के देशों में इससे जुड़ी कई दिलचस्प मान्यताएं हैं. जैसे अमेरिका स्थित इन्का साम्राज्य के लोगों का मानना है कि चंद्रग्रहण के दिन एक तेंदुआ चांद पर हमला करता है, और इसी कारण चंद्रग्रहण के दौरान चांद का रंग लाल हो जाता है. यहां के लोग ये भी मानते हैं कि यही तेंदुआ पृथ्वी पर भी आता है और इसे खाने की कोशिश करता है. इसलिए वे तेंदुए से बचने के लिए भालों का प्रयोग करते हैं और जोर जोर से आवाज निकालते हैं. इसके अलावा वहां के लोग अपने कुत्ते को भी पीटते हैं, ताकि उनकी आवाज सुनकर तेंदुआ भाग जाए.
अफ्रीका स्थित बाटामालिबा के लोग का मानना है कि चंद्र और सूरज के बीच की लड़ाई के कारण चंद्रग्रहण लगता है. उनका ये भी मानना है कि उस लड़ाई को खत्म करना चाहिए. इन दिन लोग चांद और सूरज की पुरानी लड़ाई को भूलने की कोशिश करते हैं.
इसके अलावा अमेरिका के हूपा के लोगों की भी चंद्रग्रहण को लेकर एक अजीबो-गरीब मान्याता है. वहां के लोग मानते हैं कि चांद की 20 पत्नियां थीं और ढेर सारे पालतू जानवर, जिनमें ज्यादातर संख्या पहाड़ी शेर और सांप की थी. जब चांद उनको खाना नहीं खिलाता था तो जानवर उसपर हमला कर उसका खून निकाल देते थे, जिससे चांद का रंग लाल हो जाता था. ऐसे में चांद्रग्रहण लगता था. चांद की पत्नी आकर उसे आकर बचाती थीं और उसके खून को इकट्ठा कर उसे ठीक कर देती थी, तब चंद्रग्रहण खत्म होता था. ऐसी मान्यता आज भी वहां चली आ रही है.