प्रसिद्ध इतिहासकार लाल बहादुर वर्मा का कोरोना के कारण देहरादून के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया,वह 83 वर्ष के थे।
वर्मा परिवार में पत्नी के अलावा एक पुत्र और एक पुत्री है। प्रो. वर्मा के पुत्र सत्यम वर्मा ने यूनीवार्ता को बताया कि उनके पिता कुछ दिनों से कोरोना से ग्रस्त थे और उनका इलाज चल रहा था। उनकी किडनी भी प्रभावित हो गई थी। उनका निधन आज तड़के 3 बजे के करीब हुआ और उनका अंतिम भी संस्कार कर दिया गया।
10 जनवरी,1938 को बिहार के छपरा जिले में जन्मे प्रो. वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा आनंदनगर, गोरखपुर में हुयी थी। इसके बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक, लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर और गोरखपुर विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधियां हासिल की थी। लाल बहादुर वर्मा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग में 1991 से 1998 तक अध्यापन किया।
वे इतिहास बोध पत्रिका के संपादक थे और यूरोप के इतिहास पर कई किताबें लिख चुके हैं। इतिहास के बारे में शीर्षक से भी उनकी एक किताब बहुत चर्चित हुई थी। वर्मा सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय थे और सांस्कृतिक मोर्चे पर काम करते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा भी लिखी थी।