आज ऑक्सफ़ोर्ड और हावार्ड जैसी यूनिवर्सिटी विश्व विख्यात हैं.
इन संस्थानों की ख़ास बात यह है कि यहाँ उच्च शिक्षा के लिए अच्छे शिक्षक उपलब्ध होते हैं और लगभग हर नई रिसर्च भी इन्ही महाविद्यालयों से निकलती है.
भारत में भी वर्तमान में कुछ यूनिवर्सिटी मौजूद हैं, जो विश्व में अपना स्थान बनाने की कोशिश कर रही हैं.
लेकिन एक समय था जब भारत विश्वगुरु कहलाया जाता था और भारत को मिली इस उपाधि का श्रेय नालंदा विश्वविधालय को जाता है.
भारत की यह प्राचीन विरासत अपने आप में बड़ी संपन्न थी.
नालंदा विश्व विद्यालय आज यूनेस्को द्वारा घोषित एक ऐतिहासिक विरासत है, यह जगह आज खंडहर है. लगभग 600 ई. मे नालंदा शिक्षा का केंद्र हुआ करता था.
नालंदा बिहार के प्राचीन नगर मगध में स्थित था जो प्राचीन महाजनपदों में प्रशासन का मुख्य केंद्र हुआ करता था.
गुप्त सम्राज्य के कुमार गुप्त ने इस महाविद्यालय की स्थापना लगभग 450 ई. में की थी, उनके शासन में इस महाविद्यालय पर बहुत अधिक धन व्यय किया गया.
नालंदा उस समय अपने स्वर्णिम काल में था.
इसकी खोज से पहले यह माना जाता था कि भारत की कोई सांस्कृतिक विरासत नही है.
ब्रिटिश राज में अलेक्जैंडर कनिंघम ने इस स्थल की खोज की तब जाकर यह जानकारी हुई कि यह क्षेत्र प्राचीन शिक्षा का केंद्र हुआ करता था. जिसमे बाहर के देशों से भी छात्र पढ़ने के लिए आते थे.
शिक्षा के क्षेत्र में जितना आधुनिक नालंदा महाविद्यालय था उस समय में उतना अधिक शायद ही कोई महाविद्यालय हो.
तिब्बत, इंडोनेशिया, पर्शिया, जापान, चीन, मंगोल और भी कई स्थानों से छात्र यहाँ पढ़ने के लिए आते थे.
चीनी यात्री ह्वेन त्सांग, यूजिंग जैसे यात्री जो भारत में यात्रा करने के लिए आये थे उन्होंने इन संस्थानों में अपना अधिकतर समय बिताया था.
उनके लेखों से मिली जानकारी से यह पता चलता है कि इस महाविद्यालय में लगभग छात्रों की संख्या 10000 से ज्यादा थी.
छात्रों को पढ़ाने के लिए मौखिक व्याख्या किसी भी विषय पर बड़ी गहराई से की जाती थी इसके अलावा किसी मुख्य विषय पर विमर्श भी किया जाता था.
लगभग 2000 अध्यापकों द्वारा यहाँ पर पढ़ाया जाता था.
छात्रों को पढ़ाने के लिए बड़े कक्ष भी यहाँ पर होते थे.
नालंदा विश्वविध्यालय का नाम आर्यभट जैसे उस समय के कुछ प्राचीन विद्दानों से जुड़ा हुआ था. इसके अलावा नागार्जुना , महायान, वज्रयान, आर्यदेवा, धर्माकीर्ति, चंद्राकीर्ति जैसे नाम भी इस सूची में शामिल है.
महाविद्यालय में प्रवेश लेना हर किसी के लिए आसान बात नही थी इसमें प्रवेश लेने के लिए कठिन परीक्षा देनी होती थी और यह परीक्षा संस्कृत में ली जाती थी.
प्रवेश परीक्षा द्वारपाल के द्वारा ली जाती थी इसका मतलब यह है कि द्वारपाल के अलावा उसमे पढ़ाने वाले शिक्षक उनसे भी बड़े ज्ञानी थे.
यहाँ पढ़ने वाले छात्रों को संस्कृत का ज्ञान होना बहुत जरूरी था क्यंकि इसी भाषा में भारत के विभिन साहित्यों और ग्रंथों को यहाँ पढ़ा जाता था इसके साथ बौद्ध धर्म की शिक्षा भी यहाँ दी जाती थी.
नालंदा विश्वविध्यालय का क्षेत्र 30 एकड़ में फैला हुआ था.
पक्की इंटों से बना यह ढांचा बिलकुल आज की इमारतों की तरह बहुत ही मजबूत बना हुआ था. इसमें अशोक द्वारा स्थापित किये गये कई मंदिर भी मिले है जिनका निर्माण विहारों के रूप में करवाया गया था.
माना जाता है कि यहाँ पर 8 इमारतें मौजूद थी.
यहाँ पर बड़े-बड़े पुस्तकालय भी मौजूद थे.
यह पुस्तकालय भी प्राचीन समय का सबसे बड़ा पुस्तकालय था जो की 9 मंजिला होता था.
पुस्तकालय को तीन भागों में विभाजीत किया गया था. जिनके नाम थे
रत्न रंजक, रत्नोदधि, रत्नसागर ,
इस तीनो खण्डों में साहित्य,वेद, ज्योतिष, विज्ञान, गणित, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, आर्किटेक्चर,
आर्युवेद जैसी पुस्तकें मिलाकर लगभग 3 लाख से अधिक पुस्तके पुस्तकालय में मौजूद थी.
बाहर से आये विद्दान इन पुस्तकों का अनुवाद करते थे.
आवासीय सुविधा
बिल्कुल आज के विश्विद्यालयो की तरह ही हॉस्टल की सुविधा यहाँ उप्लाब्ध होती थी,
इन होस्टलों के लिए यहाँ पर छात्रों से कोई फीस नही ली जाती थी.
होस्टल में 300 से ज्यादा कमरे यहाँ मौजूद थे.
कमरों में सोने के लिए पत्थर का बना एक बैड होता था.
कमरों में सभी छात्रों के लिए अलग से रसोई भी बनी होती थी.
एक कमरे में सामान्यत 2 छात्र रहते थे.
सामान को रखने के लिए यहाँ अलग से लोकरों की व्यावस्था होती थी.
नालंदा एक समय अपने चरम पर थी लेकिन अक्सर लोगों की रूचि रहती है कि इतने भव्य महाविद्यालय का नाश कैसे हो गया.
लेकिन इस सर्वनाश के पीछे एक पागल राजा की सनक थी जिसका नाम था बख्तियार खिलजी.
उसने भारत में अफगानिस्तान से प्रवेश किया था.
मगध में इसके शासन काल में भारत में बोद्ध धर्म अपने पतन की और था जिसके कारण बड़ी संख्यां में बोद्ध स्थलों को नुक्सान पहुचाया गया था.
इसी कड़ी में नालंदा विश्विद्यालय का भी नाम आता है.
कहा जाता है कि जब एक बार बख्तियार खिलजी बीमार हो गया तो उसने हर जगह अपना इलाज़ करवाया लेकिन वह कहीं भी ठीक नही हो पा रहा था.
बादमे उसको जानकारी हुई की नालंदा में कई ऐसे वैध है जो उसकी बिमारी ठीक कर सकते है. यह बात सुनकर बख्तियार खिलजी नालंदा पंहुचा वहां वैध ने उसको इलाज के बारे में समझाया.
बख्तियार खिलजी एक कट्टर मुस्लिम था जिस कारण उसने शर्त रखी कि वह अपना इलाज तभी करवाएगा जब बिना किसी भारतीय संस्कृति का उपयोग करे बिना उसका इलाज हो.
यह बात बात का हल निकालने के लिए वैध ने उनको एक कुरआन पढ़ने को दी और उसके पन्नों पर दवाई का लेप लगा दिया
खिलजी उस कुरआन के पन्ने थूक लगाकर पलटता था जिस कारण उस पर लगा लेप खिलजी के शारीर में प्रवेश करता था और कुछ दिनों में उसे आराम आ गया.
जब वह ठीक हुआ तो वह हैरान था और जानना चाहता था कि वह कुरान पढ़ कर कैसे ठीक हुआ . बाद में उसको पता चला कि वैध ने उसके पन्नों पर लेप लगाया था.
इस बात से क्रोधित होकर उसने नालंदा विश्विद्यालय को जलवा दिया जिसमे इस ऐतिहासिक स्थाल का विनाश हो गया.
इसकी पुस्तके और उनका ज्ञान 6 महीनों तक लगातार जलता रहा.
एक सनकी राजा के क्रोध ने भारत के प्राचीन ज्ञान को विलुप्त कर दिया,
ऐसा ज्ञान जो आज भी भारत के अतीत से जुडी कई जानकारियाँ हमे दे सकता था.
Web Title: Oldest University Of World Nalanda