एमएसएमई उद्द्यमों के वर्गीकरण की नई परिभाषा
1 जुलाई से लागू होगी. एमएसएमई की नई परिभाषा, एमएसएमई की परिभाषा बदलने का एलान केंद्र सरकार ने किया था. जिससे 6 करोड़ से अधिक सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को लाभ मिलने की उम्मीद है. नई परिभाषा और मानदंड एक जुलाई 2020 से अमल में आ जायेंगे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति ने सोमवार को एमएसएमई उद्यमों के वगीकरण की नई परिभाषा को मंजूरी दे दी है सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ने देश में एमएसएमई की परिभाषा और मानदंडों में किये गये बदलावों को अमल में लाने के लिये अधिसूचना जारी कर दी है पीएम नरेंद्र मोदी ने सीआईआई के वार्षिक सत्र में कहा, भारत में मैन्युफैक्चरिंग, 'मेक इन इंडिया' और रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है।
केन्द्र ने पिछले एक महीने में दो बार एमएसएमई के वर्गीकरण के मानदंडों में बदलाव किया है. ताजा बदलाव के मुताबिक, 50 करोड़ रुपये तक के निवेश और 250 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने वाली इकाइयां मध्यम दर्जे का उद्यम कहलाएंगी. सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों की परिभाषा भी बदली गई है. नई परिभाषा के मुताबिक मैन्युफैक्चरिंग या सेवा क्षेत्र की कोई भी यूनिट जिसमें एक करोड़ रुपये का मशीनरी निवेश और पांच करोड़ रुपये तक का सालाना टर्नओवर है. उसे माइक्रो यानी सूक्ष्म इकाई माना जायेगा. वहीं, 10 करोड़ रुपये तक का निवेश और 50 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने वाली इकाई स्माल यानी ‘लघु’उद्यम श्रेणी में आयेगी. नई परिभाषा में सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस के बीच के फर्क को खत्म कर दिया है. पहले दोनों क्षेत्र की कंपनियों के लिए निवेश और टर्नओवर की सीमा अलग-अलग थी. इसके अलावा सरकार ने एक्सपोर्ट को टर्नओवर से बाहर कर दिया है. इस तरह से छोटी कंपनियों को दोहरा लाभ मिलने की उम्मीद है. एमएसएमई मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि नई परिभाषा से एमएसएमई क्षेत्र को आगे बढ़ने में मदद मिलेगी. इसमें विशेषतौर से यह प्रावधान काफी उत्साहवर्धक होगा जिसके तहत निर्यात कारोबार को उनके कुल कारोबार की गणना में शामिल नहीं किया जायेगा. इससे एमएसएमई को अधिक से अधिक निर्यात प्रोत्साहन प्राप्त होगा. इससे छोटी इकाईयां अधिक निर्यात कारोबार कर सकेंगी. पहले इन यूनिटों को इस बात की चिंता रहती थी कि निर्यात करने से उनका टर्नओवर बढ़ेगा और उनका एमएसएमई का दर्जा खत्म हो सकता है. एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, ‘‘सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय ने देश में एमएसएमई की परिभाषा और मानदंडों में किये गये बदलावों को अमल में लाने के लिये अधिसूचना जारी कर दी. है। ’सरकार एयर कंडीशनर और उसके कलपुर्जों, फर्नीचर और लेदर फुटवियर के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 16-17 अरब डॉलर (लगभग 1.25 लाख करोड़ रुपये) के निवेश के प्रस्तावों पर विचार कर रही है.सरकार चाहती है इन चीजों को बनाने में भारत आत्मनिर्भर बने. इसलिए सरकार ने इन चीजों पर आयात शुल्क बढ़ाने पर भी विचार कर रही है. भारत में मैन्युफैक्चरिंग, 'मेक इन इंडिया' और रोजगार के अवसर पैदा करने वाले क्षेत्रों की पहचान की गई है. इन तीनों क्षेत्रों पर तेजी से काम शुरू हो चुका है. फर्नीचर, एयर कंडीशनर, लेदर एवं फुटवियर और एसी की बात करें तो हम अपनी मांग का 30% से अधिक आयात करते हैं" इसे हमें घटाने की जरूरत है. इसी तरह से लेदर की बात करें तो वैश्विक स्तर पर हम लेदर निर्यात में हम काफी पीछे हैं जबकि लेदर उत्पादन में हम दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं. वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी के एमडी पवन गोयनका के नेतृत्व में सीईओ के एक समूह के साथ कई दौर की बातचीत की है. इस दौरान क्लस्टर लेवल पर मैन्युफैक्चिरंग को बढ़ावा देने की बात निकलकर आई है हालांकि, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है और आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने इस पैकेज की विस्तार से जानकारी दी, इस पैकेज के माध्यम से MSME सेक्टर के लिए बड़े ऐलान किये गए हैं, वित्त मंत्री ने कहा कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. यह सेक्टर करीब 12 करोड़ लोगों को रोजगार देता है. इस लिए इसे रहत पहुंचाने के लिए 3 लाख करोड़ रुपये का लोन इस सेक्टर को दिए जाने की घोषणा की गई है. इस लोन की समयसीमा 4 साल है, जबकि 12 महीने तक इसमें मूलधन भी चुकाने की जरुरत नहीं है. इस आर्थिक पैकेज से लगभग 45 लाख MSME उद्योगों को लाभ मिलेगा. वहीँ आत्मनिर्भर पैकेज के ऐलान के बाद सरकार देश की लाखों कंपनियों को एक और राहत देने जा रही है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को इनसॉल्वेंसी एवं बैंकरप्सी कोड में संशोधन से जुड़े अध्यादेश लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है. इस अध्यादेश के आने के बाद आरबीआई की तरफ से घोषित मोरेटोरियम पीरियड के बाद भी अगर कंपनियां 6 महीने तक लोन नहीं चुका पाती हैं उन्हें डिफाल्टर नहीं माना जाएगा. दरअसल, सरकार ने लॉकडाउन के चलते संकटों का सामना कर रही कंपनियों को कई तरीकों से मदद की है. इनमें लोन चुकाने के लिए 6 महीने का मेरोटोरियम दिया गया है यानी अगर कोई कंपनी इस अवधि में लोन नहीं चुका पाती है तो उस पर दबाव नहीं बनाया जाएगा. यह नियम 25 मार्च के बाद से लागू माना जाएगा. यह मोरेटोरियम अवधि 30 सितंबर तक के लिए है. अब सरकार इनसॉल्वेंसी कोड में बदलाव के जरिये इन कंपनियों को 30 सितंबर के बाद भी 6 महीने की मोहलत देना चाहती है यानी यह अध्यादेश अमल में आया गया तो मार्च 2021 तक लोन का भुगतान न कर पाने वाली कंपनी को डिफाल्टर नहीं माना जाएगा. फिलहाल सितंबर अंत तक नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में बैंकों या अन्य लेनदारों, जैसे आपूर्तिकर्ताओं, द्वारा किसी भी इनसॉल्वेंसी एक्शन को शुरू करने पर रोक है. नए अध्यादेश को लेकर कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय द्वारा एक औपचारिक घोषणा अगले कुछ दिनों में होने की उम्मीद है. इनसॉल्वेंसी कोड में संशोधन कॉर्पोरेट क्षेत्र को बड़ी राहत देगा. हालांकि, एक शीर्ष बैंकर ने कहा कि इस कदम की जरूरत नहीं थी, क्योंकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कंपनियों को छह महीने का मेरोटोरियम पहले से दे रखा है. इसके अलावा, कई दूसरे बैंकरों ने कहा, इससे लोन की रिकवरी गड़बड़ाएगी. इनसॉल्वेंसी के खतरे के डर से पिछले कुछ सालों से कंपनियां समय से कर्ज चुका रही थीं क्योंकि इस कानून में प्रमोटर को कंपनी से बाहर करने का भी कानून है. इसके अलावा, सरकार सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के लिए भी दिवालिया कानून में बदलाव का एक सरल ढांचा तैयार कर रही है. कार खरीदने के लिए ग्राहकों को 'टीजर' लोन ऑफर किए जा रहे हैं. इसमें लुभावनी ब्यायज दरों पर लोन दिया जाता है. इसके लिए ऑटो कंपनियों ने कई बैंकों के साथ गठजोड़ किया है. टीजर लोन पर भारतीय रिजर्व बैंक का रुख काफी सख्तम रहा है. लेकिन, अब उसने इसमें नरमी के संकेत दिए हैं. कोरोना महामारी के कारण अर्थव्य वस्था में मंदी के चलते केंद्रीय बैंक ने ऐसा किया है. फिलहाल मारुति सुजुकी, हुंडई और मर्सिडीज बेंज ने ऐसी स्की में लॉन्चअ की है. इनकी देखादेखी आने वाले समय में और भी ऑटो कंपनियां इस तरह की स्कीीम शुरू कर सकती हैं. टीजर लोन क्यार है? टीजर लोन के तहत पहले कुछ महीनों या साल में ब्याॉज की दरें बहुत कम रखी जाती हैं. इसके बाद धीरे-धीरे रेट बढ़ते जाते हैं. इसका मुख्ये मकसद ग्राहकों को लुभाना होता है. आरबीआई कई सालों से इस तरह के लोन के पक्ष में नहीं रहा है. वह कह चुका है कि इनकी शर्तें पारदर्शी नहीं होती हैं. 2007-08 में अमेरिका में आर्थिक मंदी के दौरान इनकी अहम भूमिका रही थी. आरबीआई के रुख में आया बदलाव बैंकरों ने बताया कि यह अलग बात है कि आरबीआई ने कभी भी टीजर लोन पर रोक नहीं लगाई. इस तरह के लोन को लेकर रिजर्व बैंक के प्रतिकूल रुख के चलते बैंक इन्हेंट देने से कतराते रहे हैं. बैंकिंग क्षेत्र के पांच सूत्रों ने बताया कि कारों की बिक्री को बढ़ाने के लिए अबू इसे लेकर एक राय है कि प्रमोशनल टीजर लोनों का सहारा लिया जाए. कार बनाने वाली कंपनियों को डर है कि कोविड-19 संकट के कारण चालू वित्त वर्ष में बिक्री में 45 फीसदी तक गिरावट आ सकती है. आरबीआई के बदले रुख से अवगत तीन सूत्रों ने बताया कि कोविड-19 के चलते लोगों को आसान शर्तों के साथ लोन की जरूरत पड़ सकती है. इसके बाद वे ज्याोदा पेमेंट कर सकते हैं. यह स्कीोम मौजूदा समय की तर्ज पर है।.