जॉन अमोस कोमेनियस ने शिक्षा के पारम्परिक और घिसे-पिटे पैटर्न को तोड़कर उसको आम इन्सान की रोजमर्रा की जिन्दगी से जोड़ने का काम किया. जॉन अमोस को लोग आधुनिक शिक्षा के जनक के रूप में जानते हैं उनका पूरा नाम जॉन अमोस कमेनियस था.
एक वक्त था जब शिक्षा कुछ खास परिवारों और लोगों तक ही सीमित थी. इसका स्वरूप इतना जटिल था कि आम इन्सान को इसे समझना लगभग नामुमकिन था.
ये दौर था 15वीं शताब्दी का जब कुछ खास वर्ग के लोग समाज की दिशा और दशा तय करतें थे.
ऐसे दौर में 28 मार्च 1592 को चेक गण्राज्य के मोराविया में जन्म हुआ जॉन अमोस कमेनियस का.
जॉन कमेनियस एक बेहद गरीब परिवार मे पैदा हुए थे. पैसों के अभाव के कारण उनका बचपन बेहद मुश्किलों और परेशानियों में बीता. तमाम परेशानियों और मुश्किलों के सामने आने के बाद भी वो शिक्षा हासिल करते रहे. उन्होंने स्वयं अध्ययन करके तमाम विषयों में महारत हासिल कर ली.
अपने जीवन में उन्होंने जो देखा और महसूस किया उसने उनकें अन्दर एक फिलॉसफी को जन्म दिया. इस फिलॉसफी का नाम था पैंसोफिज्म. कुछ लोगों का ये भी मानना हैं कि उन्होंने पैंसोफिज्म नाम के किसी धर्म की शुरूआत की थी जिसका मकसद था हर वक्त कुछ ना कुछ सीखने की कोशिश करते रहना.
पैसोफिज्म को मानने वालो को पैंसोफिस्ट कहा गया. पैंसोफिस्ट का मतलब होता है सर्वज्ञानी. उन्होंने अपने दर्शन में एक इन्सान को पैंसोफिस्ट बनने के लिए प्रेरित किया.
आज जो स्कूलों में कक्षाओं के स्तर दिखाई दे रहे हैं वो जॉन कमेनियस ने ही सुझाये थे.
जिसमें नर्सरी स्कूल 6 वर्ष की आयु तक (किंडरगार्टन), 6 से 12 वर्ष की आयु के बच्चों के स्कूल (प्राथमिक विद्यालय), 12 से 18 वर्ष की उम्र के लिए लैटिन स्कूल (माध्यमिक विद्यालय) और फिर विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा देने की बात सुझाई गई थी.
अपने पूरे जीवन के दौरान जॉन अमोस कमेनियस ने धर्म, विज्ञान और संस्कृति को एक दूसरे के साथ जोड़ने का काम किया.
दुनिया के तमाम विषयों और धर्मो का अध्ययन करने के बाद उन्होंने एक किताब लिखी जिसका नाम था ऑर्बिस पिक्टस.
ये पहली ऐसी किताब थी जिसमें बच्चों को पढ़ाने के लिए तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया था.
ये किताब 200 वर्षो तक यूरोप का एक मानक पाठ बनी रही. इस किताब ने स्कूलों में बच्चों के पढ़ाने के तरीकों को बदल कर रख दिया.
उन्होंने शिक्षा का मॉडल देते हुए ये समझाने की कोशिश करी कि पाठ्यक्रमों की सामग्री बच्चों की सीखने की क्षमता के अनुकूल होनी चाहिए.
बच्चों को चित्रों के सहारे चीज़ो को समझाने की कोशिश करनी चाहिए.
कमेनियस के अनुसार अगर कोई बच्चा किसी बात को समझने में असफल हो रहा हां तो उसे दंडित नहीं करना चाहिए बल्कि उसकी मदद और प्राेत्साहित किया जाना चाहिए.
बच्चों को जो कुछ भी पढ़ाया जाये, उसका व्यावहारिक उपयोग करके बच्चों को दिखाना चाहिए. जहां मुमकिन हो प्रर्दशन और अवलोकन आदर्श होना चाहिए.
कमेनियस के ये विचार अत्यधिक आधुनिक थें इसी वजह से इसे आज तक ठीक से अमल में नही लाया जा सका है.
जॉन कमेनियस ने शिक्षा पर कई पाठ्य पुस्तकें लिखीं. उन्होंने दौ सौ से अधिक किताबें लिखी. अपनी हर किताब में उन्होंने बच्चों की शिक्षा पर खास ध्यान दिया. उन्होंने बच्चों को ईसा मसीह की आंखें बताया. उनके अनुसार बच्चें ईसा मसीह के सच्चें उत्तराधिकारी होंगे जो परमेश्वर के आने पर राज्यों में शासन करेंगे और राज्यों को शैतानों से आजाद करेंगे.
हालाँकि, कमेनियस के अधिकांश शैक्षिक प्रस्तावों को आज दुनिया भर में स्वीकार किया जाता है, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके काम की वस्तुतः अनदेखी की गई.
दुनिया भर में आधुनिक शिक्षा के जनक के रूप में पहचाने जाने वाले जॉन अमोस कमेनियस की मृत्यु 28 मार्च 1592 में हुई.
1. पूरी दुनिया के लिए एक ही शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए.
2. कुछ भी सीखने के लिए अनुशासन की आवश्यकता होती है.
3. सिर्फ लेटिन भाषा में शिक्षा ना देकर बच्चों को उनकी अपनी भाषा में भी शिक्षा देनी चाहिए.
4. यह शिक्षक की जिम्मेदारी है कि वह स्कूल में ऐसा माहौल बनाये जिसमें बच्चे खुश रहें.
5. जो कुछ भी बच्चों को पढ़ाया जाये उसे प्रेक्टिकली समझाने का प्रयास करना चाहिए.
6. स्कूलों को उनकी रूचि के अनुसार पढ़ने की पूरी छूट देनी चाहिए.
7. सभी विषयों की शिक्षा को एकीकृत किया जाना चाहिए. विषयों के विखंडन के बजाय, विषयों का कनेक्शन होना चाहिए.
8. पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, न कि तुच्छ, बेकार तथ्यों पर.
9. प्रत्येक विषय को सरल से जटिल तक क्रमिक स्तर पर पढ़ाया जाना चाहिए.
10. बच्चों को प्रतिस्पर्धा के प्रति प्रोत्साहित करना चाहिए. प्रतिस्पर्धा बच्चों को कड़ी मेहनत करने की चुनौती देती है.
Web Title: Father of Modern Education