बहुआयामी अभिनेता इरफान खान (53) का लंबी बीमारी के बाद 29 अप्रैल को निधन हो गया। इरफान बीते काफी समय से कैंसर से पीड़ित थे और तबीयत बिगड़ने पर 28 अप्रैल को उन्हें मुंबई स्थित कोकिलाबेन धीरू भाई अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें पेट संबंधी समस्या के कारण आईसीयू में भर्ती करवाया गया, डॉक्टर्स के मुताबिक इरफान को कोलोन इन्फेक्शन हुआ था। आतों में दर्द और सूजन के कारण उनकी हालत बिगड़ गई और सांस लेने में भी मुश्किल होने लगी थी। अस्पताल में ही उनकी मौत हो गई। प्रतिभाशाली अभिनेता इरफान खान की असमय मौत से हिन्दी सिनेमा जगत को बड़ा झटका लगा है।
न्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर रोग से थे पीड़ित
बता दें कि वर्ष 2018 में इरफान न्यूरोइंडोक्राइन ट्यूमर रोग से पीड़ित होने का खुलासा हुआ था, जिसके बाद उन्होंने करीब सालभर तक ब्रिटेन में इलाज कराया और ठीक होकर वापस भारत लौटकर काम करना शुरू कर दिया था। इंग्लिश मीडियम उनकी आखिरी रिलीज फिल्म थी। गौरतलब है कि बीती 25 अप्रैल को ही इरफान खान की मां सईदा बेगम का निधन हो गया था और कोरोना के कारण लॉकडाउन लागू होने की वजह से वह उनके सुपुर्देखाक में भी शामिल नहीं हो सके थे।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से लिया प्रशिक्षण
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले चंद अभिनेताओं में शुमार थे। मूलत: जयपुर निवासी इरफान को बचपन से ही एक्टिंग का शौक था। हालांकि वह क्रिकेटर बनना चाहते थे, लेकिन बाद में उनका रूझान अभिनय की तरफ बढ़ गया और वे रविन्द्र नाट्यमंच से जुड़ गए। बाद में उन्होंने एक्टिंग में ही करियर बनाने का फैसला करते हुए एनएसडी में दाखिला ले लिया। पढ़ाई पूरी होने के बाद उन्होंने काम की तलाश में मुंबई की तरफ रुख किया। इरफान लंबे समय तक रंगमंच से भी जुड़े रहे।
छोटे परदे से करियर शुरू करके बड़े परदे पर छाने वालों में रहे शामिल
अपने संजीदा और बेहतरीन अभिनय के लिए जाने-पहचाने जाने वाले इरफान खान छोटे परदे से करियर शुरू करके बड़े परदे पर छाने वालों में शामिल रहे।इरफान खान का नाम शाहरूख खान, आशुतोष राणा, मनोज वाजपेयी, रोनित राय, आर.माधवन आदि उन चंद अभिनेताओं में शुमार रहे, जिन्होंने अपने करियर की शुरुआत छोटे परदे से की और फिर अपनी प्रतिभा की बदौलत बड़े परदे पर छा गए। इरफान ने टीवी सीरियल स्पर्श, कथा सागर, बनेगी अपनी बात, श्रीकांत, चंद्रकांता, चाणक्य और डर समेत अनेक टीवी शोज में छोटे-बड़े किरदार निभाए और फिर बड़े परदे पर अपना असर दिखाया।
टीवी धारावाहिक भारत एक खोज से किया था डेब्यू
इरफान खान ने बतौर अभिनेता टीवी धारावाहिक भारत एक खोज से छोटे परदे पर अपना डेब्यू किया था। हालांकि शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित धारावाहिक टीवी सीरियल श्रीकांत में उनके निभाए नकारात्मक किरदार ने उन्हें बतौर अभिनेता पहचान देने का काम किया। टीवी सीरियल डर में इरफान ने एक साइको किलर का रोल निभाया था। टीवी सीरियल चाणक्य में इरफान खान ने सेनापति भद्रशील का अहम रोल निभाया था। टीवी धारावाहिक चंद्रकांता में इरफान खान ने सीरियल में बद्रीनाथ और सोमनाथ की दोहरी भूमिका निभाई थी। यह सीरियल इरफान के करियर में मील का पत्थर साबित हुआ। टीवी सीरियल जय हनुमान में इरफान ने महर्षि वाल्मीकि की भूमिका निभाई थी।
जमीन से उठकर छुआ आसमान
राजस्थान के जयपुर में 7 जनवरी 1967 को जन्मे इरफान ने फर्श से अर्श तक पहुंचने वाली कहावत को चरितार्थ करने का काम किया। उनके पिता का जयपुर में टायर व्यापार था। उन्होंने अभिनय की दुनिया में जमीन से उठकर आसमान छुआ। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत टीवी पर भारत एक खोज, श्रीकांत, कहकशां, चाणक्य, चंद्रकांता, जय हनुमान और डर आदि धारावाहिकों में छोटे-मोटे किरदारों से की और बाद में कई फिल्मों में भी मामूली भूमिकाएं करते हुए अपनी मेहनत के बूते वह बगैर रुके कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ते चले गए। इरफान ने क्या कहें, मानो ना मानो और डॉन समेत कई टीवी शो भी होस्ट किए थे। इरफान ने हिंदी सिनेमा के साथ ही हॉलीवुड फिल्मों में भी अपने अभिनय का बखूबी लोहा मनवाया। उन्होंने करीब आधा दर्जन अंग्रेजी फिल्मों में अभिनय किया।
अपनी प्रतिभा के बूते बनाई पहचान
एनएसडी से पढ़ाई खत्म करने के बाद इरफान ने मुंबई में ठौर तलाशा। करियर के शुरुआती दिनों में उन्होंने काफी संघर्ष किया। टीवी सीरियल में पहले छोटे-मोटे रोल मिला करते थे। वर्ष 1988 में मीरा नायर ने फिल्म 'सलाम बॉम्बे' में इरफान को मौका दिया। करियर के शुरूआती दौर में मिली फिल्म 'सलाम बॉम्बे' में हालांकि इरफान को एक बहुत छोटा सा रोल मिला, लेकिन अपने इस किरदार से लोगों का ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रहे। वर्ष 2001 में आई फिल्म 'द वारियर' में भी इरफान ने लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। वर्ष 2003 में उन्हें मकबूल फिल्म से पुख्ता पहचान मिली। इस फिल्म में ओम पुरी, पंकज कूपर और नसीरुद्दीन शाह जैसे दिग्गज अभिनेताओं के बीच अपने बेजोड़ अभिनय से मौजूदगी दर्ज कराई। वर्ष 2004 में 'हासिल' में नकारात्मक किरदार को इरफान ने बखूबी निभाया। इसके बाद वर्ष 2005 में निर्माता निर्देशक महेश भट्ट ने अपनी फिल्म 'रोग' में इरफान खान को बतौर नायक पहली बार काम करने का मौका दिया। हालांकि यह फिल्म कामयाब नहीं हो सकी, लेकिन इरफान ने अपने अभिनय से हर किसी का ध्यान आकर्षिक किया। इसके बाद इरफान ने फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा और अभिनय की दुनिया में कदम दर कदम नित-नए प्रतिमान स्थापित करने के साथ ही प्रगति के नए आयाम स्थापित करते रहे।
करीब चार दर्जन से अधिक हिन्दी-अंग्रजी फिल्मों में किया काम
संजीदा अभिनेताओं में शुमार इरफान खान ने अपने जीवंत अभिनय से विभिन्न फिल्मों में निभाए किरदारों में जान फूंकने का काम किया। अपने करीब 25 साला करियर में करीब तीन दर्जन फिल्मों में तमाम तरह के किरदार निभाए। इरफान की आखिरी फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' 13 मार्च को रिलीज हुई थी। इरफान ने सलाम बॉम्बे, प्रथा, हासिल, द वारियर, ए माइटी हार्ट, स्लमडॉग मिलियनेयर, द अमेजिंग स्पाइडर मैन, द नेमसेक, दार्जिलिंग एक्सप्रेस, जुरासिक वर्ल्ड, इन्फर्नो, हैदर, पान सिंह तोमर, कसूर, मकबूल, आन, खाकी, रोग, साहिब बीवी और गैंगस्टर, मुंबई मेरी जान, तलवार, लाइफ इन ए मेट्रो, ब्लैकमेल, रॉन्ग या राइट, पजल, नॉक आउट, कारवां, यूं होता तो क्या होता, थैंक यू, सात खून माफ, एसिड फैक्ट्री, न्यूयॉर्क, जज्बा, लंच बॉक्स, लाइफ ऑफ पाई, बिल्लू बारबर, हिन्दी मीडियम, मदारी, करीब-करीब सिंगल, गुंडे, डीडे, पीकू, अंग्रेजी मीडियम समेत करीब तीन दर्जन से अधिक हिन्दी-अंग्रजी फिल्मों में अपनी अभिनय प्रतिभा के बूते हिन्दी सिनेमा जगत में अपनी एक अलग पहचान कायम की।
एनएसडी में पढ़ाई के दौरान परवान चढ़ी इरफान-सुतापा की मुहब्बत
इरफान-सुतापा की मुहब्बत एनएसडी में पढ़ाई के दौरान परवान चढ़ी। एनएसडी में दाखिला लेने के बाद इरफान की मुलाकात वहां पढ़ रहीं सुतापा सिकदर से हुई। जान-पहचान के बाद दोस्ती के साथ शुरू हुआ सिलसिला बातों और मुलाकातों के बीच जल्द ही प्यार में बदल गया। इरफान और सुतापा सिकदर ने 23 फरवरी 1995 को शादी की थी। उनके दो बेटे बाबिल और अयान हैं।
पद्मश्री और राष्ट्रीय पुरस्कार समेत मिले विभिन्न पुरस्कार
इरफान खान को उनकी अभिनय प्रतिभा के लिए पद्मश्री, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और फ़िल्मफेयर पुरस्कार समेत विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुक है। वर्ष 2004 में हासिल फिल्म के लिए फिल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ विलेन के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। भारत सरकार ने वर्ष 2011 में इरफान को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। इरफान खान को वर्ष 2012 में हुए 60वे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में फिल्म पान सिंह तोमर में अभिनय के लिए श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार दिया गया था।
बकरीद पर कुर्बानी के थे विरोधी
अपने संजीदा अभिनय के लिए जाने-पहचाने जाने वाले इरफान एक उम्दा अभिनेता होने के साथ ही एक बेहतरीन इन्सान भी थे। मुस्लिम होने के बावजूद वह बकरीद पर बेजुबान जीवों की कुर्बानी देने के खिलाफ खुल्लमखुल्ला आवाज बुलंद करने वालों में थे। पश्तून मुस्लिम परिवार में जन्मे होने के बावजूद इरफान को मांसाहार पसंद नहीं था। बताया जाता है कि इरफान के ऐसे नजरिए को लेकर उनके पिता अक्सर कहते थे कि हम पठानों के परिवार में ना मालूम यह ब्राह्मण कैसे पैदा हो गया। इरफान का कहना था कि पहले किसी जीव को पालो और फिर उसे काट-मारकर खा जाओ यह कहां की रवायत है। कुर्बानी समेत अपने ऐसे अनेक उदारवादी विचारों को लेकर इरफान खान को कई बार इस्लामिक संगठनों के विरोध का भी सामना करना पड़ा था।
''मै इरफान हूं और मेरा धर्म हिन्दुस्तान है''
इरफान मजहब के मुकाबले राष्ट्र को प्राथमिकता देने वाले भारतीयों में से एक थे। एक बार मीडिया से बात करने के दौरान एक सवाल के जबाव में उन्होंने यह स्पष्ट रूप से कहा था ''मै इरफान हूं और मेरा धर्म हिन्दुस्तान है''। टोंक के नवाबी खानदान से जुड़े इरफान का पूरा नाम साहबजादे इरफान अली खान था, लेकिन बाद में उन्होंने इसमें से 'साहबजादे' और 'अली' को हटा दिया था। बाद में 'खान' को भी हटाकर महज इरफान ही लिखने लगे थे। उनका कहना था कि आपके काम और कर्म ही आपको शक्तिशाली बनाते हैं, नाम या उपनाम नहीं, लेकिन पासपोर्ट में उपनाम और धर्म अनिवार्य है इसलिए लिखना पड़ता है।