अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भारत को लेकर चलाया तथ्यहीन और नकारात्मक एजेंडा
कोरोना संक्रमण महामारी के पहले दौर में भारत ने इस विषाणु पर बेहतर तरीके से काबू पाया। कोरोनारोधी दो वैक्सीन कोवीशील्ड और को-वैक्सिन के टीकाकरण को विश्व का सबसे बड़ा अभियान शुरू किया गया और अब तक करीब 18 करोड़ टीके लग चुके हैं। चीनजन्य कोरोना विषाणु के विरुद्ध युद्ध में भारत की इस विजय को बहुत से विरोधी तत्व और दुश्मन देश पचा नहीं पा रहे हैं। साथ ही महामारी की आड़ में मोटी कमाई का मौका तलाश रही फार्मा सेक्टर की विभिन्न बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी बेचैन हैं। परिणाम स्वरूप डिजिटल मीडिया समेत देशी-विदेशी मीडिया के एक वर्ग के जरिए भारत के विरुद्ध प्रचार को सुनियोजित तरीके से तथ्यहीन और नकारात्मक एजेंडा चलाया जा रहा है। इसमें कई साइंस जर्नल भी शामिल बताए जाते हैं।
कोविड- 19 की दूसरी लहर पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा विकराल रही। इसके बाद तो सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो, खबरों के साथ ही कुछेक देशी-विदेशी अखबारों और वेबसाइट पर भारत विरोधी अभियान ने पहले के मुकाबले रफ्तार पकड़ रखी है। कभी कोरोना से निपटने में भारत सरकार को नाकाम करार दिया जा रहा है तो कभी हमारी वैक्सीन को कमतर बताया जा रहा है और कभी कोरोना विषाणु के नए वेरिएंट को भारतीय वेरिएंट नाम दे दिया जा रहा है। बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स से संचालित एक वेबसाइट ईयू रिपोर्टर ने बीते दिनों ही भारत विरोधी इस एजेंडे को लेकर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। ईयू रिपोर्टर ने अपनी इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में बिना तथ्यों के आधार पर भारत के खिलाफ नकारात्मक रिपोर्ट और लेख प्रकाशित किए जा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार भारत सरकार और भारतीय वैक्सीन के विरुद्ध दुष्प्रचार में ऐसी फार्मा कंपनियों की अहम भूमिका है जो कोरोनारोधी भारतीय वैक्सीन में खोट-खामियां बताकर अपने टीके को बाजार में महंगा बेचकर मोटा मुनाफ कमाने को आतुर हैं। वेबसाइट ने साइंस जर्नल लांसेंट की आलोचना करते हुए कहा है कि इस पत्रिका ने भारत से संबद्ध लेख को लेकर तथ्यों का विश्लेषण किए बिना निष्कर्ष निकाला। अपनी रिपोर्ट में इस वेबसाइट ने विज्ञान की जगह राजनीतिक लेख प्रकाशित करने वाली पत्रिका लांसेंट की एशिया जोन की संपादक के चीनी मूल के होने का हवाला भी दिया है। डिजिटल मीडिया पर तैर रही खबरों पर यकीन करें तो जॉर्ज सोरॉस और बिल गेट्स जैसी हस्तियां भी भारत विरोधी दुष्प्रचार से संबद्ध हैं।
दुष्प्रचार के पीछे कूटनीति और राजनीति के साथ ही 'कारोबारी तंत्र' की है बड़ी भूमिका
भारत के खिलाफ देशी-विदेशी समाचार तंत्र और डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों पर चलाए जा रहे दुष्प्रचार के पीछे कूटनीति और राजनीति के साथ ही 'कारोबारी तंत्र' की भी बड़ी भूमिका है। दरअसल कुछ अरसा पहले तक भारत मेडिकल सेक्टर समेत अपनी बहुत सी जरूरतें पूरी करने को विदेश से आयात पर आश्रित था, लेकिन अब कई क्षेत्रों में हम आत्मनिर्भर होने की तरफ तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। नतीजतन चीन जैसे कई देशों और अनेक विदेशी कंपनियों का अरबों डॉलर का कारोबार छिन रहा है। ऐसे में भारत के प्रति दुर्भावना रखने वाले देश, कारोबारी और कंपनियां अपने प्यादों के जरिए दुष्प्रचार में लगी हैं। कुछेक भारतीय विपक्षी दल भी वर्तमान सरकार की छवि को धूमिल करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं।
ऑक्सीजन संकट से टूटी-छूटी सांस की आस
देश में बीते दिनों ऑक्सीजन संकट से कोरोना पीड़ितों की टूटती सांस संग जीवन की आस भी छूटती दिखी। हालांकि पहले एकाएक उत्पन्न आक्सीजन के संकट के बाद हुई विभिन्न उत्पादों की कालाबाजारी को लेकर भी एक व्यापक सुनियोजित साजिश के अंदेशे से इनकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि कालाबाजारी रोकने को देशभर में की गई कार्रवाई के बाद जो परिदृश्य उभर कर सामने आया है, वह कमोबेश ऐसा ही कुछ इशारा करता है। दिल्ली के ही एक मामले को लें तो खान चाचा रेस्त्रां में भारी मात्रा में ऑक्सीजन कसंरट्रेटर बरामद हुए, जिन्हें मूल कीमत से कई गुना दामों पर बेचा जा रहाथा। इस प्रकरण के मुख्य आरोपी नवनीत कालरा से संबद्ध कई ठिकानों पर हुई छापेमारी के बाद करीब छह सौ ऑक्सीजन कसंरट्रेटर मिले। इस मामले में मेट्रिक्स कंपनी का नाम भी सामने आया। बताया जाता है कि कई महीने पहले ही आरोपियों ने 5000 ऑक्सीजन कसंरट्रेटर चीन से आयात किए थे। इसके अलावा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ही गाजियाबाद और नोएडा से कई सौ ऑक्सीजन सिलेंडर बरामद किए जा चुके हैं, जिन्हें आरोपियों ने कालाबाजारी केलिए स्टॉक कर रखा था। दिल्ली के एक नामचीन अस्पताल से संबद्ध रहे एक न्यूरो सर्जन को रेमडेसिवर इन्जेक्शन की कालाबाजारी करते हुए साथियों समेत दबोचा गया। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उनकी टीम ने पहले ऑक्सीजन किल्लत को जमकर हाय-तौबा मचाई, लेकिन केंद्र के ऑक्सीजन ऑडिट की बात करते ही इस बाबत चर्चा छोड़ वैक्सीन की किल्लत का हवाला दिया जाने लगा। हालांकि इस बीच मीडिया में कुछ ऐसी भी खबरे आईं कि केजरीवाल सरकार ने अपने कोटे की ऑक्सीजन पर्याप्त टैंकर नहीं होने के कारण नहीं उठाई और एक बड़ी उत्पादन क्षमता वाले प्लांट को संकट से ऐन पहले बंद कर दिया गया। इस लिए दिल्ली में यह हो-हल्ला मचा।