भारत एक विकासशील देश है.
भारत दुनिया के विकसित देशों की बराबरी करने हेतु तेजी से अग्रसर है.
इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए भारत को चौतरफा विकास की जरुरत है. लेकिन विकास के लिए सबसे बड़ी शर्त है देश में एक बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था का होना.
वर्तमान में भारत शिक्षा व्यवस्था की नई चुनौतियों का सामना कर रहा है. वैसे तो भारत के युवाओं ने पुरे विश्व भर में अपने कौशल के कारण बड़े संस्थानों में कार्यरत होकर देश का नाम गौरवान्वित किया है. लेकिन आज देश में अंदरूनी शिक्षा का जो गिरता स्तर भारत मे देखने को मिला है वह गहरी चिंता करने लायक जरुर है.
भारतीय शिक्षा प्राणाली कागजों पर जितनी मजबूत दिखाई देती है धरातल पर यह प्राणाली इतनी मजबूत नही है, क्योंकि अच्छी शिक्षा की डिग्री लेने के बावजूद भी छात्र अपने लक्ष्यों को पूरा नही कर पा रहे है, अगर यह कहा जाए कि अधिकतर विद्यार्थियों को अपने लक्ष्य का ठीक से पता ही नही हैं, तो यह कहना गलत नही होगा. आज का युवा अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भी नोकरियाँ प्राप्त नही कर पा रहा है. कोई भी प्राइवेट सेक्टर ऐसे युवाओं को नौकरी नही देना चाहता जिसके पास कौशल ना हो और कुछ नौकरियां अगर सरकारी क्षेत्रो में मौजूद भी हैं तो वहां भी घूंसखोरी होने के कारण मेहनती युवा रोजगार नही ले पाते.
आज शिक्षा के स्तर गिरने के पीछे कारण यह है कि कोई भी सरकार इस बात पर ध्यान नही देना चाहती कि वास्तविक सुधार के लिए शिक्षा में कैसे सुधार किया जाए. विद्यार्थियों को पढाने के लिए आज अच्छे शिक्षक और विद्यालय मौजूद नही हैं. कुछ अच्छे विद्यालय मौजूद भी है तो वहां सिर्फ किताबी ज्ञान रटाया जाता है, जिसके कारण विद्यार्थीयों की सोचने की बुद्धि का विकास नही हो पाता. आज भारत को ऐसी शिक्षा व्यवस्था की ज़रूरत है जो कि विद्यार्थी का सम्पूर्ण विकास कर सके. आपको जानकार यह आश्चर्य जरूर होगा कि भारत में प्राचीन समय में शिक्षा की ऐसी विरासत रह चुकी है जो बहुत उन्नत थी लेकिन बाहरी देशों द्वारा अपनी शिक्षा पद्धति थोपने के कारण वह प्राचीन शिक्षा पद्धति भारत से लुप्त होती चली गयी. उस प्राचीन शिक्षा पद्धति को हम गुरुकुल के नाम से पहचान सकते है जिसकी गुणवत्ता आधुनिक शिक्षा से कहीं ज्यादा बेहतर थी. तो चलिए अब देखते कि कैसे भारतीय प्राचीन गुरुकुलों में विश्व की सबसे उत्तम शिक्षा व्यवस्था चलती थी.
भारत की विश्व में एक प्राचीन सांस्कृतिक विरासत थी, भारत की संस्कृति में तक्षशिला जैसे महाविद्यालयों ने दुनियां का ध्यान अपनी तरफ खीचा है. लेकिन इन महाविद्यालयों से भी पहले गुरुकुलों की संस्कृति बहुत ही प्राचीन मानी जाती है. आपने रामायण और महाभारत काल के कई गुरुकुलों का जिक्र अपने जीवन में ज़रूर सुना होगा. इन गुरुकुलों के महान गुरु संदीपनी, विश्वामित्र, भारद्वाज, द्रोणाचार्य, वशिष्ठ, बाल्मीकि जैसे गुरुओं का इतिहास बहुत ही पुराना है जो कि हर समुदाय के लोगों को अपनी शिक्षा प्रदान करते थे. इन गुरुकुलों के कारण भारत को विश्व गुरु भी कहा जाता था. भारत में इन गुरुकुलों में दूर-दूर से लोग पढ़ने की लिए यहाँ पर आते थे. भारत में इन गुरुकुलों की मौजूदगी अंग्रेजों के आने से पहले तक रही है. जिसके बाद उनके बढ़ते प्रभाव से इन गुरुकुलों का अस्तित्व धीरे-धीरे ख़त्म होता चला गया.
भारत के प्राचीन गुरुकुल की शिक्षा प्रणाली अपने आप में बहुत ही विकसित किस्म की थी. ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्योंकि जिस तरह के मानदंड उन्होंने इस शिक्षा पद्धति में अपनाए थे. आज के समय में उन मानदंडो की कल्पना करना बहुत ही मुश्किल हो सकता है.
प्राचीन काल के गुरुकुलों में विद्यार्थियों को बिना शुल्क के शिक्षा दी जाती थी.
इन गुरुकुलों में उन्हें वेदों के साथ-साथ अन्य कई विषयों की शिक्षा दी जाती थी. इन विषयों में वेद, शास्त्र, खगोल विज्ञान, गणित, ज्योतिष, भौतिक शिक्षा जैसे विषय शामिल थे.
गुरुकुलों में शिक्षा देते समय विद्यार्थी और शिक्षक के नैतिक मूल्यों का ध्यान रखा जाता था. इन गुरुकुलों में शिक्षा देने का काम भी ब्राहमण लोग ही करते थे. इन गुरुकुलों की ख़ास बात यह थी कि यह आज की तरह विद्यार्थियों को सिर्फ एक अच्छा व्यवसाय पाने के लिए नही पढाते थे बल्कि मनुष्य के अच्छे गुण भी उसमे पनप सके यह दृष्टिकोण उस समय के समाज में मौजूद होता था. इस तरह इस व्यवस्था से विद्यार्थी खुलें मन से किसी भी विषय में निपुणता हासिल कर लेता था साथ ही मनुष्य होने के उच्च आदर्श को भी बनाये रखता था. इसके अलावा उस समय के विद्यार्थी की बुद्धि आज के विद्यार्थियों से कहीं ज्यादा सक्रिय थी. प्राचीन गुरुकुलों का लक्ष्य उस समय विद्यार्थियों के बोद्धिक, मानसिक, शारीरिक व आत्मीय ज्ञान का विकास करना था.
इन गुरुकुलों में विद्यार्थी अच्छे अनुशासन में रहते थे, वह सुबह प्रातः काल जल्दी उठकर शाम तक पढाई से लेकर योग और खेलकूद जैसे कई कार्य करते थे.
इन गुरुकुलों की देखरेख आज की तरह सत्ता के हाथों मे नही होती थी बल्कि समाज इन गुरुकुलों की देखरेख और गुरुओं की दक्षिणा का जिम्मा खुद तय करता था. इस तरह शिक्षा सत्ता से पूरी तरह दूर थी जिसमे सभी विद्यार्थियों को बराबर शिक्षा मिलती थी चाहे वह व्यक्ति गरीब हो या अमीर.
इन गुरुकुलों में विद्यार्थी एक बार प्रवेश पाकर सादा जीवन व्यतीत करता था और 25 वर्ष की आयु तक वहां शिक्षा ग्रहण करता था. जब तक शिक्षक विद्यार्थी को पूरी शिक्षा नही देता था तब तक वह गुरुदक्षिणा भी ग्रहण नही करता था. लोग अपनी इच्छा से उनको यह दक्षिणा देते थे हर किसी को यह दक्षिणा देना जरुरी नही होता था.
जैसा कि आपने देखा कि प्राचीन काल में भारत की शिक्षा व्यवस्था का मानदंड बहुत ही उत्तम था साथ ही विद्यार्थी अपनी आस-पास के माहौल के प्रति जिज्ञासु होता था. जिसके कारण वास्तविक रूप में विद्यार्थी का विकास हो पाता था.
आज वर्तमान में भारत में जिस तरह शिक्षा को धन कमाने हेतु बेचने का जो काम किया जा रहा है, यह भारत को अन्दर ही अन्दर खोखला बनाता जा रहा है. भारत विश्व का एक युवा देश है अगर भारत को विश्व के अन्य देशों के साथ मजबूती के साथ खड़ा होना है तो भारत के शिक्षण संस्थानों और सरकार को इन पुरानी गुरुकुल शिक्षा संस्कृति से कुछ सीख ले कर शिक्षा के क्षेत्र में एक बेहतर सुधार की पहल करनी चाहिए जिससे कि विद्यार्थी सिर्फ कक्षा पास होने या नौकरी पाने के लिए ही नही बल्कि अपने भीतर विभिन्न प्रकार के कौशल पैदा कर सके.
Web Title: Indian Gurukul Education System
Featured Image: observerdawn.in