विज्ञान नहीं आध्यात्म के बल पर कोरोना संकट पर पार पाएगा भारत
विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत डॉ डेविड नाबरो ने भी अपने एक बयान में कहा कि भारत में लॉक डाउन को जल्दी लागू करना एक दूरदर्शी सोच थी, साथ ही यह सरकार का एक साहसिक फैसला था। इस फैसले से भारत को कोरोना वायरस के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ने का मौका मिला। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समझदारी और अनुभव को समझिए,यह जो लाक डाउन हुआ है उसकी तारीफ कीजिए। इसकी तारीखों पर ध्यान दीजिये 21 दिन का लाक डाउन होगा इस 21 दिन में 3 रविवार है और 3 शनिवार यानि 6 छुट्टी 25 कोगुड़ी पड़वा की छुट्टी २ अप्रैल रामनवमी की छुट्टी 6 अप्रैल को महावीर जयंती की छुट्टी और 10 को गुड फ्राइडे 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती यानि 5 छुट्टियां यानि 21 दिन के लाक डाउन में 11 दिन तो छुट्टी के हैं। यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की समझदारी ही है की उन्होंने ऐसा समय निर्धारित किया लॉक डाउन के लिए, जिससे लोगो को कम से कम परेशानी हो और काम के दिनों का कम नुकसान हो। नवरात्री के समय करोडो लोग पूजा पाठ और ब्रत करते हैं, इसलिए यह लाक डाउन समय संयोग नहीं है। यह टीम मोदी ने बहुत सूझ-बूझ से तय किया है। इस संकट के समय जो कुशलता नरेंद्र मोदी ने दिखाई, जिस समझदारी से अब तक इस वैश्विक महामारी को नियंत्रित किया है काबिले तारीफ है। जिस समय दुनिया के बड़े-बड़े नेता बेबस दिखाई दे रहे हैं, ऐसे समय में नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू और लाक डाउन के दौरान जो लोगों का विश्वास प्राप्त करके जो किया है इतनी बड़ी मेहनत किसी ने नहीं देखी। यदि समझा जाए तो हमारी किस्मत अच्छी है कि इतने बड़े संकट की घडी में हमारे देश की बागडोर नरेंद्र मोदी के हाथ में है। देखा जाए तो प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम दुनिया के अलग-अलग देशों में कोरोना से हो रहे युद्ध पर नजर रखते हुए उनका विश्वलेषण करके बचाव के रास्ते निकालने के साथ ही देश में होने वाली छोटी-छोटी चीज पर ध्यान देने में जुटी है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने 5 अप्रैल को सभी देशवासियों से एक साथ दीपक जलाने का आह्वन किया, जिसे पूरे देशवासियों का भरपूर समर्थन भी मिला। भारतीय संस्कृति के इस अद्भुत प्रदर्शन हमें गौरवान्वित कर रहे हैं। पांच अप्रैल को जैसे ही रात्रि के नौ बजे वैसे ही पूरे देश में के शहरों और गांव में बिजली की लाइटें बंद हो गयी, घी-तेल के दीये जलने लगे। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि शंख, थाली और अन्य बाजें बजने लगे। अधिकांश लोग पूरी तरह से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील का पालन करते हुए देखे गये, हर कोई दीपक भी जला रहा था, शंख भी बजा रहा था, लेकिन दूरी भी बना कर रख रहा था। शहरों और बडे लोग तो इस तरह के अभियानों और संकल्पों के साथ जरूर खडे़ होते हैं पर जब छोटे कस्बे और देश के दूरदराज के गांवों तक इस तरह का अभियान संकल्प में बदल जाये तो फिर यह अतुलनीय और मिसाल बन जाता है।
भारतीय संस्कृति का ऐसा विराट प्रदर्शन वर्षो-वर्षो तक हमें गौरवान्वित करता रहेगा। कोरोना से बचने के लिए सभी महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। इन सबके बीच योग गुरू बाबा रामदेव का कहना है की स्वस्थ रहने के लिए मजबूत इम्युनिटी का होना बहुत जरूरी है। अनुलोम - विलोम, कपाल भांति से अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाकर कोरोना से लड़ा जा सकता है। कोरोना संकटकाल में भी भारतीय संस्कृति ने दुनिया को कई संदेश दिए हैं। इनमें मुख्य संदेश यही है कि कोरोना संक्रमण आध्यात्म से हारेगा। दरअसल दुनिया की संस्कृति जहां भोगवाद पर आधारित है, वहीं भारतीय संस्कृति त्याग और सयंम की है। चीन की भोगवादी संस्कृति से ही कोरोना सक्रमण का जन्म हुआ, जिसने अब दुनिया में महामारी का रूप धारण कर लिया।
दूसरा संदेश यह मिलता है कि कोरोना से लड़ने के लिए दृढ़ संकल्प होकर जुटे नरेन्द्र मोदी का भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पण बेमिसाल और गौरवान्वित करने वाला है। डॉक्टरों, नर्सो, पुलिस और सफाईकर्मियों इत्यादि के प्रति आभार जताना हमारा हर संभव प्रयास होना चाहिए। जबिक विपक्ष और विरोधी मानसिकता वालों के सपनों पर कुठाराघात करने को भी देशप्रेमियों को आगे आना चाहिए। याद रहे कि विपक्षी पार्टियां और तथाकथित बुद्धिजीवियो ने इस दीपोत्सव को अंधविश्वास कहा था। जनता ने नरेन्द्र मोदी की अपील के साथ जुडकर उनकी खिल्ली पर प्रहार कर दिया। इटली-जर्मनी आदि से सीख ले भारतीय विपक्ष इटली, जर्मनी, स्पेन, इंगलैंड और अमेरिका में कोरोना से लडने के लिए गिरजा घरों में विशेष प्रार्थनाएँ हो रही हैं। पर इन विशेष प्राथनार्ओं को लेकर विपक्षी पार्टियां कोई हल्ला नहीं कर रही हैं। सिर्फ इतना ही नहींश् बल्कि ऐसी प्रार्थनाओं में विपक्षी पार्टियां शामिल भी हो रही हैं। इसे अंध विश्वास नहीं माना जा रहा है। फिर नरेन्द्र मोदी के थाली बजाने और दीपोत्सव के खिलाफ भारत की विपक्षी राजनीतिक पार्टियां और तथाकथित बुद्धिजीवी क्यों उबल रहे हैं और भारतीय संस्कृति को कोस रहे हैं? इसलिए कि भारत का विपक्ष और तथाकथित बुद्धिजीवी हमारी संस्कृति के दुश्मन रहे हैं, देश हित इनके लिए कोई अर्थ नहीं रखता है। भीषण राष्टीय संकट काल में भी ये अराजक, हिंसक और कानून को तोडने वाले हैं। विपक्ष और तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग से जिम्मेदार होने की अपेक्षा हो ही नहीं सकती है। तत्परता से कानून का उपयोग जरूरी तब्लीगी जमात जैसी कोई फिर घटना नहीं होनी चाहिए। तब्लीगी जमात पर नरम नीति का ही दुष्परिणाम है कि हम जीती हुई लड़ाई को फिर से लडने के लिए बाध्य हुए हैं। तब्लीगी जमात का कोरोना जिहाद नहीं होता तो फिर आज देश भर में कोरोना का सक्रमण नहीं फैलता। तब्लीगी जमात पर नरम नीति से सीख लेने की जरूरत है। अब कोई भी जिहादी संगठन को इस तरह कानून को हाथ में लेने की स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए। इन घटनाओं पर सख्ती से तुरंत अंकुश लगना बेहद जरूरी है। क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में हमने देखा कि तब्लीगी जमात की सरकारी आदेशों की नाफरमानी से कैसे हम एक जीतती हुई लड़ाई हारने की कगार पर पहुचं गए। यह अंत नहीं मध्यांतर हालांकि यह अंत नहीं मध्यांतर है, क्योंकि ये वो भारत है जहाँ की सनातन संस्कृति निराशा के अन्धकार को विश्वास के प्रकाश से ओझल कर देती है। आखिर अँधेरा कैसा भी हो एक छोटा सा दीपक उसे हरा देता है तो भारत में तो उम्मीद की सवा सौ करोड़ किरणें मौजूद हैं। हमें अपनी संस्कृति पर गर्व करना चाहिए। हमारी संस्कृति विश्व कल्याण पर आधारित हैं। हम अपनी संस्कृति के अुनसार संयम और अनुशासित रह कर कोरोना सक्रमण पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन जब भारत में सबकुछ सही चल रहा था, तब इटली, ब्रिटेन, स्पेन, अमेरिका जैसे विकसित एवं समृद्ध वैश्विक शक्तियाँ कोरोना के आगे घुटने टेक चुकी थीं, जब विश्व की आर्थिक शक्तियाँ अपने यहाँ कोविड 19 से होने वाली मौतों को रोकने में बेबस नजर आ रही थीं, तब 130 करोड़ की आबादी वाले इस देश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या लगभग 500 के आसपास थी और इस बीमारी के चलते मरने वालों की संख्या 20 से भी कम थी, 16 मार्च को दिल्ली के मुख्यमंत्री 50 से ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगाते हैं, 22 मार्च को प्रधानमंत्री जनता कर्फ्यू की अपील करते हुए कोरोना की रोकथाम के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का महत्व बताते हैं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को सामने आना पड़ा क्योंकि कुछ तब्लीगी जमात के लोग स्थानीय प्रशासन की अनदेखी कर रहे थे। पूरे देश के लिए कलंक साबित हो रहे थे यह दृश्य दूर्भाग्यजनक था। जब इन लोगों की जांच की जा रही है तो अबतक इनमें से 300 से अधिक कोरोना से संक्रमित पाए गए हैं और बाकी में से कितने संक्रमित होंगे उनकी तलाश जारी है। जो खबरें सामने आ रही हैं वो केवल निराशाजनक ही नहीं शर्मनाक भी हैं क्योंकि इस मकरज की वजह से इस महामारी ने हमारे देश के कश्मीर से लेकर अंडमान तक अपने पैर पसार लिए हैं। देश में कोविड 19 का आंकड़ा अब चार दिन के भीतर ही 3000 को पार कर चुका है, 75 लोगों की इस बीमारी के चलते जान जा चुकी है और इस तब्लीगी जमात की मरकज से निकलने वाले लोगों के जरिए देश के 17 राज्यों में कोरोना महामारी अपनी दस्तक दे चुकी है। इलाज करने के दौरान डॉक्टरों, पैरा मेडिकल स्टाफ और पुलिसकर्मियों पर पत्थरों से हमला किया जाता है या फिर उन पर थूका जाता है जबकि यह पता हो कि यह बीमारी इसी के जरिए फैलती है या फिर महिला डॉक्टरों और नरसों के साथ अश्लील हरकतें करने की खबरें सामने आती हैं तो प्रश्न केवल इरादों का नहीं रह जाता। ऐसे आचरण से सवाल उठते हैं सोच पर, परवरिश पर, नैतिकता पर, सामाजिक मूल्यों पर, मानवीय संवेदनाओं पर। किंतु इन सवालों से पहले सवाल तो ऐसे पशुवत आचरण करने वाले लोगों के इंसान होने पर ही लगता है। क्योंकि आइसोलेशन वार्ड में इनकी गुंडागर्दी करती हुई तस्वीरें कैद होती हैं तो कहीं फलों, सब्जियों और नोटों पर इनके थूक लगाते हुए वीडियो वायरल होते हैं। ये कैसा व्यवहार है? ये कौन सी सोच है? ये कौन से लोग हैं जो किसी अनुशासन को नहीं मानना चाहते? ये किसी नियम किसी कानून किसी सरकारी आदेश को नहीं मानते। अगर मानते हैं तो फतवे मानते हैं। जो लोग कुछ समय पहले तक संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे थे वो आज संविधान की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। पूरा देश लॉक डाउन का पालन करता है लेकिन इनसे सोशल डिस्टनसिंग की उम्मीद करते ही पत्थरबाजी और गुंडागर्दी हो जाती है। लेकिन ऐसा खेदजनक व्यवहार करते वक्त ये लोग भूल जाते हैं कि इन हरकतों से ये अगर किसी को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा रहे हैं तो खुद को और अपनी पहचान को। चंद मुट्ठी भर लोगों की वजह से पूरी कौम बदनाम हो जाती है। कुछ जाहिल लोग पूरी जमात को जिल्लत का एहसास करा देते हैं। लेकिन समझने वाली बात यह है कि असली गुनहगार वो मौलवी और मौलाना होते हैं जो इन लोगों को ऐसी हरकतें करने के लिए उकसाते हैं। तब्लीगी जमात के मौलाना साद का वो वीडियो पूरे देश ने सुना जिसमें वो तब्लीगी जमात के लोगों को कोरोना महामारी के विषय में अपना विशेष ज्ञान बाँट रहे थे। दरअसल किसी समुदाय विशेष के ऐसे ठेकेदार अपने राजनैतिक हित साधने के लिए लोगों का फायदा उठाते हैं। काश ये लोग समझ पाते कि इनके कंधो पर देश की नहीं तो कम से कम अपनी कौम की तो जिम्मेदारी है। कम पढ़े लिखे लोगों की अज्ञानता का फायदा उठाकर उनको ऐसी हरकतों के लिए उकसा कर ये देश का नुकसान तो बाद में करते हैं पहले अपनी कौम और अपनी पहचान का करते हैं। उन्हें समझना चाहिए कि आज मोबाइल फोन और सोशल मीडिया का जमाना है और जमाना बदल रहा है। सच्चाई वीडियो सहित बेनकाब हो जाती है। शायद इसलिए उसी समुदाय के लोग खुद को तब्लीगी जमात से अलग करने और उनकी हरकतों पर लानत देने वालों में सबसे आगे थे। सरकारें भी ठोस कदम उठा रही हैं। यही आवश्यक भी है कि ऐसे लोगों का उन्हीं की कौम में सामाजिक बहिष्कार हो साथ ही उन पर कानूनी शिकंजा कसे ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनावृत्ति रुके। इन घटनाओं पर सख्ती से तुरंत अंकुश लगना बेहद जरूरी है क्योंकि वर्तमान परिस्थितियों में हमने देखा कि तब्लीगी जमात की सरकारी आदेशों की नाफरमानी से कैसे हम एक जीतती हुई लड़ाई हारने की कगार पर पहुचं गए। लेकिन ये अंत नहीं मध्यांतर है क्योंकि ये वो भारत है जहाँ की सनातन संस्कृति निराशा के अन्धकार को विश्वास के प्रकाश से ओझल कर देती है। आखिर अँधेरा कैसा भी हो एक छोटा सा दीपक उसे हरा देता है तो भारत में तो उम्मीद की सवा सौ करोड़ किरणें मौजूद हैं।