अब अंतरिक्ष महाशक्ति है भारत
अंतरिक्ष संबंधी अपने विभिन्न अभियानों चंद्रयान, मंगल मिशन, एंटी सैटेलाइट मिसाइल के मिशन शक्ति आदि की कामयाबी के बाद भारत अब दुनिया के ऐसे चुनींदा देशों में शामिल है जो अंतरिक्ष महाशक्ति बन चुके हैं। भारतीय वैज्ञानिक चंद्रयान, गगनयान, मंगलयान, शुक्र पर मिशन, सौर मिशन और अंतरिक्ष केंद्र स्थापित करने जैसे विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक गति देने में जोर-शोर से जुटे हुए हैं। भारत को एक साथ सौ उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की क्षमता भी हासिल है। भारतीय वैज्ञानिक अगले एक दशक में अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की तैयारी भी कर रहे हैं। जिसके बाद भारत अंतरिक्ष में अपना स्टेशन स्थापित करने वाला विश्व का चौथा देश बन जाएगा, अब तक अमेरिका, रूस और चीन ने ही अंतरिक्ष में अपने स्टेशन स्थापित किए हैं।
भारत है अंतरिक्ष में मार करने वाली मिसाइल की तकनीक हासिल करने वाला चौथा देश
भारत अब दुनिया का चौथा ऐसा देश बन चुका है, जिसे अंतरिक्ष में मार करने वाली मिसाइल की तकनीक हासिल है। भारतीय वैज्ञानिकों ने मिशन शक्ति के तहत बीते साल 27 मार्च को सेटेलाइट रोधी मिसाइल से अंतरिक्ष में अपने एक सैटेलाइट को नष्ट करने का कारनामा कर दिखाया था। भारतीय मिसाइल ने प्रक्षेपण के तीन मिनट के भीतर ही लो अर्थ ऑर्बिट में एक सैटेलाइट को मार गिराया। एंटी सैटेलाइट (ए-सैट) के द्वारा भारत अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को सुरक्षित रख सकेगा। इससे पहले तक अंतरिक्ष में मार करने की शक्ति केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास थी। इस एंटी सैटेलाइट मिसाइल को इसरो और डीआरडीओ के संयुक्त प्रयास के द्वारा विकसित किया गया। मिशन शक्ति की कामयाबी के बाद अंतरिक्ष महाशक्ति बनने से अब विश्व में भारत का दबदबा बढ़ा है। भारत अब अपने इलेक्ट्रॉनिक इंटेलीजेंस उपग्रह एमिसैट के जरिए दुश्मन पर नजर रखकर सीमाओं क्षेत्र में घुसपैठ और अवैध गतिविधियों पर अंकुश लगाने में भी सक्षम है।
उपग्रह आधारित अपनी नौवहन प्रणाली 'नाविक' विकसित कर चुका है भारत
साथ ही भारत अब उपग्रह आधारित अपनी नौवहन प्रणाली (नेविगेशन सिस्टम) भी विकसित कर चुका है। इसे 'नाविक' नाम दिया गया है। 'नाविक' इसरो द्वारा स्थापित उपग्रहों के तंत्र पर काम करता है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में जीपीएस के विकल्प के रूप में विकसित किया गया है। स्वदेशी नौवहन प्रणाली का होना सामरिक लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि भारत पहले इस प्रणाली के लिए दूसरे देशों पर आश्रित था, जिसके चलते अन्य देशों से विवाद या युद्ध की स्थिति में संबंधित देशों द्वारा इस सुविधा सेवा में अवरोध होने का अंदेशा बना रहता था। कारगिल युद्ध के दौरान भारत को ऐसे ही हालात का सामना करना पड़ा था। उपग्रह आधारित इस सिस्टम से युद्ध के समय हथियारों को सटीकता से संचालित करना और लक्ष्य पर पहुंचना आसान हो जाता है।
अंतरिक्ष में किया गया युद्धाभ्यास 'इन्डस्पेसएक्स'
भविष्य की संभावनाओं और आशंकाओं को देखते हुए एक कदम और आगे बढ़ते हुए भारत ने अब स्पेस वार से निपटने की योजना पर भी काम शुरू कर दिया है। इस दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए भारत ने बीते साल 25 और 26 जुलाई को अंतरिक्ष में 2 दिवसीय युद्धभ्यास किया। अंतरिक्ष में किए गए इस युद्धाभ्यास को 'इन्डस्पेसएक्स' नाम दिया गया। स्पेसवार ट्रेनिग की यह योजना अंतरिक्ष में चीन की सक्रियता को देखते हुए बनाई गई। भविष्य के संभावित युद्धों से निपटने की तैयारी और अपनी काउंटर-स्पेस क्षमताओं के मद्देनजर यह युद्धाभ्यास किया गया।
धरती पर नहीं अंतरिक्ष में लड़ा जाएगा अगला विश्व युद्ध
माना जा रहा है कि अगला विश्व युद्ध धरती पर नहीं अंतरिक्ष में लड़ा जाएगा। इसे देखते हुए दुनिया के कई देशों ने उपग्रहों का प्रक्षेपण तेज कर दिया है। सभी देश अंतरिक्ष में अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो स्पेस फोर्स बनाने का ऐलान कर चुके हैं, उन्होंने जून 2018 में अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन को स्पेस-फोर्स बनाने का आदेश दिया था। फ्रांस भी कुछ ऐसी ही तैयारी में जुटा है। रूस और चीन भी स्पेसवार को लेकर अपनी योजनाओं को अमलीजामा पहनाने की तैयारियों में जुटे बताए जा रहे हैं। ऐसे में भारत को भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ना लाजिमी हो गया था। पाकिस्तान और चीन की और से लगातार बढ़ते खतरे को देखते हुए भारत को इसका बहुत फायदा होगा। चीन और पाकिस्तान की मिसाइलों का भारत की रडार से बचना अब खासा मुश्किल होगा। इससे न सिर्फ भारत का दुनिया में दबदबा बढ़ा है, बल्कि भारत की सुरक्षा व्यवस्था भी पहले के मुकाबले बेहद मजबूत हो गई है।