बच्चों से श्रमिकों के रूप में काम कराने की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय मानवधिकार आयोग ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से इस बारे में रिपोर्ट मांगी है।
आयोग को राजस्थान में श्रम के लिए बाल तस्करी के बारे में विरोधाभासी रिपोर्ट मिली थी। इन पर गंभीरता से विचार किये जाने पर पता चला कि आजादी के सात दशकों के बाद भी बच्चों के अधिकारों, उनके बंधुआ मजदूरी और तस्करी से रक्षा के लिए विभिन्न कानूनों और योजनाओं के बावजूद बाल श्रम की समस्या मौजूद है जो राज्य मशीनरी की प्रभावशीलता पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करती है।
आयोग का कहना है कि भारत ने 1992 में बाल अधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र संधि की पुष्टि की थी। इसके तहत संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से वर्ष 2021 को बाल श्रम उन्मूलन के लिए अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से रिपोर्ट मांगना आवश्यक है।
इसके अनुसार आयोग ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और केन्द्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों को उनके क्षेत्राधिकार में बाल अधिकार और बाल तथा किशोर श्रम (संशोधन) अधिनियम, 2016 के तहत उठाए गए कदमों के बारे में रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा है। आयोग ने सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के श्रम मंत्रालय के सचिव से बाल श्रम कराने वालों के खिलाफ की गयी कार्रवाई का ब्योरा भी मांगा है।
आयोग को दिसम्बर 2019 में एक शिकायत मिली थी जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि राजस्थान के उदयपुर, बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिलों में 08 से 15 वर्ष के बीच के बच्चों की बड़े पैमाने पर तस्करी चल रही है। उन्हें 500 से 3000 रुपये तक बेचा जाता है।