दिन-प्रतिदिन और विस्तार ले रही है हिन्दी
भारत एक बहुभाषाई और भिन्न-भिन्न संस्कृतियों वाला देश है। हमारे देश में कई सौ भाषाएं और उपभाषाएं चलन में हैं और यहां प्रत्येक भाषा व संस्कृति को अपनी सतरंगी सुगंध बिखेरने की पूरी स्वतंत्रता है। बहुभाषाई देश भारत में बेशक हर भाषा का अपना महत्व है, परन्तु विभिन्न भाषाओं के देश की एक भाषा होना अत्यंत आवश्यक है, जो विश्व में भारतीयता की पहचान बने। और यह हिन्दी ही हो सकती है। वर्तमान में हिन्दी न केवल विश्व में मन्दारिन के बाद सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा है, बल्कि इसका क्षेत्र दिन-प्रतिदिन विस्तार लेकर और व्यापक हो रहा है। ऐसे में हिन्दी देश को एकता की डोर में बांधने का कार्य भी भली-भांति कर सकती है, लेकिन अंग्रेजी के प्रति हमारे मोह, हिन्दी की अनदेखी, प्रथागत सरकारी नीतियों और कतिपय कारणों से किए जाने वाले हिन्दी विरोध के कारण स्थिति आज इतनी गंभीर है कि हमें हिन्दी दिवस और पखवाड़ा मनाना पड़ रहा है। देश में हर वर्ष की तरह अबकी बार भी 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाया गया। हिन्दी से बहुतों को रोजगार मिल रहा है। क्योंकि कोई धंधे को बढ़ाने के लिए हिन्दी बोलता है तो किसी के लिए अपना धन्धा चमकाने को हिन्दी का विरोध करना जरूरी है। दक्षिण और उत्तर-पूर्वी भारत में विभिन्न नेताओं की राजनीति हिन्दी विरोध के बूते ही चल रही है। भाषा को लेकर विभिन्न राज्यों के नेताओं की स्वार्थ साधने वाली राजनीति ने हिन्दी को बहुत हानि पहुंचाई है। क्योंकि भाषाओं के संदर्भ में अधिकांश क्षेत्रीय राजनीतिक क्षत्रपों और राज्य सरकारों की नीति सदैव एक पग आगे और दो पग पीछे वाली रही है। इसी क्रम में कतिपय राजनीतिक कारणों से दक्षिण, पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में लंबे समय से हिन्दी का विरोध होता रहा है। ऐसे भाषाई विवादों के कारण ही सभी राज्य आपस में जुड़ नहीं पाते और इसका परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ा है।
हालांकि समस्त किन्तु-परन्तु के बावजूद वस्तविकता यही है कि लाख विरोध और अनदेखी के बाद भी हिन्दी का क्षेत्र दिनोंदिन व्यापक हो रहा है और हिन्दी दिन-प्रतिदिन अपनी छाप छोड़ते हुए आगे बढ़ रही है। इस कार्य में इन्टरनेट ने भी उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। इन्टरनेट पर हिन्दी का परचम बुलन्दी के साथ फहरा रहा है। आज सरकारी विभागों के साथ ही विभिन्न निजी कंपनियों की वेबसाइट भी हिन्दी में मौजूद हैं, जो कि हिन्दी के प्रति लोगों के बढ़ते प्रेम का एक बड़ा प्रमाण है। वैश्वीकरण और भारत के बढ़ते रूतबे के साथ ही पिछले कुछ वर्षो में हिन्दी के प्रति विश्व के लोगों की रूचि खासी बढ़ी है। भारत का दूसरे देशों संग बढ़ता व्यापार भी इसका एक कारण है। कुल मिलाकर न केवल भारत में ही, बल्कि हिन्दी अब दुनिया के कई देशों में बोली जाने वाली प्रमुख भाषा बन चुकी है। यूएई में तो बीते साल हिन्दी को अपनी तीसरी न्यायालयी भाषा के रूप में श्रेणीबद्ध कर लिया गया, जिसके बाद हिन्दीभाषी लोगों से संबंधित वाद की सुनवाई अब उन्हीं की भाषा में की जा सकेगी। यूएई सरकार का निर्णय वहां रह रहे लाखों हिन्दीभाषी लोगों के हितों की रक्षा करने में सहायक सिद्ध होगा। वर्तमान में विश्व के विभिन्न देशों के 91 विश्वविद्यालयों में ‘हिन्दी पीठ’ है और लगभग 150 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है, यह हमारी राजभाषा के बढ़ते प्रभाव का ही परिणाम है। यूनेस्को की सात भाषाओं में शामिल हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए सरकार की ओर से अब भरसक प्रयास किए जा रहे हैं।
देश में 90 करोड़ से अधिक है हिन्दीभाषियों का आंकड़ा !
वर्तमान दशक की शुरूआत में वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़े हिन्दी के प्रसार के मामले में आंखें खोलने वाले हैं। बहुभाषी भारत के हिन्दी भाषी राज्यों की आबादी 46 करोड़ से
अधिक थी। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की 1.2 अरब आबादी में से 41.03
प्रतिशत नागरिकों की मातृभाषा हिन्दी है। हिन्दी को दूसरी भाषा के रूप में
प्रयोग करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लें तो एक अनुमान के अनुसार देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग
हिन्दी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिन्दी भाषियों सहित पूरी
दुनिया में लगभग एक अरब लोग ऐसे हैं, जो इसे बोल या समझ सकते हैं।वर्ष 2001 से 2011 के बीच एक दशक में हिन्दी भाषियों की बढ़ोत्तरी की गति 23.8 प्रतिशत रही। अगली जनगणना अब अगले वर्ष यानी 2021 में होगी, पर यह तय है कि बढ़ोत्तरी की रफ्तार जारी रहेगी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि लोगों ने रोजगार के सिलसिले में अपने पुराने आग्रहों को तोड़कर नए बनते-उभरते महानगरों की ओर रुख किया है। जनगणना के पिछले आंकड़ों के अनुसार, दक्षिणी क्षेत्रों में हिन्दी, उड़िया और असमिया भाषा बोलने वालों की संख्या 33 फीसदी तक बढ़ी है। स्पष्ट है कि दक्षिण भारत के हैदराबाद, चेन्नई, बंगलुरु, मंगलुरु आदि शहरों के वाणिज्यिक उभार के बाद देश के पूर्वी और उत्तरी क्षेत्र के लोगों की आवाजाही में वृद्धि हुई है। भारत के अलावा नेपाल, मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिनाद एवं टोबेगो और कनाडा आदि में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी-खासी संख्या है। इसके अलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले हजारों-लाखों लोग हैं।
केवल कागजी है हिन्दी को दुनिया की दूसरी भाषा बताए जाने का आंकड़ा
ऐसे में मंदारिन के बाद हिन्दी को दुनिया की दूसरी भाषा बताए जाने का आंकड़ा केवल कागजी है। क्योंकि 2011 की जनगणना के अनुसार जब लगभग 90 करोड़ से अधिक लोग अकेले भारत में हिन्दी बोलते हैं। पूरा पाकिस्तान हिन्दी बोलता है। बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार, अफगानिस्तान में भी हजारों-हजार लोग हिन्दी बोलते-समझते हैं। इतना ही नहीं मॉरिसस, फिजी, गुयाना, सुरिनाम, त्रिनिदाद-टोबेगो जैसे देश तो हिन्दी भाषियों ने ही विकसित किए हैं। इस तरह एक अनुमान के अनुसार हिन्दीभाषी समाज की संख्या अब लगभग एक अरब के आंकड़े को छू रही है। ऐसे में हिन्दी केवल अंग्रेजी से ही नहीं, बल्कि मंदारिन से भी आगे है। मंदारिन भाषा समूचे चीन में नहीं बोली जाती। चीन में स्थान विशेष की भाषा अलग-अलग है, जो भाषा बीजिंग में बोली जाती है, वह शंघाई में बोली जाने वाली भाषा से भिन्न है।
आधिकारिक भाषा का दर्जा और पहला हिन्दी दिवस
संविधान सभा ने 1949 में हिन्दी को भारत की आधिकारिक भाषा की मान्यता दी। हालांकि पहला हिन्दी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया। वास्तव में बहुत सी बोलियों और भाषाओं वाले हमारे देश में आजादी के बाद भाषा को लेकर एक बड़ा सवाल आ खड़ा हुआ। आखिरकार 14 सितंबर 1949 को हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति दी गई। हालांकि शुरू में हिन्दी और अंग्रेजी दोनों को नए राष्ट्र की भाषा चुना गया और संविधान सभा ने देवनागरी लिपि वाली हिन्दी के साथ ही अंग्रेजी को भी आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया, लेकिन 1949 में 14 सितंबर के दिन संविधान सभा ने हिन्दी को ही भारत की राजभाषा घोषित किया। हिन्दी को देश की राजभाषा घोषित किए जाने के दिन ही हर साल हिन्दी दिवस मनाने का भी फैसला किया गया, हालांकि पहला हिन्दी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया।
तकनीक और बाजारीकरण के चलते हुआ है हिन्दी का व्यापक प्रसार
तकनीक, भूमंडलीकरण और बाजारीकरण के चलते हिन्दी का व्यापक प्रसार हुआ है। साइबर युग ने हिन्दी को वैश्विक स्तर पर पनपने को नए अवसर दिए हैं। हिन्दी जानने, समझने और बोलने वालों की बढ़ती संख्या के चलते अब विश्व भर की वेबसाइट हिन्दी को भी तवज्जो दे रही हैं। ई-मेल, ई-कॉमर्स, ई-बुक, इंटरनेट, एसएमएस एवं वेब मंचों में हिन्दी अब सहजता से उपलब्ध है। माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, आइबीएम तथा ओरेकल जैसी कंपनियां अत्यंत व्यापक बाजार और भारी मुनाफे को देखते हुए हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा दे रही हैं। अमेरिकन कंपनी की एलेक्सा डिवाइस हिन्दी बोलती है, हिन्दी ग्राहक से कुछ खरीदवाना है, तो उसी की भाषा में बात करना जरूरी है। एक अध्ययन के मुताबिक हिन्दी सामग्री की खपत लगभग 94 प्रतिशत तक बढ़ी है। हर पांच में एक व्यक्ति हिन्दी में इंटरनेट प्रयोग करता है। फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप पर हिन्दी में लिख सकते हैं। इसके लिए गूगल हिन्दी इनपुट और लिपिक डॉट इन, जैसे अनेक सॉफ्टवेयर और स्मार्टफोन एप्लीकेशन मौजूद हैं। इतना ही नहीं अब हिंदी-अंग्रेजी अनुवाद भी सहजता से संभव है।
डिजिटल क्षेत्र में तेजी से बढ़ रही है हिन्दी के उपयोग की गति
एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 तक 8.1 करोड़ लोग डिजिटल पेमेंट के लिए हिन्दी का उपयोग करने लगेंगे, जबकि वर्ष 2016 में यह संख्या 2.2 करोड़ थी। सर्वे रिपोर्ट को मानें तो साल 2021 में हिन्दी में इंटरनेट उपयोग करने वाले अंग्रेजी में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से अधिक हो जाएंगे। एक अनुमान के अनुसार 20.1 करोड़ लोग हिन्दी का उपयोग करने लगेंगे। गूगल के अनुसार हिन्दी में सामग्री पढ़ने वाले हर वर्ष 94 प्रतिशत बढ़ रहे हैं, जबकि अंग्रेजी में यह रफ्तार 17 फीसदी है। वर्ष 2016 तक सरकारी कामकाज के लिए 2.4 करोड़ लोग हिन्दी का इस्तेमाल करते थे जो 2021 में 9.4 करोड़ हो जाएंगे। वर्ष 2016 में डिजिटल माध्यम में हिन्दी समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 करोड़ थी, जो 2021 में बढ़कर 14.4 करोड़ होने का अनुमान है।
भारतीय सिनेमा ने देश-विदेश में किया हिन्दी का प्रसार-प्रचार
भाषाओं के प्रचार-प्रसार संबंधी अकादमिक चर्चा-विमर्श में अक्सर एक सत्य जान-बूझकर बिसरा-भुला दिया जाता है, वह है भारतीय सिनेमा। यह पूर्णत: स्थापति और सर्वविदित तथ्य है कि हिन्दी फिल्मों ने अपनी कला और आकर्षण की बदौलत देश ही नहीं विदेश में भी हिन्दी के प्रसार-प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दरअसल ग्लोबल विलेज में तब्दील हो रही दुनिया में हर क्षेत्र आजकल परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है। ऐसे में मनोरंजन की दुनिया में भी भाषाओं का दायरा बढ़ रहा है। अब कोई भी फिल्मी प्रोजेक्ट महज बजट से ही बड़ा नहीं होता, बल्कि उसका कैनवास भाषाई लिहाज से भी आंका जाता है। कोई भी बड़ी फिल्म वर्तमान में एक भाषाई नहीं होती। ऐसे में अब भारतीय फिल्मों का हिन्दी, तेलुगू, तमिल, मलयालम और कन्नड़ में रिलीज होना कोई नई बात नहीं है। अमिताभ बच्चन और सुनील शेट्टी जैसे हिन्दीभाषी अभिनेता दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्में कर रहे हैं। यह हिन्दी सिनेमा की बदौलत ही संभव हो सका कि हम दक्षिण भारतीय सिनेमा के बड़े सितारों रजनीकांत, मोहन लाल, कमल हासन, ममूटी, चिरंजीवी, श्रीदेवी, जयाप्रदा, नागार्जुन, वैंक्टेश जैसे अभिनेता-अभिनेत्रियों को इन फिल्मों के जरिए जान सके। वहीदा रहमान, रेखा, हेमा मालिनी सरीखी गैर हिन्दीभाषी अभिनेत्रियों ने हिन्दी में अपना परचम कायम किया। अब बदलते वक्त के साथ ही दक्षिण भारतीय सिनेमा भी हिन्दीभाषियों के बीच लोकप्रिय हो रहा है। दक्षिण भारतीय अभिनेता प्रभाष की मुख्यभूमिका वाली फिल्म बाहुबली के दोनों भाग हिन्दी में भी रिलीज हुए और इस फिल्म ने कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। इसके बाद आई उनकी फिल्म ‘साहो’ तो हिन्दी दर्शकों को केंद्र में रखकर ही बनाई गई और कामयाब रही। पवन कल्याण, एनटीआर बालकृष्ण, जूनियर एनटीआर, प्रभाष, राणा डुग्गुवाती, रामचरण तेजा, किच्चा सुदीप, तमन्ना भाटिया, तापसी पन्नू आदि दक्षिण भारतीय कलाकारों को हिन्दीभाषी दर्शकों में आज बखूबी जाना-पहचाना जाता है।
जुगलबंदी की तान छेड़ने की है आवश्यकता
समस्त तथ्यों के अध्ययन से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि भाषाओं का कारवां अपने अन्दाज से बढ़ता आया है और ऐसे ही बढ़ता जाएगा। हम भारतीयों को कम से कम इस मामले में अपने नेताओं की कतई कोई जरूरत नहीं है। क्योंकि नेता आएंगे तो समर्थन और विरोध का राग भी संग आएगा। हिन्दी को बढ़ाने के लिए हमें राग समर्थन या राग विरोध के बजाए जुगलबंदी की तान छेड़ने की आवश्यकता है। हमें हिन्दी के साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं को भी यथोचित बढ़ावा और सम्मान देना होगा। इसके लिए शुरूआती दौर में त्रिभाषा फार्मूला कारगर साबित हो सकता है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी हिन्दी संग क्षेत्रीय भाषाओं के उत्थान यानी प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभा सकती है। राष्ट्रहित में हम भारतीयों को अपनी मातृभाषा के साथ ही कम से कम एक अन्य हिन्दुस्तानी भाषा सीखने की जरूरत है।
हिन्दी बने रोजगार की भाषा
राजभाषा हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के साथ ही इसके विकास लिए आवश्यक है कि इसे रोजगार के साथ जोड़ा जाए। रोजगार की भाषा बनने के बाद सभी देशवासियों का हिन्दी के प्रति न केवल पूर्वाग्रह समाप्त होगा, बल्कि सीखने का रूझान भी बढ़ेगा। इसके बाद हमें हिन्दी दिवस, सप्ताह या पखवाड़ा मनाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और हमारी भाषा को उसका उचित सम्मान भी स्वयंमेव मिल जाएगा।
lu lu la la lu
Vadim Blyat
17-09-2020 14:41:36