हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पर रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
ये शेर उर्दू अदब के मकबूल शायर अल्लामा इकबाल के हैं. अल्लामा इकबाल के ये शेर देश के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दूल कलाम पर एक दम फिट बैठते हैं. एक मल्लाह के घर पैदा होने वाले कलाम ने हिन्दुस्तान को वो हौसला दिया जिसके दम पर आज का हिन्दुस्तान खुद को उन देशों की फहरिस्त में शुमार करने में कामयाब हुआ है जो परमाणू ताकत से लैस देश हैं. ये कलाम की आखों में नुमाया होने वाले ख्वाबों और उन ख्वाबों को हकीकत बनाने की जिद ही थी जिसकी बदौलत आज हिन्दुस्तान के कदम अपनी जमीन से सफर करते हुए आसमानों की ऊचाईयों तक पहुंच चुके है. हिन्दुस्तान को अपने इल्म और हौसलों की बदौलत दुनिया के ताकतवर देशों में शुमार करवाने वाले इसी दीदावर की आज पैदाइश है. ये एपीजे अब्दुल कलाम की सादगी, प्रेम और समर्पण का ही परिणाम है कि आज पूरा हिन्दुस्तान जाति, मजहब और अन्य बन्धनों से आजाद होकर एक आवाज में उनकी खिराजे अकीदत पेश कर रहा हैं.
सपने वो नही होते जो आप सोने के बाद देखते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने ही नही देते.
एक महान वैज्ञानिक, साहित्यकार और दार्शनिक ऐपीजे अब्दुल कलाम के जीवन की शुरूआत तमिलनाडू के एक छोटे से गांव रामेश्वरम से हुई. उनके पिता एक मल्लाह थे जो रामेश्वरम में आने वाले तीर्थयात्रियों को नदी पार करवाया करते थे. इसी गांव में 15 अक्टूबर 1931 को एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म हुआ. अपने जीवन की शुरूआत तौर में उन्होने अपने चचेरे भाई मुस्तफा कलाम की दुकान में बैठकर काम किया. इसके अलावा अपने भाई शम्सुद्दीन के साथ उन्होने अखबार बेचने का काम भी किया. अपने बचपन में वो सुबह उठकर स्टेशन पर जाकर अखबार बेचा करते थे.
परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद ज्यादा खराब थी. उनका परिवार उनके सहयोग करने के बावजूद मुश्किल से ही अपने बुनियादी जरूरतो को पूरा कर पाता था. कलाम जब दिन भर काम करने के बाद थक हारकर जब रात को अपने घर आते तो अक्सर अपनी घर की छत पर बैठकर आसमान की तरफ देखते रहते थे. आसमान उन्हे हमेशा ही अपनी तरफ आर्कषित करता था. वो अपनी छोटी छोटी आंखों से आसमानों की ऊचाईयों तक पहुंचने के ख्वाब देखा करते थे.
अगर किसी चीज को दिल से चाहों तो पूरी कायनाम उसे तुम से मिलाने की कोशिश में लग जाती है.
एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने सामने आनी वाली तमाम आर्थिक समस्याओं के बावजूद पढ़ना जारी रखा. इन्टरमीडियट की परिक्षा पास करने के बाद वो त्रिजी के सेंट जोसेफ कॉलेज में चले. यहां से उन्होने एमएससी की परिक्षा पास की. एमएससी करने के बाद अब्दुल कलाम अपने पायलट बनने के सपनों को साकार करने में लग गये. उन्होने पायलेट बनने के लिए एक एक्जाम भी दिया लेकिन वो इस एक्जाम में पास नही हो पाये.
अपने बचपन के सपने को हकीकत में ना बदल पाने का एहसास उन्हे कमजोर करता इससे पहले ही उन्होने अपने लिए एक दूसरा लक्ष्य निर्धारित कर लिया. वो हमेशा आसमानों की ऊचाईयों तक पहुंचना पहुंचने चाहते थे. आसमान तक पहुंचने कर उनकी इसी चाहत ने उन्हें मद्रास के इस्ंट्रीट्यूड ऑफ इंजीनियरिग में पहुंचा दिया. उस वक्त एरोनॉटिकल इंन्जीनियरिंग की फीस 1000 रूपये थे. इस फीस को चुकता करने लिए उनकी बड़ी बहन को अपने कंगन भी गिरवे रखने पड़े. कलाम ने अपनी बहन से वादा किया कि ये पैसे वो खुद अपनी कमाई से चुकायेगे. एरोनॉटिकल में इन्जीनियरिंग करने के बाद उन्होने दिल्ली में एक वैज्ञानिक के तौर पर काम किया. उनकी पहली कमाई मात्र 250 रूपये थी.
सूरज की तरह जलना चाहते हो तो पहले उसकी तरह तपना होता है
दिल्ली में वैज्ञानिक के तौर पर काम करते हुए उन्हें कई ऐसे काम किये जिसकी वजह से उनके सीनियर्स उनसे बेहद प्रभावित हुए. कुछ साल बाद ही उन्हे स्वदेशी हावरक्राफ्ट बनाने की जिम्मेदारी सौप दी गई. ये काम बेहद मुश्किल था लेकिन कलाम ने ये कर दिखाया. अब्दूल कलाम ने जो सपना अपने बचपन में देखा था वो अब आकर पूरा हुआ. उन्होने और उनके सहयोगियों ने अपने बनाये गये हावक्राफ्ट में उड़ान भरी. उस वक्त कृष्णमेनन भारत के रक्षामंत्री हुआ करते थे. वो कलाम के काम से बेहद प्रभावित हुए और उन्होने कलाम को इससे भी ज्यादा ताकतवर हावरक्राफ्ट बनाने की जिम्मेदारी सौप दी. इससे पहले कि कलाम ये हावरक्राफ्ट बनाते, कृष्णमेनन रक्षा मंत्री के पद से हटा दिये गये.
कलाम की जिन्दगी में सबसे ज्यादा अहम मोड़ तब आया जब उन्होने इंडियन कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च का इॅन्टरव्यू दिया. ये इन्टरव्यू विक्रम साराभाई ने लिया था जो उस वक्त भारत के बड़े वैज्ञानिक हुआ करते थे. साराभाई कलाम को प्रतिभा को देखकर दंग रहे गये और उन्होने उन्हें फौरन रॉकेट इंन्जीनियर के पद के लिए चुन लिया. यहां से कलाम का द एपीजे अब्दुल कलाम बनने का सफर शुरू हुआ.
कुछ ही समय बाद कलाम को एक ऐसा काम सौपा गया जो बहुत ही मुश्किल था. उन्हें भारत के पहले रॉकेट को आसमान तक पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गई. कई दिनों के कठिन परिश्रम के बाद उन्होंने भारत के पहले राकेट को आसमान में पहुंचाने में सफलता प्राप्त कर ली.
देश के प्रति अब्दुल कलाम के इसी समर्पण को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हे 2002 में देश राष्ट्रपति नियुक्त किया. उन्हे आज ना केवल हिन्दुस्तान में बल्कि पूरी दुनिया में मिसाइल मैन के नाम से याद किया जाता है.