कोरोना
उपचार को वैक्सीन का है इंतजार
कोविड -19: दुनिया को कोरोना के वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार है। इंतजार करने वालों में हम भी हैं। अकेले चीन में ही एकेडमी ऑफ मिलिट्री मेडिकल सर्विसेज और चाइनीज साइंस एकेडमी के 1,200 वैज्ञानिक शोध में जुटे हुए हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड, जापान, चीन, रूस, इजराइल और कुछ अन्य देशों की 35 छोटी-बड़ी दवा कंपनियां तथा अकादमिक शोध संस्थान कोरोना की दवा और 41 तरह के वैक्सीन विकसित करने में जुटी हुई हैं। नये कोरोना वायरस की वैक्सीन को शीघ्रातिशीघ्र निर्मित करने की जबर्दस्त होड़ बहुराष्ट्रीय कंपनियों में चल रही है। मगर महामारी से डर के बजाय वैक्सीन के पूर्णतया निरापद और कारगर होने की आशंका अधिक है। इसलिये तमाम वैक्सीन की निर्माण प्रक्रिया में फूंक फूंक कर कदम रखा जा रहा है। कई कंपनियों का दावा है कि वे दवा और वैक्सीन बनाने के बिल्कुल करीब हैं। कम से कम तीन कंपनियां उस स्थिति में हैं जो कुछ चरणों के बाद उत्पादन की प्रक्रिया में जा सकती हैं। एक कंपनी को अपनी वैक्सीन को सीधे मनुष्यों पर परीक्षण करने की अनुमति मिल चुकी है। दो कंपनियां जानवरों पर सामान्य सा परीक्षण पूरा करके इस ओर अग्रसर हैं। यह गति अप्रत्याशित है। पांच से 15 साल में बनने वाली वैक्सीन 15 महीनों में तैयार करने का दावा किया जा रहा है। पहली बार किसी वैक्सीन का मनुष्यों पर सीधे परीक्षण हो रहा है। मौजूदा महामारी ही जहां भयावह बनी हुई है, इस नये कोरोना वायरस की एक और लहर की संभावना से विश्व भर के प्रशासकों, नीति नियोजकों के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें गहराने लगी हैं। मौजूदा समय में 135 तरह के वैक्सीन निर्माण अपने विभिन्न चरणों में हैं। मगर केवल फार्मास्यूटिकल फर्म अस्ट्राजेनेका अब तीसरे चरण के क्लीनिकल परीक्षण की तैयारी में है। सार्स - सीओवी - 2 के जीनोम के अनावरण और जीन अनुक्रमणों के ठीक बाद से ही जनवरी 20 में वैक्सीन निर्माण की गतिविधियां वैश्विक स्तर पर शुरु हो गयी थीं। मार्च माह में मनुष्य पर वैक्सीन के पहले सुरक्षा ट्रायल शुरु हो चुके थे मगर अधिकांश वैक्सीन निर्माताओं के लिये चुनौतियाँ अभी बनी हुई हैं। यहां कुछ उन वैक्सीन की मौजूदा स्थिति का व्योरा दिया जा रहा है जो मनुष्य पर ट्रायल के लिए तैयार हैं। वैक्सीन निर्माण की प्रक्रिया निम्न चरणों की होती है - प्रीक्लीनिकल जांच इसमें वैज्ञानिक निर्माणाधीन वैक्सीन की जांच कुछ प्राणियों जैसे चूहों या बन्दरों पर करके यह देखते हैं कि क्या परीक्षण से जानवरों में प्रतिरक्षा तंत्र सक्रिय हुआ अथवा नहीं। फेज 1 सेफ्टी ट्रायल वैज्ञानिक थोड़े लोगों को वैक्सीन देकर यह देखते हैं कि यह कितना सेफ है और उस डोज का भी निर्धारण करते हैं जो प्रतिरोधक क्षमता को उद्वेलित करता हो। फेज 2 व्यापक (Expanded Trials) इसमें बच्चों और उम्रदराज लोगों की विभिन्न टुकड़ियों में वैक्सीन देकर अलग अलग परिणामों का आकलन किया जाता है। साथ ही पुनः यह देखा जाता है कि यह कितना सुरक्षित है और कितना डोज प्रतिरोधी क्षमता को सक्रिय बना देता है। फेज 3 प्रभावोत्पादकता ( Efficacy) ट्रायल यह सबसे महत्वपूर्ण चरण है जिसमें वैक्सीन का परीक्षण दो समूहों में, एक सामान्य और दूसरे कंट्रोल ग्रुप पर किया जाता है। सामान्य ग्रुप में असली वैक्सीन और कंट्रोल ग्रुप मे नकली - प्लेसेबो का इस्तेमाल होता है। एक तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है कि दोनो समूहो में संबंधित महामा के संक्रमण की स्थिति क्या है। इससे यह निश्चय हो जाता है कि वैक्सीन कोरोना वायरस से रक्षा कर सकती है या नहीं। अनुमोदन प्रत्येक देश में नियामक संस्थाओं द्वारा ट्रायल परिणामों की कठोर समीक्षा की जाती है और वैक्सीन को व्यापक इस्तेमाल की इजाजत दी जाती है या रोकी जाती है। मगर महामारियों के दौरान बिना औपचारिक अनुमोदन के भी वैक्सीन के आपात प्रयोग का निर्णय लिया जा सकता है। वैक्सीन के प्रकार:
1-जेनेटिक वैक्सीन ऐसी वैक्सीन हैं जो एक या अधिक कोरोना वायरस के जीन के
जरिये रोग प्रतिरोधी क्षमता (इम्युनिटी) को उभारने में सफल होती हैं। मोडेर्ना
कंपनी की मेसेंजर आरएनए वैक्सीन अभी फेज
दो में है। और जर्मनी की बायोटेक फाईजर और चीन की फोसन फर्मा की वैक्सीनें ट्रायल
के दो चरणों फेज एक और दो में हैं।
अमेरिकन
कंपनी इनोवियो की वैक्सीन फेज एक में है। इम्पीरियल कालेज लंदन के शोधकर्ताओं की
आरएनए वैक्सीन जो एक वाईरल प्रोटीन के जरिये इम्यून सिस्टम को उत्प्रेरित करती है
अभी प्रीक्लीनिकल स्टेज पर ही है।
ट्रंप
प्रशासन ने जर्मनी स्थित यूरेवैक कम्पनी को अमेरिका से उत्पादन के लिए आमंत्रित
किया है। यह रैबीज वैक्सीन पर काम कर रही है।
2-विषाणु वाहक वैक्सीन ऐसी वैक्सीन जो किसी अन्य
वायरस के जरिये कोरोनावायरस जीन मनुष्य की प्रतिरक्षा प्रणाली को उद्वेलित करने
में सक्षम है।
ब्रितानी
स्वीडिश कंपनी एस्ट्राजेनेका और आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की वैक्सीन क्रमशः फेज दो
और तीन में हैं जो चिम्पान्जी के एडिनोवायरस को वाहक (वेक्टर) के रुप में इस्तेमाल
कर रही हैं। कैनसिनोबायो चीन की कंपनी की भी वैक्सीन इसी सिद्धांत पर फेज दो में
है। जानसन ऐंड जानसन की वैक्सीन प्रीक्लीनिकल स्टेज पर है। नोवार्टिस स्विस कंपनी
भी प्रीक्लीनिकल स्टेज पर है। अमेरिकी कंपनी मर्क इबोला के अपने अनुभव के आधार पर
वैक्सीन निर्माण के प्रीक्लीनिकल स्टेज पर है।
3-
प्रोटीन आधारित वैक्सीन ऐसी वैक्सीन जो कोरोनावायरस के प्रोटीन के
जरिये इम्यून रिस्पॉन्स सक्रिय करती है इस श्रेणी में हैं। नोवावैक्स (मेरीलैंड)
प्रोटीन वैक्सीन के चरण दो तक पहुंच चुकी है। क्लोवर बायोफार्मेस्युटिकल्स और
जीएसके कंपनी फेज एक में हैं। बायर कालेज आफ मेडिसिन प्रीक्लीनिकल स्टेज पर है।
पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय भी प्रीक्लीनिकल स्टेज पर है। यही स्थिति क्वींसलैंड
विश्वविद्यालय आस्ट्रेलिया से संबद्ध सीएसएल और जीएसके कंपनियों के हैं। फ्रेंच
कंपनी सनोफी की वैक्सीन भी प्रीक्लीनिकल स्टेज पर है। वैक्सार्ट की वैक्सीन एक
टैबलेट के रुप में है जिसमें विभिन्न वायरस प्रोटीन हैं। इसे सीधे मुंह से लिया
जायेगा। मगर अभी तो यह प्रीक्लीनिकल स्टेज पर ही है।
4- समग्र वायरस वैक्सीन इसमें एक
कमजोर या निष्क्रिय किये जा चुके वायरस से इम्यून रिस्पांस सक्रिय किया जाता है।
ऐसी वैक्सीन चीन की सिनोवैक कंपनी कोरोनावैक के नाम से तैयार कर रही है जो फेज दो
पर है। दूसरी भी चीन की ही कंपनी सिनोफार्म है जो बीस करोड़ समग्र वायरस वैक्सीन
बनाने का दावा कर रही है किन्तु दूसरे चरण पर है। चीन के ही इन्स्टीच्यूट आफ
मेडिकल बायोलोजी की वैक्सीन फेज एक पर है।
5- अन्य रोगों की वैक्सीन किसी दूसरी
बीमारियों के लिये बनायी वैक्सीन जो संभवतः कोविड 19 पर भी
कारगर हों। आस्ट्रिया की मर्डोक चिल्ड्रेन रिसर्च इंस्टीट्यूट की टीबी वैक्सीन फेज
तीन में है। यह कोविड 19 से आंशिक बचाव कर सकेगी। जाहिर है
कि वैक्सीन निर्माण के लिए दिन रात कवायदें जारी हैं। इस वर्ष के अंत तक एकाधिक
वैक्सीन के तैयार होने और व्यापक टीकाकरण की संभावना दिख रही है। भारत भी कुछ
कंपनियों के साथ व्यावसायिक सौदे के लिए तत्पर है। मगर अभी से भारत में वैक्सीन के
बहिष्कार का वातावरण न्यस्तस्वार्थी और मजहबी तत्व शुरु कर चुके हैं। जबकि हर्ड
इम्युनिटी या वैक्सीन के अलावा नये कोरोना वायरस का समूल निर्मूलन संभव नहीं है।
वरिष्ठ नागरिक और गंभीर बीमार लोगों के लिये हर्ड इम्युनिटी जहां खतरे की घंटी है
वहीं वैक्सीन के यथाशीघ्र आने से उन्हें राहत मिल जायेगी। और वे भी एक मुक्त और
निर्द्वंद्व जीवन जी सकेंगे।
भारत
दुनिया के सबसे बड़े जेनेरिक दवाएं और वैक्सीन निर्माता देशों में से एक है.
भारत
में ही कई महत्वपूर्ण टीकों के विकास और उनके निर्माण का काम हुआ है, जैसे- पोलियो, मेनिनजाइटिस, निमोनिया, रोटावायरस,
बीसीजी, खसरा और रुबेला.
सामान्य
रूप से एक वैक्सीन को विकसित होने में एक दशक नहीं भी, तो कुछ वर्ष का समय तो लगता ही
है.
लेकिन
कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में विशेषज्ञों की राय है कि 2021 के मध्य तक कोरोना की कोई ना
कोई वैक्सीन ज़रूर विकसित हो जाएगी. यानी महामारी फ़ैलने के 12 से 18 महीनों के भीतर इसका टीका तैयार होगा.
जानकारों
के अनुसार, मौजूदा समय में 120 से ज़्यादा वैक्सीन प्रोग्राम चल
रहे हैं. क़रीब आधा दर्जन भारतीय फ़ार्मा कंपनियाँ कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार
करने में लगी हैं.
जुलाई
महीने में भारत के कुछ वॉलेंटियर्स को भारत में ही विकसित एक कोरोना वायरस वैक्सीन
लगाई जायेगी. इस वैक्सीन को हैदराबाद की एक फ़ार्मा कंपनी – भारत बायोटेक ने तैयार किया है.
कंपनी
ने यह दावा किया है कि वो इंसानों पर जल्द ही इस वैक्सीन का ट्रायल शुरू करने वाली
है. हालांकि कंपनी ने ये नहीं बताया है कि कितने वॉलेंटियर्स को यह वैक्सीन दी
जाएगी.
कंपनी
के अनुसार, जानवरों पर इस वैक्सीन के नतीजे उत्साहवर्धक रहे और इसे सुरक्षित पाया
गया. दुनिया के कई देश फ़िलहाल कोरोना वायरस वैक्सीन के ट्रायल कर रहे हैं.
कंपनी
के अनुसार, अब इंसानों के लिए दो चरण में इस वैक्सीन का परीक्षण किया जाना है. एक
टेस्ट में देखा जाएगा कि क्या वैक्सीन वाक़ई सुरक्षित है और दूसरे टेस्ट में देखा
जाएगा कि ये वैक्सीन संक्रमण का असर रोकने में कितना कारगर है.
कंपनी
के प्रवक्ता ने बीबीसी से बातचीत में कहा है,
“भारत में संक्रमित हो चुके लोगों से जो वायरस के सैंपल लिये गए,
उनकी मदद से वैक्सीन विकसित करने में काफ़ी सहायता हुई. पर यह
रिसर्च का विषय होगा कि वैश्विक स्तर पर मौजूद कोरोना वायरस के सामने इसमें क्या
अंतर आयेगा.”
कंपनी
के चेयरमैन, डॉक्टर कृष्णा इल्ला के अनुसार, इस वैक्सीन को 'कोवाक्सिन' नाम दिया गया है जिसे भारत में ही
इंडियाज़ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी और इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च के
सहयोग से तैयार किया गया है.
हालांकि, ह्यूमन ट्रायल के स्तर तक पहुँची,
भारत में बनी यह पहली कोरोना वैक्सीन है. भारत में दवाओं की नियामक
संस्था ने भी भारत बायोटेक को इंसानों पर पहले और दूसरे चरण के क्लीनिकल ट्रायल
करने की अनुमति दे दी है.
भारत
बायोटेक द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति अनुसार,
‘कंपनी के प्री-क्लीनिकल अध्ययन और वैक्सीन के सुरक्षित होने से
संबंधी दस्तावेज़ जमा करवाने के बाद ही उन्हें क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति मिली है.’
भारत
सरकार ने पहले स्वदेशी कोविड-19
वैक्सीन को मानव परीक्षण के लिए मंजूरी दी।
केंद्रीय
दवा नियंत्रक एवं मानव संगठन (सीडीएससीओ) ने देश में तैयार किये गए कोरोना के पहले
टिके ‘कोवैक्सिन' को क्लिनिकल ट्रायल की मंजूरी दी है। भारत बायोटेक की तरफ से ‘कोवैक्सिन' नामक टीके का विकास किया जा रहा है। भारत बायोटेक ने भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) और
राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (NIV) के साथ मिलकर इसे विकसित किय़ा है कंपनी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) की तरफ से
मानव परीक्षण की अनुमति मिली है.
टिके के फेज - 1
एवं फेज 2 ट्रायल की अनुमति प्रदान की गई इसे आई सी एम् आर
की प्रयोगशाला नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरोलॉजी (एन आई वी) पुणे और भारत बायोटेक ने
तैयार किया है भारत बायोटेक की तरफ से सोमवार को जारी बयान में कहा गया है क़ि यह
पहला भारतीय टीका होगा जो क्लिनिकल ट्रायल क़ि स्टेज पर रहा है। एन आई वी ने भारत
में मिले कविड वायरस को आइसोलेट कर भारत बायोटेक को सौपा था, जिसका टिका उसने तैयार किया। टीका को बाजार में आने में एक साल का वक्त
लगेगा। तीन चरणों में ट्रायल होगा। पहले चरण के परीक्षणों में शरीर का दुष्प्रभाव
देखा जायेगा दूसरे चरण में सीमित संख्या में लोगों पर और तीसरे चरण में लोगों पर
ट्रायल होगा। जहाँ दुनिया भर के ड्रग निर्माता कोरोनावायरस के खिलाफ एक टीका
विकसित करने के प्रयास में लगे हुए हैं. वैक्सीन और जेनेरिक दवाओं के अग्रणी
निर्माता, भारत को इस दौड़ में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने
की उम्मीद है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए वैक्सीन तैयार करने और उसके बाद टीकाकरण की
तैयारियों को लेकर एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की। इस बैठक में
वैक्सीन तैयार होने के बाद टीकाकरण की योजना और तैयारियों की समीक्षा पर भी चर्चा
हुई। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की विशाल और विविध आबादी के टीकाकरण के लिए
सरकार की विभिन्न एजेंसियों के बीच बेहतर समन्व्य के साथ ही निजी क्षेत्र को भी
इसमें शामिल करना होगा। क्योंकि इस राष्ट्रीय प्रयास में हर स्तर पर सहयोग की
जरूरत होगी। प्रधानमंत्री ने अधिकारियों को समय पर टीकाकरण सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न तकनीक का मूल्यांकन करने का
निर्देश दिया। पीएम मोदी ने यह भी निर्देश दिया कि बड़े पैमाने पर टीकाकरण के लिए
विस्तृत योजना तत्काल तैयार की जानी चाहिए। प्रधान
मंत्री ने चार मार्गदर्शक सिद्धांतों की बात कही जो इस राष्ट्रीय प्रयास की नींव
बनाएंगे. उन्होने कहा कि पहला काम ये होगा कि कमजोर समूहों की पहचान की जानी चाहिए
और शुरुआती टीकाकरण के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उदाहरण
के लिए डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्य सेवा
कार्यकर्ता, गैर-चिकित्सा फ्रंटलाइन कोरोना योद्धा, और सामान्य आबादी के बीच जो कमजोर लोग हैं उन्हें प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
बैठक में भारतीय और वैश्विक टीका विकास प्रयासों की वर्तमान स्थिति की भी समीक्षा
की गई। प्रधानमंत्री मोदी ने कोरोना के खिलाफ वैश्विक टीकाकरण प्रयासों में सक्षम
भूमिका निभाने के लिए वैश्विक समुदाय के लिए भारत की जिम्मेदारी और प्रतिबद्धता पर
प्रकाश डाला।
भारतीय
कंपनियों के सामने सस्ती रेमडेसिविर लेकर भारत आई एक अमरीकी कंपनी अमरीकी दवा
कंपनी मायलिन एनवी ने कहा है कि ‘वो एक अन्य अमरीकी दवा
निर्माता गिलिएड साइंसेज़ की एंटी-वायरल दवा रेमडेसिविर का जेनेरिक वर्ज़न भारतीय
बाज़ार में लॉन्च करेगी जिसकी क़ीमत 4,800 रुपए होगी.’
कोविड-19 के रोगियों पर परीक्षण के बाद डॉक्टरों ने पाया था
कि एंटी-वायरल दवा रेमडेसिविर संक्रमित लोगों को जल्द ठीक होने में मदद करती है. मायलिन
एनवी ने भारतीय बाज़ार के लिए रेमडेसिविर की जो क़ीमत तय की है, वो अमीर देशों की तुलना में क़रीब 80 प्रतिशत कम है.
कैलिफ़ोर्निया
स्थित गिलिएड साइंसेज़ ने कई जेनेरिक दवा निर्माताओं के साथ क़रार किया है ताकि
रेमडेसिविर को क़रीब 127 विकासशील देशों में मुहैया कराया जा सके. पिछले महीने ही, दो भारतीय दवा निर्माता कंपनियों – सिप्ला और हेटेरो
लैब्स ने रेमडेसिविर का जेनेरिक वर्ज़न भारत में लॉन्च किया था. सिप्ला ने अपनी
दवा सिपरेमी की क़ीमत पाँच हज़ार से कुछ कम तय की जबकि हेटेरो लैब्स ने अपनी दवा
कोविफ़ोर की क़ीमत 5,400 रुपये तय की है. पिछले सप्ताह ही
गिलिएड साइंसेज़ ने बताया था कि विकसित देशों के लिए इस दवा को महंगा रखा गया है
और अगले तीन महीने तक लगभग सारी रेमडेसिविर अमरीका में ही बेचने का क़रार हुआ है. मायलिन
एनवी के अनुसार, यह क़ीमत 100 मिलीग्राम
वायल (शीशी) की है. लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि एक मरीज़ के इलाज में ऐसी
कितनी वायल लगेंगी. गिलिएड साइंसेज़ के अनुसार, एक मरीज़ को
अगर पाँच दिन का कोर्स दिया जाता है तो उसके लिए कम से कम रेमडेसिविर की छह वायल
लगती हैं. कोविड के मरीज़ों में इस दवा के बेहतर नतीजे दिखने के बाद से ही इसकी
डिमांड बढ़ी हुई है. मायलिन एनवी ने कहा है कि वो जेनेरिक रेमडेसिविर का निर्माण
भारतीय प्लांट में ही करने वाले हैं और इस कोशिश में भी लगे हैं कि कम आय वाले
क़रीब 127 देशों के लिए भी लाइसेंस लेकर दवा सप्लाई कर सकें.
ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया ने मायलिन की रेमडेसिविर को डेसरेम के नाम से
मंज़ूर किया है. भारत इस समय दुनिया का तीसरा ऐसा देश है जहाँ संक्रमण के सबसे
ज़्यादा मामले दर्ज किये गए हैं.