कंप्यूटर आज वर्तमान समय में हमारे लिए बहुत उपयोगी वस्तु है. हर जगह कंप्यूटर का उपयोग हमारे काम को आसान बनाता है. लेकिन हर चीज के दो पहलु होते है, सकारात्मक और नकारात्मक.
जिस तरह कंप्यूटर आज के समय में एक बहुत उपयोगी वस्तु है, उसी तरह इस तकनीकी दौर में कंप्यूटर वायरस जैसे कुछ नकारात्मक पहलु भी है.
कंप्यूटर इस्तेमाल करते समय आपने भी कभी ना कभी इन कंप्यूटर वायरस का सामना किया होगा.
पहले कंप्यूटर वायरस की कहानी बड़ी दिलचस्प है. इसकी खोज किसी और ही उद्देश्य के साथ की गई थी पर हालात कुछ ऐसे बने कि आगे चलकर ये अविष्कार एक ऐसी समस्या बन गया जिसने पूरी दुनिया के तकनीकी सयंत्रों को अपनी गिरफ्त में लिया.
दरअसल कंप्यूटर वायरस की शुरुआत पाकिस्तान के दो भाइयों बासित और फारुक ने की थी. यह दोनों भाई लाहौर के निवासी थे.
बासित और फारुक दोनों ही भाई कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में काफी रूचि रखते थे. इन दोनों भाइयों के पास अपना खुद का कोई कंप्यूटर तो नही था लेकिन फिर भी ये दोनों भाई एक सायबर कैफ़े में जाकर घंटो कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का अभ्यास करते थे.
आखिरकार कुछ दिनों की मेहनत के बाद दोनों भाईयों ने कोडिंग करते हुए कुछ कंप्यूटर सॉफ्टवेयर बनाये और सस्ते दामों पर बेचने भी लगे.
दोनों भाइयों को लगा कि अब उनके बनाये हुए सॉफ्टवेयर लोग खरीदेंगे लेकिन कुछ ही दिनों बाद लोगों ने उनके सॉफ्टवेयर खरीदना बंद कर दिया क्योंकि लोग उन वायरस को फ्लॉपी में कॉपी करकर एक दुसरे को देने लगे.
अपने सॉफ्टवेयर की पाइरेसी को रोकने के लिए उन्होंने जो समाधान खोजा वही आगे चलकर वायरस नाम की समस्या बन गया.
जब दोनों भाइयों के सॉफ्टवेयर की पाइरेसी होने लगी तो उन दोनों भाइयों को इस पाइरेसी से बचने के लिए कोई न कोई रास्ता निकालना था. दोनों भाइयों ने मिलकर पायरेसी को रोकने के लिए एक “ब्रेन वायरस” बनाया. यही वायरस दुनिया का पहला कंप्यूटर वायरस था.
“ब्रेन वायरस” का मतलब था कि एक ऐसा वायरस बनाना जो उनकी सोच पर आधारित होकर तैयार किया गया हो. जब ये ब्रेन वायरस बन गया तब इसे वे अपने सॉफ्टवेयर में डाल कर लोगों को देने लगे. इसका इस्तेमाल करके अब उनका सॉफ्टवेयर पायरेसी से बच गया क्योंकि अब जब भी कोई व्यक्ति उनके वायरस को गैरकानूनी तरीके से इस्तेमाल करता था तो उनके कंप्यूटर में ब्रेन वायरस लोड हो जाता था. जिसके बाद कंप्यूटर में उन दोनों भाइयों कि कम्पनी का नाम, कम्पनी का एड्रेस, और फोन नंबर दिखने लगता था, जिसको कंपनी का लाइसेंस लिए बिना हटाना नामुमकिन था. लोग उन दोनों भाइयो की कंपनी में फोन करकर पैसे देकर लाइसेंस प्राप्त करते थे तब जाकर उनका कंप्यूटर ठीक होता था.
पाकिस्तान के दोनों भाइयों ने ब्रेन वायरस को बनाया तो अपने सॉफ्टवेयर की सुरक्षा के लिए था लेकिन धीरे धीरे यह ब्रेन वायरस विदेशों में भी फैलने लगा. लोगों के कंप्यूटर ब्रेन वायरस की वजह से हैंग होने लगे जिसके बाद इस वायरस में ऐसा परिवर्तन आया कि अब यह वायरस लाइसेंस लेकर भी ठीक नही होता था. लोग उस वायरस से परेशान होने लगे और ब्रेन वायरस की यह खबर मीडिया में छाने लगी.
बासित और फारुख को वायरस बनाने की वजह से बहुत से धमकी भरे कॉल आने लगे जिनमें कई कॉल विदेशों से भी आते थे. लोग उन्हें धमकी देते और वायरस बनाने के कारण भला बुरा कहते थे.
जिसके जवाब में दोनों लोगों को समझाते हुए कहते कि उन्होंने किसी गलत मकसद के साथ वायरस नहीं बनाया है.
इस तरह ये वायरस इन दोनों भाइयों कि वजह से दुनिया की नज़र में पहली बार आया और दोनों ही भाई इस काम से काफी प्रसिद्ध भी हुए. कुछ समय बाद लोगो ने इस कंप्यूटर वायरस से बचने के लिए नए प्रोग्राम कोड बना लिए और नए-नए वायरस भी अब बनने लगे.
ब्रेन वायरस बनाने वाले दोनों भाइयों ने कुछ समय बाद अपनी कंपनी शुरू कर दी जिसमे उन दोनों ने वायरस की दुनिया को छोड़कर इन्टरनेट की दुनिया में अपना व्यवसाय शुरू कर दिया. लेकिन आज भी बासित और फारुक द्वारा बनाये गये “ब्रेन वायरस” को ही दुनिया के पहले वायरस के रूप में जाना जाता है. “ब्रेन वायरस” कि वजह से ही लोगो को यह पता लगा कि अगर सॉफ्टवेयर कि सुरक्षा पायरेसी से ना की जाए तो यह वायरस कितने खतरनाक साबित हो सकते है.
Web Title: Story of First Computer Virus