बिहार में 17वें विधान सभा चुनाव एक फिर नीतीशे सरकार, बरकरार रही और तमाम चुनावी आंकलन ध्वस्त हो गए। जी हां, बिहार के मतदाताओं ने लगातार 15 साल तक सत्ता संभालने वाले नीतीश कुमार पर एक बार फिर भरोसा जताया है। नीतीश कुमार वर्ष 2005 से 3 बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अब इस जीत के बाद एक बार फिर सूबे की कमान संभालेंगे। राज्य के मतदाताओं ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को विधानसभा की 125 सीट देकर नीतीश को सत्ता की बागडोर एक बार फिर सौंपने का फैसला सुनाया है। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के रूप में सातवीं बार शपथ लेकर सरकार बनाएंगे।
बिहार में मत गणना के बाद घोषित चुनाव परिणामों ने साफ कर दिया कि सीटों के मामले में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को बेशक खासा नुकसान हुआ हो, लेकिन मतदाताओं ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लाज बचाते हुए 'अंत भला तो सब भला' वाली उनकी उम्मीद को पूरा कर दिया। इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के मुख्य दलों भाजपा और जदयू के बीच 50-50 फार्मूला तय हुआ। इसके बाद जदयू को 122 और भाजपा को 121 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का फैसला किया गया। इसमें इनके छोटे सहयोगी भी शामिल रहे। भाजपा ने सीट बंटवारे के तहत अपने कोटे की 121 में से 110 सीटों पर लड़ने का फैसला किया और 11 सीटें मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को दीं। जदयू ने अपने हिस्से की 122 में से 7 सीटें हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा यानी 'हम' को दे दीं और 115 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। उसके मुकाबले को बने महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) 144, कांग्रेस 70 और वाम दलों ने 29 सीटों पर चुनाव लड़ना तय किया था। मतगणना की समाप्ति के बाद राज्य निर्वाचन कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार 243 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए जरूरी 122 का 'जादुई आंकड़ा' पार करते हुए राजग ने 125 सीटों पर जीत दर्ज की। राजग के घटक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 74, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को 43,जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) सेक्यूलर और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को चार-चार सीटें मिलीं।राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और वाम दलों (भाकपा-माले, भाकपा और माकपा) का महागठबंधन कुल 110 सीटों पर जीतने में कामयाब रहा। इस चुनाव में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) बहुजन समाज पार्टी(बसपा) और निर्दलीय ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की।
जदयू को उठाना पड़ा 28 सीटों का नुकसान
हालांकि चौथी बार सरकार बनाने का मौका मिलने के बावजूद जदयू को इस बार के विधानसभा चुनाव में 28 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। पिछले चुनाव में उसकी सीटों की संख्या 71 थी, जो अबकी घट कर 43 रह गईं। वर्ष 2005 से अब तक जदयू के इतिहास में यह निम्नतम स्कोर है और विधानसभा में उसकी सीटों का आंकड़ा पहली बार तीसरे नंबर पर पहुंच गया। पिछली बार राजद संग मैदान में उतरा जदयू 71 सीटों के साथ नंबर दो पर था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले में ही सजेगा राजग की इस जीत का हार
बेशक नीतीश कुमार अब चौथी बार बिहार की कमान संभालेंगे, लेकिन राजग की इस जीत का हार भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गले में ही सजेगा। क्योंकि इस तथ्य से कोई भी कतई इनकार नहीं कर सकता कि यदि मोदी ने चुनावी रैलियां नहीं की होतीं तो बिहार का मतदाता राजग पर इतना भरोसा नहीं जताता। जदयू और भाजपा को मिली सीटों के आंकड़ों से भी यह बात पूरी तरह साबित होती है।
अब जदयू नहीं, भाजपा है 'बड़ा भाई'
चुनाव परिणामों से यह भी साबित हो गया कि बिहार में 'बड़ा भाई' अब भाजपा है, जदयू नहीं। बिहार में भाजपा को पहली बार इतनी ज्यादा सीटें मिली हैं और अब वह जदयू के मुकाबले बड़े भाई की भूमिका में आ गई है। बीते चुनावों में भाजपा को जहां कुल 53 सीटें मिली थीं, वहीं जदयू ने 71 सीटों पर विजय हासिल की थी। पिछले चुनाव में 53 सीटें हासिल करने वाली भाजपा को अबकी खासा फायदा हुआ और उसकी जीत का आंकड़ा बढ़कर न केवल 74 हो गया, बल्कि वह राज्य में दूसरा सबसे बड़ा दल भी बन गई, जबकि जदयू की सीटें घट कर महज 43 रह गईं।
किसको कितना हुआ नफा-नुकसान
बिहार चुनाव राजग के प्रमुख घटक भाजपा के लिए फायदेमंद रहा। भाजपा ने 74 सीटों पर विजयश्री प्राप्त की और पिछली बार के मुकाबले उसे 21 सीटों का लाभ हुआ। राजग में शामिल 'वीआईपी' पार्टी को चार और 'हम' को तीन सीटों का लाभ हुआ। हालांकि राजग के दूसरे प्रमुख घटक दल जदयू की 28 सीटें घट गईं। महागठबंधन की बात करें तो पिछले चुनाव के मुकाबले राजद को 5 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा, कांग्रेस की 8 सीटें घट गईं। वर्ष 2015 के चुनावों में महागठबंधन बनाकर राजद 101 और जदयू 101 और कांग्रेस 41 सीटों पर चुनाव लड़े थे। पिछले चुनाव में राजद को 80, जदयू को 71 और कांग्रेस को 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। भाकपा-माले को अबकी बार 9 सीटों का लाभ हुआ। भाकपा और माकपा को भी दो-दो सीटों का फायदा रहा। अन्य दलों में असदउद्दीन औवेसी की एआईएमआईएम ने 5 सीटों के साथ पहली बार बिहार में खाता खोला, बसपा को भी दस साल बाद बिहार विधानसभा में दोबारा दाखिला मिला है। हालांकि लम्बी रेस का घोड़ा माने जा रहे चिराग पासवान की लोजपा को महज एक सीट से ही संतोष करना पड़ा और उसे एक सीट का नुकसान हुआ है।
बिहार के मतदाताओं ने इन्हें दिया नकार
चुनाव परिणाम बताते हैं कि बिहार के मतदाताओं ने अबकी बार अपने मताधिकार का प्रयोग बेहद समझदारी के साथ किया और इधर-उधर पलटी मारने वाले कई दिग्गजों और उनके परिजनों को नकार दिया। राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी (जाप) और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को एक भी सीट नहीं मिली। खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार बताने वाली लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ीं पुष्पम प्रिया को दोनों विधानसभा क्षेत्रों में मुंह की खानी पड़ी, उनकी द प्लूरल्स पार्टी के सभी उम्मीदवार जनता ने नकार दिए। हत्या के आरोप में सजा काट रहे बाहुबली आनन्द मोहन सिंह की पत्नी लवली आनन्द को हार का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं प्रख्यात अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को भी मतदाताओं ने भाव नहीं दिया।
महागठबंधन को बहुमत के पूर्वानुमान हो गए ध्वस्त
बिहार चुनावों को लेकर लगाए गए तमाम पूर्वानुमान ध्वस्त हो गए। राजनीतिक पंडितों द्वारा 15 साल के नीतीश राज का हवाला देकर प्रदेश में उनकेखिलाफ हवा बताते हुए महागठबंधन को बहुमत मिलने के पूर्वानुमान लगाए और बढ़-चढ़कर दावे किए गए थे, लेकिन राजग की बढ़त के चलते सब बेमानी साबित हुए। पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव की के पुत्र तेजस्वी प्रसाद यादव की अगुवाई वाले महागठबंधन की सीटों का आंकड़ा 110 पर ही अटक गया। हालांकि महागठबंधन के मुख्य घटक राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और उसके मुखिया तेजस्वी के लिए संतोष की बात यह रही कि वह 75 सीट जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा है, लेकिन उसे पांच सीटों का नुकसान भी उठाना पड़ा। वर्ष 2015 के विधानसभा में राजद को 80 सीट मिली थी। महागठबंधन के अन्य प्रमुख घटक कांग्रेस को पिछले चुनाव के मुकाबले आठ सीटें कम मिलीं और उसने मात्र 19 सीटों पर जीत दर्ज की।
लुप्त हो रहे साम्यवादी दलों में मतदाताओं ने फूंकी जान
वर्ष 2020 के आखिरी दौर में हुए इस चुनाव की सबसे खास बात यह रही कि देश में राजनीति की मुख्यधारा से धीरे-धीरे लुप्त हो रहे साम्यवादी दलों में कुछ क्षेत्रों के मतदाताओं ने मामूली जान फूंकने का काम किया है। दरअसल महागठबंधन में शामिल होकर चुनाव में उतरना वामदलों के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी (भाकपा-माले) को पिछले चुनाव के मुकाबले अबकी बार 9 सीटों का लाभ हुआ और यह संख्या तीन बढ़कर 12 के आंकड़े पर पहुंच गई। वहीं, पिछले विधानसभा चुनाव में शून्य पर सिमटने वाली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने भी दो-दो सीटें जीत लीं।
एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर मारा मैदान
वर्ष 2015 में जीरो पर पैवेलियन लौटने वाली असदउद्दीन औवेसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) अबकी चुनाव में पांच सीटों पर मैदान मारने में कामयाब रही। बिहार विधानसभा चुनावों में सीमांचल क्षेत्र की पांच सीटों पर मिली जीत के बाद असदउद्दीन औवेसी की नजर अब पश्चिम बंगाल चुनाव पर आ टिकी हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुधीर रंजन चौधरी के तंज कसने को लेकर पूछे गए एक सवाल मीडिया संग बातचीत में औवेसी ने ऐसे स्पष्ट संकेत दिए हैं। एआईएमआईएम के पश्चिम बंगाल की तरफ कदम बढ़ाने से कांगेस, तृणमृल कांग्रेस और वामपंथी खेमों में बेचैनी बढ़ना लाजिमी है।