समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने आज आरोप लगाया कि भाजपा सरकार के कोरोना संकट के चलते हाथ पांव फूले हुए है। मुख्यमंत्री कर्तव्यविमूढ़ हो गए हैं और सरकार अनिर्णय तथा जड़ता की शिकार हो चली है।
प्रदेश में आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है तो राज्य का सबसे बड़ा अन्नदाता किसान भी सरकारी उपेक्षा का शिकार बनाया जा रहा है। अर्थव्यवस्था में किसान का गहरा नाता है। भाजपा अपनी गलत नीतियों के चलते प्रदेश को बर्बादी, बदहाली में ढकेल देने पर तुली है। जो सरकार अपने दोष दूसरों पर मढ़ कर केवल सत्ता भोग में ही लिप्त है, उसके जाने से ही जनता को अपनी तकलीफों से मुक्ति मिल सकती है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कोरोना संकट के बहाने भाजपा सरकार ने किसानों से गेहूं की खरीद बंद कर दी है। सरकार खरीद के झूठे आंकड़े पेश कर रही है जब अधिकांश जगह क्रय केन्द्र ही नहीं खुले, जहां खुले वहां बोरों-नकदी का अभाव रहा, घटतौली और किसानों को लौटाने की खब़रें आती रहीं तो कैसे खरीद का ग्राफ चढ़ गया? किसान को 1975 रूपये की एमएसपी मिल रही है तो फिर वह आंदोलन क्यों कर रहा है? किसान बाजार में 15 से 17 सौ रुपये प्रति कुंतल में गेहूं बेचने को मजबूर है। ऐसा लगता है कि बिचौलियों को फायदा पहुंचाकर गेंहू खरीद का लक्ष्य हासिल करने की साजिश की गई है।
मुख्यमंत्री जी में हिम्मत है तो वह पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराएं। झूठ बोलना और जनता को भ्रमित करना भाजपा का स्वभावगत चरित्र बन गया है। गेंहू क्रय केन्द्रों में खरीद की सच्चाई अखबारों में छप रही है। अधिकारी केवल बयान दे रहे हैं कि सब ठीक होगा। मुख्यमंत्री जी फर्जी आंकड़ों पर फूले नहीं समा रहे हैं। कोरोना की पहली लहर में वे ऐसे ही वाहवाही लूट चुके हैं पर आज हालात उनके काबू से बाहर है। अस्पतालों से लेकर शवदाह गृहों तक लाशों के ढेर हैं, उनकी आत्माएं श्राप दे रही हैं।
केवल खरीद केन्द्रों की गड़बड़ियों से ही किसान परेशान रहा है। उसकी फसल को अग्निकाण्डों और अंधड और असामयिक बरसात से भी काफी नुकसान पहुंचा है। सैकड़ों हेक्टेएयर गेंहू खलिहानों में लगी आग में जलकर राख हो गया। बुधवार शाम को अंधड़-बारिश से बड़े पैमाने पर खेतो में कटा पड़ा गेंहू उड़ गया है, जो खेतों में खड़ा है, उसके बचने की उम्मीद कम है। आम की फसल को बहुत नुकसान हुआ है।