देश के राजनीतिक पटल पर फिर उभरेगा एक 'नया मोर्चा'!
मराठा क्षत्रप शरद पवार ने शुरू की विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम
शरद और ममता में से किसी एक को सौंपी जा सकती है मोर्चे की कमान
वर्ष 2024 की चुनावी जंग जीतने को पीके ने बिछानी शुरू कीं गोटियां
प्रशांत किशोर खुद आगे रह कर अरविन्द, अखिलेश, हेमन्त, टिकैत, तेजस्वी संग चला सकते हैं मोदी विरोधी मुहिम
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में अभी करीब तीन साल का समय है और केंद्रीय सत्ता पर काबिज होने को राजनीतिक दलों का 'नया मोर्चा' बनाए जाने की बात अभी बेशक बहुतों को दूर की कौड़ी लग रही हो, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी समेत विभिन्न राज्यों के राजनीतिक गलियारों में तैरती चर्चाओं और में हो रही वाली हलचल संबंधी खबरों को देख-समझकर प्रतीत हो रहा है देश में एक बार फिर 'नया मोर्चा' बनाने की कवायद शुरू हो चुकी है। यह ऐन उसी तरह की एक मुहिम जोड़ने-चलाने की कवायद है, जैसी कि कभी इंदिरा गांधी के खिलाफ विपक्षी नेताओं ने 'जयप्रकाश नारायण' के नेतृत्व में और कुछ साल पहले अन्ना हजारे की अगुआई में चलाई थी। अब यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि 'भाजपा' और 'मोदी' के खिलाफ या यूं कहें कि सत्ता विरोधी इस विपक्षी जंग की 'जन नेता' की भूमिका कौन निभाएगा। चर्चा है कि मोदी विरोधी इस 'नए मोर्चे' के लिए यशवंत सिन्हा के संगठन 'राष्ट्र मंच' का बैनर इस्तेमाल किया जा सकता है।
शरद पवार ने पीके संग दो बैठकी के बाद किया विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं के साथ ही बुद्धिजीवियों संग विमर्श
चुनावी रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर यानी 'पीके' ने केंद्रीय राजनीति के लिहाज से 'नया राजनीतिक मोर्चा' बनाने और उसके बूते वर्ष 2024 की चुनावी जंग जीतने को राजनीतिक बिसात पर मनमाफिक गोटियां बिछानी शुरू कर दी हैं। राजनीति के जानकारों की मानें तो पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को दस का आंकड़ा पार करने पर चुनावी रणनीति बनाने के पेशे से सन्यास लेने का ऐलान करने वाले प्रशांत किशोर यानी 'पीके' अब देश के राजनीतिक पटल पर एक 'नए मोर्चे' को उभार देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसी मुहिम को लेकर पीके अब तक मराठा क्षत्रप और राष्ट्रवादी कांग्रेस प्रमुख शरद पवार संग दो दौर की बैठकी कर चुके हैं।
शरद पवार ने इसके बाद अब विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं के साथ ही तमाम बुद्धिजीवियों से विमर्श किया है। शरद पवार के दिल्ली स्थित आवास छह जनपथ पर आहूत इस बैठक में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला, मोदी विरोधी पुराने भाजपाई औरअब तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष व राष्ट्र मंच के संस्थापक यशवंत सिन्हा, कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता संजय झा, एनसीपी के राज्यसभा सांसद माजिद मेमन, वंदना चव्हाण, रालोद प्रमुख जयंत चौधरी, सीपीआई नेता बिनय विश्वम, सीपीएम के नीलोत्पल वासु, समाजवादी पार्टी के घनश्याम तिवारी, आआपा के सुशील गुप्ता के अलावा पूर्व राजदूत केसी सिंह, वरिष्ठ वकील के टी एस तुलसी, पत्रकार करण थापर, आशुतोष आदि शामिल हुए। बैठक में देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के विषय में विमर्श कर राष्ट्र स्तरीय विकल्प को उभार देने पर विचार किया गया। उम्मीद की जा रही है कि बैठक को लेकर पूरी तस्वीर साफ होने में अभी कुछ समय लगेगा और 'पीके' की रणनीति पर अमल करते हुए धीरे-धीरे पत्ते खोले जाएंगे।
परदे के पीछे की भूमिका छोड़ सियासी अखाड़े में प्रत्यक्ष उतरेंगे 'पीके'
पश्चिम बंगाल चुनाव के संदर्भ में भाजपा को लेकर चुनावी रणनीति छोड़ने के बाबत किए गए ऐलान पर अमल करते हुए 'पीके' ने संभवत: अब सियासी अखाड़े में प्रत्यक्ष उतरने का फैसला कर लिया लगता है। यहां यह बात उल्लेखनीय है कि पश्चिम बंगाल चुनाव के दौरान इलेक्टॉनिक मीडिया संग बातचीत में दोबारा राजनीति में आने, नई पारी शुरू करने के सवाल पर प्रशांत किशोर ने स्पष्ट कहा था कि ''बिल्कुल आएंगे, समय और परिस्थिति क्या बनती है, ये उस पर निर्भर करता है। राजनीति में निश्चित तौर पर आएंगे। मैंने पहले भी कहा फिर दोहरा रहा हूं, मेरे जीवन का ध्येय, जो मैं कर रहा हूं, करते रहना नहीं है।'' हालांकि इस बातचीत में अपनी पार्टी बनाए जाने के बाबत पूछे गए सवाल को प्रशांत किशोर ''मुझे नहीं मालूम'' कहकर टाल गए थे। पहले पश्चिम बंगाल जीतने के बाद ममता बनर्जी का तृणमूल कांग्रेस (तृमकां) को राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय करने संबंधी बयान और फिर प्रशांत किशोर का बीते दिनों राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार संग मेल-मुलाकात को 'पीके' की 'नया मोर्चा' बनाने की तैयारियों से ही जोड़कर देख जा रहा है।
हालांकि इसे लेकर 'पीके' ने फिलहाल अपने पत्ते नहीं खोले हैं और अपने इस फैसले को धरातल पर उतारने की रणनीति के तहत देश के राजनीतिक पटल पर एक 'नए मोर्चे' को उभार देने के लिए समन्वयक-संयोजक की अघोषित भूमिका निभाने में जुटे हैं। कयास तो यह भी लग रहे हैं कि 'पीके' अबकी परदे के पीछे रहने के बजाए खुद आगे रह कर अरविन्द केजरीवाल, अखिलेश यादव, हेमन्त सौरेन, राकेश टिकैत, सीताराम येचुरी, तेजस्वी यादव, जयन्त चौधरी आदि तमाम छोटे-बड़े क्षेत्रीय क्षत्रपों संग मिलकर मोदी विरोधी मुहिम चला सकते हैं।
शरद पवार 'राष्ट्रपति' पद के संयुक्त दावेदार और ममता को 'नया मोर्चा' की कमान
बेशक पुख्ता तौर पर कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन चर्चा तो यह भी है कि राकांपा प्रमुख शरद पवार को 'राष्ट्रपति' पद का संयुक्त दावेदार बनाए जाने के बूते 'नया मोर्चा' की कमान तृमकां अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सौंपने की थ्योरी पर भी काम चल रहा है। विदित हो कि करीब सालभर बाद यानी वर्ष 2021 में जुलाई महीने में देश के 15वें राष्ट्रपति के लिए चुनाव भी होने हैं। हाल ही में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर पुन:र्विचार किए जाने के बयान के बाद ममता बनर्जी का 'अनुच्छेद 370' को 'कश्मीरी' अवाम की 'आजादी' से जोड़ा जाना भी इसी रणनीति का हिस्सा है। जिससे कि ममता को विपक्षी दलों के नेताओं में सर्वमान्य बनाने के लिए उनकी स्वीकार्यता बढ़ाई जा सके। पिछले दिनों केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री को लेकर दिखे 'दीदी' के 'तेवर' और इसी बीच तृमकां का 'कलेवर' बदलने की खबरों से भी कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि ममता अब 'मोदी' के मुकाबिल विपक्षी दलों का चेहरा बनने के अभियान को धार देने में जुट गई लगती हैं। ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी का तृमकां को राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय करने संबंधी बयान भी इसी अभियान का हिस्सा रहा है।
विपक्षी दलों के बड़े नेताओं से मंत्रणा कर सकते हैं 'पीके' बेशक यह 'नया मोर्चा' अभी आपको 'हवा-हवाई' लग रहा हो और उसमें शामिल होने वाले नेताओं-दलों के नाम पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हुए हों, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मान-समझ रहे हैं कि इस मोर्चे को मूर्त रूप देने के लिए 'पीके' जल्द ही समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी, राष्ट्रीय जनता दल, झारखंड मुक्ति मोर्चा, भारतीय किसान यूनियन, स्वराज अभियान समेत देश के कई प्रमुख दलों-संगठनों के अध्यक्षों और बड़े नेताओं के साथ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के प्रमुख घटक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों के असंतुष्ट नेताओं से भी मेल-मुलाकात कर सकते हैं।
'इन्फ्ल्यूएंसरों' का साथ लेने की भी है तैयारी
इतना ही नहीं इस 'नए मोर्चे' को साकार करने और उसके बाद देशव्यापी स्तर पर कारगर बनाने की जुगत में विभिन्न क्षेत्रों के जाने-पहचाने या भीड़ जुटाऊ चेहरों कहें कि नई पीढ़ी की जुबान में 'इन्फ्ल्यूएंसरों' का साथ भी लिया जा सकता है। मुम्बई प्रवास के दौरान 'पीके' का अभिनेता शाहरुख खान के घर पहुंचकर 'भोजन' करना भी उसी तयशुदा योजना की कड़ी कहा-बताया जा रहा है। इस फेहरिश्त में हर ऐसे चेहरे से संपर्क साधने की योजना है, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा और मोदी विरोध को लेकर मुखर रहे हैं। इनमें फिल्म जगत में विभिन्न विधाओं की हस्तियों के साथ ही साहित्यकारों, पत्रकारों और समाजसेवियों। इस कवायद की मंशा देश भर में मोदी और भाजपा विरोधी मतदाताओं को 'नए मोर्चे' के पक्ष में लामबंद करना है।
पांच राज्यों के चुनाव बनेंगे 'नया मोर्चा' के राजनीति परीक्षण की प्रयोगशाला
सरकार विरोधी 'नया मोर्चा' बनाए जाने की कोशिशें अभी अपने शैशव काल में हैं और इसे व्यापक स्तर पर साकार होने में समय लगेगा। इसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक मान-समझ रहे हैं कि इस मोर्चे को राष्ट्रीय स्तर पर मूर्त रूप देने से पहले ही बतौर ट्रॉयल अगले साल आजमाया जा सकता है। ऐसे में वर्ष 2022 में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनाव 'नया मोर्चा' के राजनीति परीक्षण के लिए प्रयोगशाला का काम करेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 'नया मोर्चा' का यह प्रयोग यदि उत्तर प्रदेश या पंजाब में कोई गुल खिलाने में कामयाब रहा तो देश भर में कोई भी इसकी राह नहीं रोक सकेगा।
कांग्रेस को साधने की योजना पर भी चल रहा है काम
इतना ही नहीं 'पीके' इस 'नए मोर्चे' को गैर राजग मोर्चा बनाने का मंसूबा भी बांधे हुए हैं और इसी क्रम में कांग्रेस को साधने की कवायद भी काम चल रहा है। दरअसल कांग्रेस को इस बात के लिए तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है कि वर्ष 2024 की लड़ाई को 'मोदी' बनाम 'अन्य' में तब्दील किया जा सके। कांग्रेस यदि इस मुहिम में 'नए मोर्चे' का हिस्सा बनी तो ठीक और यदि ऐसा न हो सका तो उसके लिए 'प्लान-बी' भी तैयार है। हालांकि प्राथमिकता कांग्रेस को प्रत्यक्ष रूप में साथ रखने की है, लेकिन बात नहीं बनी तो इस 'प्लान-बी' के तहत कांग्रेस इस 'नए मोर्चे' में शामिल होने के बजाए 'नूरा कुश्ती' दांव में दिख सकती है। रणनीति यह है कि जहां कांग्रेस उम्मीदवार मजबूत होंगे वहां 'नए मोर्चे' की तरफ से हलके प्रत्याशी उतारे जाएं और जिन सीटों पर 'नया मोर्चा' में शामिल दलों के प्रत्याशी सशक्त होंगे ऐसी जगहों पर कांग्रेस कमजोर नेताओं को टिकट दे। इसके लिए पिछले लोकसभा चुनाव में मिली सीटों और मत प्रतिशत के हिसाब से हिस्सेदारी तय करने की जुगत भिड़ाई जा रही है।