2019 में भारतीय गृह
मंत्री अमित शाह द्वारा नागरिकता संशोधन विधेयक फिर से प्रस्तावित किया गया था
जिसके बाद कल लोकसभा में कई घंटों की चर्चा के बाद यह बिल लोकसभा से पास हो गया
है.
इससे पहले इस बिल को 2016 में पहली बार पेश किया गया था, जिसके बाद इसके विरोध में
कई प्रदर्शन हुए जिसके बाद इस बिल को छोड़ दिया गया था.
विवादास्पद नागरिकता
संशोधन विधेयक, जिसका उद्देश्य 2015
से पहले देश में बसने वाले बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता
प्रदान करना है
लेकिन जहां एक तरफ संसद में इस बिल पर चर्चा हो रही थी वहीं दूसरी और सोमवार को, असम के पूर्वोत्तर राज्य में सड़कों पर सैकड़ों
प्रदर्शनकारियों ने सड़कों को रोक दिया, कुछ
प्रदर्शनकारियों ने टायर जलाए और बिल के खिलाफ नारे लगाए.
असम के चार जिलों में छात्रों
ने एक दिन के बंद का आह्वान किया. विरोध प्रदर्शन के कारण दुकानों, बैंकों, विश्वविद्यालयों और व्यवसायों को बंद कर दिया गया है,
सार्वजनिक परिवहन सड़कों पर नही उतर पा रहे
हैं.
कई प्रदर्शनकारियों ने बिल के खिलाफ आवाज़ उठाते
हुए कहा कि "हम अपने खून की
आखिरी बूंद तक बिल का मुकाबला करेंगे और विरोध करेंगे", इस प्रदर्शन में सभी असम छात्र संघ के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य भी शामिल थे जो पूरी तरह से
बिल के विरोध में है.
इसके अलावा दुसरे राज्य गुजरात
और कोलकाता शहर में भी प्रस्तावित कानून के खिलाफ सैकड़ों लोगों ने मार्च किया.
हालाकिं सरकार ने पूर्वोत्तर के लोगों इस बिल से चिंतित होने को कहा है., भारतीय संसद के निचले सदन ने नागरिकता संशोधन
विधेयक पारित किया था, कल लोकसभा में इस बिल के
पक्ष 311 मत पड़े जबकि इसके विरोध
में 80 मत पड़े.
अमित शाह ने रेखांकित
किया है कि कानून भारतीय मुसलमानों को कोई नुक्सान नही पहुंचता और कहा कि
पार्टियों को राज्यसभा में कानून का विरोध नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह छह अल्पसंख्यकों - हिंदुओं, पारसियों, ईसाइयों, बौद्धों, सिखों, और जैन लोगों की रक्षा करेगा.
अमित शाह ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा है कि "नागरिकता संशोधन विधेयक की जरूरत नहीं होती अगर कांग्रेस ने
धर्म के आधार पर विभाजन नही किया होता. यह कांग्रेस ही थी जिसने देश को धार्मिक
तर्ज पर बांटा था.