राजनीति में डिजिटल क्रांति है 'वर्चुअल रैलियां'
डिजिटल भारत बनने की संभावनाओं, राह में आने वाली चुनौतियों यानी संकट और समाधान पर ऑब्जर्वर डॉन ने व्यापक प्रकाश डालने का प्रयास किया है, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हमने डिजिटल भारत के संदर्भ में व्यापक लेखा-जोखा पेश किया है। डिजिटल भारत स्टोरी का पांचवां अंश प्रस्तुत है, इसमें हमने राजनीति क्षेत्र में तकनीक के बढ़ते चलन पर प्रकाश डाला है।
देश में अभी तक हमने आमतौर पर मोबाइल के जरिए रैली को संबोधित करते हुए देखा था, लेकिन नए भारत में अब रैलियों का बाना भी बदल रहा है। बेशक कारण कोरोना संक्रमण से फैली महामारी ही क्यों न हो, लेकिन भारतीय राजनीति में अब संचार क्रांति की शुरूआत हो चुकी है। राजनीतिक रैलियों ने बाना बदलकर डिजिटल यानी वर्चुअल रैली का रूप ले लिया है।
देश में वर्चुअल रैलियों की शुरूआत का श्रेय भाजपा के नाम
देश की राजनीति में वर्चुअल रैलियों के जरिए संचार क्रांति लाने का काम किया है विश्व की सबसे बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने। जी हां, बेशक जनसंवाद का यह माध्यम विदेशों में पहले से ही खासा लोकप्रिय है, लेकिन भारत में इसे शुरू करने का श्रेय भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को ही जाता है। गृह मंत्री अमित शाह ने भारत की पहली राजनीतिक वर्चुअल रैली 'बिहार जनसंवाद' में बिहार की जनता को वीडियो कॉन्फ्रÞेन्स के द्वारा सम्बोधित किया। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भारत की इस पहली वर्चुअल रैली 'बिहार जनसंवाद' में 'बीजेपी4बिहार' के 72 हजार बूथ कार्यकतार्ओं को वीडियो कॉन्फ्रेंस के द्वारा संबोधित किया। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अपनी इस पहली वर्चुअल रैली के जरिए अमित शाह भाजपा के करीब 5 लाख कार्यकतार्ओं तक पहुंचे। कोरोना वायरस संक्रमण महामारी के समय में भाजपा की तरफ से की गई इस पहल ने देश के राजनीतिक क्षेत्र में संचार क्रांति ला दी है। वर्चुअल रैली के जरिए बिहार से हुई इस संचार क्रांति के बाद भाजपा नेताओं ने एक के बाद एक कई वर्चुअल रैलियां कीं। बिहार जनसंवाद के बाद अमित शाह ने जहां पश्चिम बंगाल जनसंवाद नाम से वर्चुअल रैली की, वहीं देश के रक्षामंत्र राजनाथ सिंह ने 'जम्मू जनसंवाद', केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने दिल्ली जनसंवाद और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने असम जनसंवाद शीर्षक से आयोजित वर्चुअल रैली में कार्यकतार्ओं को संबोधित किया। वर्चुअल रैली के माध्यम से भाजपा नेताओं का पार्टी कार्यकतार्ओं को संबोधित का यह सिलसिला बिहार और पश्चिम बंगाल समेत तमाम राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अब खासा लंबा चलने के आसार हैँ।
क्या होती है वर्चुअल रैली
'वर्चुअल रैली' दरअसल वेबिनॉर कहें कि वेबकॉन्फ्रेंस का ही एक व्यापक रूप है, दूसरे शब्दों में कहा जाए तो वर्चुअल रैली दरअसल फेसबुक लाइव, यूट्यूब, गूगलमीट, माइक्रोसॉफ्ट टीम्स और जूम मीटिंग्स जैसे सोशल मीडिया माध्यमों के इस्तेमाल से आगे की बात है। सामूहिक जनसंवाद के इस तकनीकी माध्यम में वीडियो कॉन्फ्रेंस के द्वारा जनता या कार्यकतार्ओं को सम्बोधित किया जाता है।
विदेशों में खासा लोकप्रिय है जनसंवाद का यह माध्यम
बेशक जनसंवाद का यह माध्यम विदेशों में पहले से ही खासा लोकप्रिय है, लेकिन इनका चलन अब भारत में भी शुरू हो चुका है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के दावेदारों जो बिडेन और बर्नी सेंडर्स ने चुनाव के मद्देनजर कुछ महीने पहले ही वर्चुअल रैलियां और चुनावी अभियान शुरू किए। सूचना और संचार की यह तकनीक अब भारत में भी अपनाई जा रही है।
भारत में वर्चुअल रैलियों का भविष्य
जनसंख्या और मतदाताओं के हिसाब से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के चुनावी अभियान में रैलियों की भूमिका बेहद अहम होती है। दरअसल किसी रैली के जरिए अपने संबोधन से एक बड़े जनसमूह को प्रभावित किया जा सकता है। वर्तमान में कोविड-19 वायरस जनित महामारी के दौर में जब भीड़ जुटने से संक्रमण का खतरा है, ऐसे में राजनीतिक धुरंधरों ने डिजिटल या वर्चुअल रैली के रूप में इस समस्या का तोड़ तलाश लिया है। अब राजनीतिक पार्टियां डिजिटल या वर्चुअल रैली का रुख कर रही हैं। गृहमंत्री अमित शाह की बिहार वर्चुअल रैली के बाद से सामूहिक जनसंवाद का यह तकनीकी माध्यम सुर्खियों में है। इसके बाद से ही चुनावी रैलियों के डिजिटल होने को लेकर चचार्ओं का दौर जारी है। भाजपा की रणनीति पर गौर करने से पता चलता है कि बिहार में हालिया वर्चुअल रैली के बाद अमित शाह ओडिशा में ऐसी ही रैली करने वाले हैं। भाजपा ने पश्चिम बंगाल के आगामी चुनावों के मद्देनजर राज्य में करीब 1000 डिजिटल रैलियां करने की योजना बना रखी है।
भाजपा की तरफ से की गई डिजिटल रैली श्रृंखला की शुरूआत के बाद अब तृणमूल कांग्रेस और बिहार के क्षेत्रीय दलों ने भी वर्चुअल रैलियों के बारे में रणनीति बनानी शुरू कर दी है। दरअसल भाजपा समेत अन्य विभिन्न राजनीतिक दलों का मानना है कि यदि कोरोना वायरस संक्रमण प्रकोप के हालात ऐसे ही रहे तो भौतिक यानी वास्तविक रैलियों का आयोजन संभव नहीं होगा, ऐसे में अब वर्चुअल रैलियों की बाढ़ आएगी। हालांकि वर्चुअल रैलियों का भविष्य फिलहाल कोविड-19 वायरस संक्रमण के प्रकोप और उपचार से जुड़ा है और यह अभी इस पर ही निर्भर होगा। वर्चुअल रैलियों की चुनावी सफलता भी भारत में इनका भविष्य तय करने में कारगर साबित होगी।
व्यापक विस्तार दिए जाने की है आवश्यकता
वर्चुअल रैलियों की अभी बेशक अपनी नियत सीमाएं हैं, ऐसे में इस माध्यम को और विस्तार दिए जाने की जरूरत है। संबंधित समस्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि राजनीति के डिजिटलीकरण का यह प्रयोग अभी बड़े स्तर पर केवल नगरीय मतदाताओं तक पहुंच में ही सहायक होगा। ऐसे में इसे व्यापक विस्तार दिए जाने की आवश्यकता है। दरअसल डिजिटल रैलियां अभी एकतरफा संवाद का जरिया हैं और बेहद खचीर्ली भी रही हैं। इससे इतर वास्तविक यानी भौतिक रैलियों में हजारों लोग प्रत्यक्ष रूप से जुटते हैं और टीवी के माध्यम से लाखों करोड़ों लोगों तक राजनीतिक दलों की पहुंच रहती है। इन तमाम किन्तु-परंतुओं को दृष्टिगत रखते हुए निकट भविष्य में राजनीतिक पार्टियां नियत विषयों और विचारों पर आधारित वर्चुअल रैलियों के आयोजन पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं। इन रैलियों का प्रसारण टीवी के जरिए किए जाने की योजना पर भी अमल किया जा सकता है। साथ ही रेडियो और एफएम के जरिए भी वर्चुअल कैंपेनिंग की जा सकती है। कुलमिलाकर वर्चुअल रैलियों के खर्च के मद्देनजर इन संचार माध्यमों का प्रवीणतापूर्वक प्रयोग करना होगा। बहरहाल भारत में डिजिटल पहुंच का समययानुसार बढ़ाव ही वर्चुअल चुनावी अभियानों का भविष्य तय करेगा।
संबोधन सेवा के साथ ही सुविधाएं भी दे रही हैं कंपनियां
वर्चुअल रैलियों का आयोजन न केवल रियल टाइम इवेंट के तहत किया जा रहा है, बल्कि कुछ ब्रांड और कंपनियां प्लानिंग और टाइमलाइन ट्रैकिंग जैसी सेवा-सुविधाएं भी दे रही हैं। इसमें आप वीडियो के साथ ही ग्राफिक्स, पोल व अन्य जानकारियां भी शामिल कर सकते हैं। कुछ कंपनियां रैली के बाद वर्चुअल रैली में उपस्थिति, गतिविधियों और मेल आदि से संबंधित आंकड़े भी मुहैया कराले का काम भी कर रही हैं।
डिजिटल रैलियों में तकनीक है अहम पहलू
डिजिटल रैलियों के कारगर होने में तकनीक अहम पहलू है। ऐसे में सवाल यह है कि भारत में मीडिया और इंटरनेट का जाल कितना बड़ा है। साथ ही राजनीति के डिजिटलीकरण से जनता का कौन सा वर्ग डिजिटल चुनावी अभियानों से जुड़ पाएगा और कौन सा दूर रहेगा। भारत में बेशक डिजिटल क्रांति का दौर है, लेकिन साथ ही यहां गरीबी, अशिक्षा के अलावा दूरस्थ क्षेत्रों तक अनेक सामान्य और तकनीकी सुविधाओं की पहुंच ही नहीं है।
स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया की रहेगी महत्वपूर्ण भूमिका
राजनीति के डिजिटलीकरण में स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। स्मार्टफोन के माध्यम से राजनीतिक दल व्यापक रणनीति बनाकर करोड़ों लोगों तक पहुंच कायम कर सकते हैं। इसके लिए मैसेंजर, वॉट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब, वीडियो कॉल, फेसबुक लाइव, गूगलमीट, माइक्रोसॉफ्ट टीम्स और जूम मीटिंग्स एप्स जैसे सोशल मीडिया माध्यमों का इस्तेमाल किया जा सकता है। बहरहाल स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया के विभिन्न प्रचलित माध्यमों से वर्चुअल रैलियों और चुनाव अभियानों का चलन शुरू होने से यह बाजार तेजी से रफ्तार पकड़ेगा। नई तकनीक और आइडिया डवलप होंगे। संबंधित क्षेत्रों में सक्रिय विभिन्न तकनीकी कंपनियां राजनीतिक दलों के आवश्यकतानुसार विशेष रूप से प्रभावी इनोवेटिव टेक्नॉलोजी और प्लेटफार्म्स विकसित करेंगी। बेशक फिलहाल जूम क्लाउड और मीट जैसी तकनीकों से वीडियो बैठकी या सभा संवाद प्रचलित हो रहे हैं, लेकिन सस्ती और जीवंत लगने वाली डिजिटल रैलियों के लिए और बेहतर मंच विकसित किए जाने की जरूरत बरकरार है।
राजनीतिक प्रचार का डिजिटल मंत्र अपनाने की तैयारी
भाजपा की वर्चुअल चुनाव रणनीति के बाद अब अन्य छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियां भी प्रचार का डिजिटल मंत्र अपनाने की तैयारियों को कमर कसने में जुट गई हैं। कहा जा सकता है कि चुनाव प्रचार के डिजिटलीकरण का आक्रामक अभियान न केवल शुरू हो चुका है, बल्कि यह अभी और गति पकड़ने वाला है। इस क्रम में राजनीतिक दलों की डिजिटल विंग्स सूचना-संचार की नई तकनीकों और विचारों के माफिक रणनीति पर काम कर रही हैं। उनके डिजिटल योद्धा प्रचार का खाका खींचने में लगे हैं। सोशल मीडिया पर बेतहाशा खर्च किए जाने के साथ ही, आंकड़ों के विश्लेषण पर व्यापक विमर्श किया रहा है। तमाम संभावित किन्तु-परन्तु को देखते हुए भविष्य की रणनीति बनाने में जुटे राजनीति दल अपने ग्रामीण कार्यकतार्ओं को पर्याप्त और वांछित तकनीकी ज्ञान देकर उन्हें टेकसेवी बनाने की कवायद कर रही हैं।